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किरण ६]
मथुरा-मंग्रहालयकी महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्त्व-सामग्री
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संग्रहालयमें प्रदर्शित हैं पर उनमेंमे बी २० और मर्प- चपटी नाक और मुंडित मस्तक इसके प्रमाण हैं। फणयुक्त पार्श्वनाथ (१५०५)के माथ ही साथ ०६८. नंबी ४५ गुप्तकालोन सिर है यह उसके धुंघराले ४८८ नं०की भी दृष्टव्य हैं।
बाल. गोल चेहरे आदिसे जाना जा सकता है। नं. (३) उत्तरगुप्त और मध्यकालकी कला-जहाँ बी ५१ में लहरिया केश हैं और भ्रमध्यमें ऊर्णा गप्पकाल अपनी मरल-भावव्यंजनाके लिये प्रमिद्ध चिन्ह बना हुआ है। है वही मध्यकाल कृत्रिम अलंकरण और सजावटके . सबसे अधिक महत्वका है नं० बी ६१ जो षट्लिय ध्यान देने योग्य है। इस कालकी बनी मतियो- कोण गृह नं.३ के बीचोबीच चबूतरपर सजा हुआ में वह स्वाभाविकता नहीं रही जो गुप्त कालके ततका है। यह किसी विशाल मूर्तिका सिर है और इसकी की छैनीमे निसृत हुई थी।
ऊँचाई • फुट ४ इंच है। मूर्तिनिर्माणकलाका यह मथुरा सग्रहालयकी १५०४ नं० की ऋपभनाथकी अद्वितीय नमूना है। यह गुपकालीन है और मथुरामूर्ति उत्तरगुप्त कालकी है। इसका श्रासन बहत के चिचदार लाल पत्थरका बना हुआ है। सुन्दर है और मम्तकपर तीन छत्र तथा पीछे प्रभा- बाहर बरामदेमे भी सिर प्रदर्शित हैं जो कम मंडल है। ऊपर पच जिन है । नं० बी ६६ उत्तरगुप्त महत्वक है। बी ४४ किसी तीथङ्करका कद्दावर सिर काल की मर्वनाद्रिका प्रतिमा है जिसका उल्लेग्य है और बी ६० तीथङ्कर पाश्वनाथका षट्फण युक्त पहिलेमे किया जा चुका है।
मिर है जो दृष्टव्य है। ये दोनों कुषाणकालीन है। अन्य मूतियाम बी ७७ सुन्दर अलंकृत श्रासन मिरीकी बनावटके अन्य दा और प्रकार प्रतिमा पर ध्यानमुद्रामे स्थित तीर्थकर नेमिनाथकी मूर्ति है। नं. ४८८ और प्रतिमा नं. २६८ में भी लक्षित किये इसकी चीकीपर शंख चिन्ह. ऊपर छत्र तथा पीछे जा सकन है। प्रभामंडल है। नं. बी ५ कमलाकार प्रभामंडल उपसंहार
और हरिण चिन्ह युक्त शान्तिनाथकी मूर्ति है। इसके अतिरिक्त कंकाली टीलेसे प्राप्त अन्य बगमदमे रखा २७३८ नं० पद्मासन मृति भी इमी शिल्प. मिटीक खिलीने. वेदीका स्तम्भ, तारणोंके कालकी है।
अंश आदि भी उक्त संग्रहालयमें प्रदर्शित है। और तीर्थङ्कर मूर्तियोंके सिर
इम प्रकार मथुरा सग्रहालयन जन कलाका सरक्षण जैसा कि पहले लिग्वा जा चुका है. जैन तीर्थ- और वैज्ञानिकरूपेण प्रदर्शन करके जैनसमाजपर करीको मृतियोके सिर उष्णीपहीन होनस बद्ध- भारी उपकार किया है। मिरामे अलग किय जा सकते है। मथुग मग्रहालय- संग्रहालयके क्यूरेटर श्रीकृष्णदत्तवाजपेयी में इस प्रकारके मिरांकी संख्या कम नहीं है और सब क्यूरेटर श्रीचतुर्वेदी अत्यन्त सरलप्रकृति और वहाँ कुषाण और गुप्त दानी कालोक मूर्तिमिर मिलनसार व्यक्ति हैं। जैन पुरातत्त्वमें आप दोनोप्रदर्शित है।
की विशेष रुचि है और हमारे लिये प्रसन्नताकी बात पटकोण गृह नं. १ मिरोंका प्रदर्शनगृह है। है। यहाँ अनेक बुद्ध, बोधिसत्व और हिन्दू देवताओक अंतमें मै जनसमाजके कलापारखियों और पुरामिराके साथ ही जैन तीर्थङ्कराके सिर
रोध करूंगा कि वे ऐसी योजना सहारे एक कतारमें मजे हुये हैं। नं० बी ७८ किसी बनायें जिससे यहाँ वहाँ बिखरे पुरातत्त्वकी रक्षा तीर्थङ्करका कुपाण कालीन सिर है. चौड़ा चेहरा हो सके।