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________________ अनेकान्तका 'सन्मति-सिद्धसेनाङ्क' U CKe TV Wa DUO अनेकान्तकी अगली (११वीं) किरण 'सन्मति-सिद्धसेना के रूपमें विशेषाङ्क होगी, जिसमें अनेकान्तके प्रधान सम्पादक मुख्तारश्री जुगलकिशोरजीका 'सन्मति-सूत्र और सिद्धसेन' नामका एक बड़ा ही महत्वपूर्ण एवं गवेषणापूर्ण खास लेख (निबन्ध) रहेगा, जो हाल ही में उनकी महीनोंकी अनमोल साधना और तपस्यासे सिद्ध हो पाया है। लेखमें सन्मतिसूत्रका परिचय देने और महत्व बतलानेके अनन्तर १ ग्रन्थकार सिद्धसेन और उनकी दूसरी कृतियाँ.. सिद्धसेनका समयादिक, ३ मिद्धसेनका सम्प्रदाय और गुणकीर्तन नामके तीन विशेष प्रकरण है. जिनमें गहरी छान-बीन और खोजके साथ अपने-अपने विषयका प्रदर्शन एवं विशद विवेचन किया गया है और उसके द्वारा यह स्पष्ट करके बतलाया गया है कि सन्मतिसूत्र, न्यायावतार और उपलब्ध सभी द्वात्रिशिकाओको जो एक ही सिद्धसेनकी कृतियाँ माना जाता तथा प्रतिपादन किया जाता है वह सब भारी भूल, भ्रान्त धारणा अथवा ग़लत कल्पनादिका परिणाम है और उसके कारण आजतक सिद्धसेनके जो भी परिचय-लेख जैन - तथा जैनेतर विद्वानोके द्वारा लिखे गये हैं वे सब प्रायः खिचड़ी बने हुए हैं और कितनी ही गलतफहमियोको जन्म दे रहे तथा प्रचारमें ला रहे है। इन सब ग्रन्थोके कर्ता प्रायः तीन सिद्धसेन है, जिनमें कतिपय द्वात्रिशिकाओके कर्ता पहले, सन्मतिसूत्रके कर्ता दूसरे और न्यायावतारके कर्ता तीसरे मिद्धसेन है-तीनोका समय भी एक दूसरेसे भिन्न है, जिसे लेखमे स्पष्ट किया गया है । शेप द्वात्रिशिकाओके कर्ता इन्हीमेंसे कोई हो सकते हैं। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया है कि सन्मतिसूत्रके . कर्ता सिद्धसेन दिगम्बर सम्प्रदायके एक महान आचार्य थे-वेताम्बर सम्प्रदायने उन्हें समन्तभद्रकी तरह अपनाया है। अनेक द्वात्रिंशिकार भी दिगम्बर सिद्धसेनकी कृतियाँ हैं। मुख्तार साहबकी इस एक नई खोजसे शताब्दियोंकी भूलोको दूर होनेका अवसर मिलेगा और कितनी ही यथार्थ वस्तुस्थिति सभीके सामने आएगी, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। लेख विस्तृत, गम्भीर तथा विचारपूर्ण होनेपर भी पढ़ने में बड़ा रोचक हैएकबार पढ़ना प्रारम्भ करके छोड़नेको मन नहीं होता और उममें दूमरी भी कितनी ही बातोपर नया प्रकाश डाला गया है। पाठक इस विशेषाङ्कको देखकर प्रसन्न होगे और विद्वज्जन उससे अपने-अपने ज्ञानमें कितनी ही वृद्धि करनेमें समर्थ हो सर्व ऐसी दृढ़ आशा है। परमानन्द जैन शास्त्री प्रकाशक 'अनेकान्त' 志志去去去去去去去去去去去去去去火的志去去去去 रka
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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