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________________ ३४४] अनेकान्त [वर्ष श्रीरामधारीसिंह 'दिनकर'का स्थान अत्यन्त महत्व- कवियो द्वारा प्रशंसित हैं। स्वर्ण-सीता. मीरा-दर्शनपूर्ण और उच्च है। आपकी समस्त रचनाओंपर हमें (दीशशिखाके तौरपर) विद्यापति आदि रचनात्रोने आलोचना लिखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है । उसपर- जनताके हृदयपर बड़ा गहरा स्थान प्राप्त कर लिया है। से हम कह सकते है कि दिनकरजीमें कल्पनाशक्ति श्राप अब भगवान महावीर और स्थविर स्थूलभद्र और सूक्ष्मतम प्रतिभाका अद्भुत सामंजस्य है। भाषा- एवं गणिका कोशापर दो महाकाव्य प्रस्तुत करने जा में आवश्यक प्रवाह न होते हुए भी ओजको लिए रहे हैं । कल्पनामें नाविन्य और आध्यात्मिकता है जो कविकी खास सम्पत्ति होती है। अभी आप आपकी खाम विशेषता है। आप चित्रकार होने के विहार सरकारके डिप्टी डायरेकर ऑफ पब्लिसिटि कारण कुछ चित्रका भी निर्माण करेंगे। अरिष्टनेमिहैं। अतः साहित्यिक साधना शिथिल गतिसे चलती परं भी एक काव्य वे लिखना चाहते हैं, पर यह है। बुद्धदेवपर आपने बहुत कुछ लिखा है। वह भी विचाराधीन है। अधिकारपूर्ण ! इन दिनों हमारा उनसे प्रायः मिलना उपर्युक्त काव्य भले ही अजैन विद्वान् कवियो होता ही रहता है । बातचीतके सिलसिलेमे यूहीं द्वारा निर्मित हो पर मेरा विश्वास है कि उनमें जैन आपने एक दिन कहा-"भगवान बुद्धपर तो काव्य संस्कृतिके प्रति लेशमात्र भी अन्याय न होगा, तथा लिखे गये । गुप्तजीने बुद्ध, अल्ला-कल्लापर तो लिखा, कथित कवियों द्वारा निर्माण करवानेका हमारा केवल परन्तु महावीरपर तो एक भी काव्य आज तक नहीं इतना ही ध्येय है कि उनका विहारमे अपना स्वतन्त्र लिखा गया। यह भी एक आश्चर्य ही है। यदि कोई स्थान है और सार्वजनिकरूपमे इनकी रचनाएँ ममात प्रयास करे तो क्या ही अच्छा हो ?” हमने कहा, की जाती है अतः नवीन महाकाव्यो द्वारा जितना अच्छा "सबसे अच्छा तो यही होगा कि आप ही के द्वारा व्यापक प्रचार होगा उतना शायद जैन कविकी रचनाका यह कार्य सम्पन्न हो। जब बुद्धपर आपने लिखा ता न हो, इसका अर्थ यह नहीं कि जैन कवियोमे वह महावीरपर क्यो नहीं। वे भी तो आप ही के प्रान्तकी क्षमता नहीं जो जानतिक अभिरुचिको अपनी ओर महान विभूति थे ? अतः श्रापका कर्तव्य हो जाता है आकृष्ट न कर सकें। परन्तु प्रासङ्गिक रूपमें इतना कि भारतीय संस्कृतिके अद्भुत प्रकाशस्तम्भस्वरूप तो मुझे निःसंकोच भावसे कहना पड़ेगा कि ऐसे जैन वर्धमानपर श्रद्धाञ्जलिस्वरूपमें ही कुछ लिखें।" विद्वान् कम है जिनके नाममात्रसे जनता प्रभावित हो। जैनसमाजका सौभाग्य है कि दिनकरजीने श्रमण वैसी पृष्ठभूमि तैयार करना जरूरी है । श्रावीरेन्द्रभगवान महावीरपर एक महाकाव्य लिखना स्वीकार कुमार उपयुक्त पंक्तियोके अपवाद है। मैंने देखा कर लिया है। शीघ्र ही कार्यारम्भ होगा। दिनकरजी जनतामें उनकी रचनाकी बड़ी प्रतीक्षा रहती है। महावीरके ही वंशज हैं। अतः उनका कर्तव्य है। हम उनमे प्रतिभा है। उनका हार्दिक स्वागत करते है और उनसे भविष्यके हम तो और प्रान्तीय जैन जनतासे अनुरोध लिये आशा करते हैं कि जैनसंस्कृतिके उन तत्वोको वे करेंगे कि वे अपने प्रान्तके प्रसिद्ध कवि, औपन्यासिक अपनी कविताका माध्यम बनावेंगे जिनका सम्बन्ध और कहानीकारोको जैन साहित्य अध्ययनके लिये विहारसे है या था। देकर उनसे जैन संस्कृतिपर प्रकाश डालनेवालासाहित्य विहारके उदीयमान कवियोंमें सर्वश्रेष्ठ हैं- तैयार करवाया जाय तो बहुत बड़ा काम होगा। 'अरुण, जिनपर प्रान्तवासी मुग्ध है । वे मर्वोच्च पटना, ता० १०-१०-१९४८
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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