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समाज-सेवकोंके पत्र
जैनधर्मभूषण ब्र० सीतलप्रसादजीके पत्र
हमारे यहाँ तीर्थङ्करोंका पूरा प्रामाणिक जीवन-चरित्र नहीं. प्राचार्यों के कार्य-कलापकी तालिका नहीं। जैन सडके लोकोपयोगी कार्योंकी कोई सूची नहीं। जैन राजाओं, मन्त्रियों, सेनानायकोंके बलपराक्रम और शासनप्रणालीका कोई लेखा नहीं, साहित्यिकोका कोई परिचय नही। और तो और हमारी आँखोंके सामने कल-परसों गुज़रनेवाले-दयाचन्द गोयलीय, बाबू देवकुमार, जुगमन्दरदास जज, वैरिस्टर चम्पतराय, ब्र. सीतलप्रसाद, बाबू सूरजभान, अर्जुनलाल सेठी आदि विभूतियोंका ज़िक्र नहीं, और ये जो हमारे दो-चार बड़े-बूढे मौतकी चौखटपर खडे है, इनसे भी हमने इनकी विपदाओ और अनुभवोंको नही सना है और शायद भविष्यमे एक पीढ़ीमें जन्म लेकर मरजानेवालों तकके लिये उल्लेख करनेका हमारे समाजको उत्साह नही होगा।
___ श्राचार्योंने इतने ग्रन्थ निर्माण किये, परन्तु अपने गुरुका जीवन चरित्र न लिखा । खारवेल, अमोघवर्ष जैसे जैनसम्राटोंक सम्बन्धमे उनके समकालीन आचार्यों ने एक भी पंक्ति नही लिखी। चार पाँच स्मारकग्रन्थ लिखने वाले ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजीसे अपनी आत्म-कथा नहीं लिखी गई। स्वर्गीय आत्माओंकी इस उपेक्षाकी चर्चा करके हम धष्टता जैसा पाप नही करना चाहते । परन्तु दुःख तो जब होता है जब कि जीवित महानुभावोसे निवेदन किया जाता है कि आपके उदर-गहवरमे जो सामाजिक संस्मरण छपे पड़े है उन्हें दया करके बाहर फेंक दें। परन्तु सुनवाई नही होती । कौन ग्रन्थ पुराना है, फलॉ श्लोक शुद्ध है या अशुद्ध, निब रोजाना कितना घिसता है, इनकी ओर तो सतत् प्रयत्न होता है, परन्तु समाजके इतिहासकी ओर ध्यान नही है।
अतः हमने सोचा है कि इतिहास सम्बन्धी जो भी बात हमारे हाथ आये, उसे हम तत्काल प्रकाशित कर दें। इतिहासके लिये पत्रोंका भी बड़ा महत्व है। उर्दू साहित्यमें ऐसे पत्रोके कितने ही सङ्कलन पुस्तकाकार छप चुके है। हम भी 'अनेकान्त में यह स्तम्भ जारी कर रहे है।
जैन साहित्योद्धारका मूककार्य करनेवाले दिल्लीके पाई पन्नालालजीके पास अनेक कार्यकर्ताओंके हजारों पत्र सुरक्षित है । मेरी अभिलाषानुसार उन्होंने ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजीके पत्रोका सार लिखकर भेजा है।
यह सब पत्र भाई पन्नालालजीको लिखे हुए है । ब्रह्मचारीजीने अपने प्रत्येक पत्रमें उन्हें 'भाई साहब' और 'प्रतिदर्शन' लिखा है। हस्ताक्षरमें अपने नामके साथ 'हितेपी' लिखा है। अतः पत्रसे इतना अंश हमने अलग कर दिया है। पत्रमें ब्रह्मचारीजी तारीख श्रीर मास तो लिखते थे, परन्तु सन् नहीं लिखते थे। अतः पोष्ट
आफिसकी मुहरमे जहाँ सन पढा गया है साथमें लिख दिया गया है। ब्रह्मचारीजीके पत्र न साहित्यिक हैं न रोचक । फिर भी उनमे जैन समाजके लिये कितनी लगन और चाह थी यह ध्वनित प्रत्येक पत्रसे होता है।
-गोयलीय] .