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अतिशयक्षेत्र श्रीकुण्डलपुरजी
(लेखक-श्रीरूपचन्द बजाज)
जी० आई० पी० रेलवेके बीना और कटनी अत्यन्त आवश्यकता है। छठवीं शताब्दीके एकजंकशनके मध्य, दमोह स्टेशनसे २४ मील दूर. पटेरा दो मठ या मन्दिर जीर्णोद्धारके अभावमें मिटीके ढेर रोडपर कुण्डलाकार उच्च पर्वतमालाओमें मध्यके बन गये है तथा उनके निर्माणकाल श्रादिका पता शिखरपर. पृथ्वीके गर्भमें, १४०० वर्षकी सभ्यता, लगाना बिलकुल ही असम्भव-सा होगया है। संस्कृति और इतिहास छपाए समुद्र-सतहसे करीब यहॉका छठवीं शताब्दीसे ग्यारहवीं शताब्दी तक३००० फुट ऊँचाईपर, कुण्डलपुर नामक स्थानमें, का इतिहास अन्धकारमें है। संवत् ११८३की प्रतिष्ठित ३ फुट ऊँचे सिंहासनपर, १२ फुट ऊँचाईके पद्मासन सिंघई मनसुभाई रैपुरा निवासी द्वारा स्थापित प्रतिमा
आकारमें ध्यान-मुद्रा लगाए, भगवान महावीर से फिर हमे कुछ प्रकाश मिलता है जिससे मालूम विराजमान हैं और मारे जगतको उपदेश दे रहे है कि- होता है कि उस समय तक यह स्थान जनसाधारणकी
__ "हे मनुष्य पृथ्वीके क्षणभङ्कर सखोको छोड। जानकाराम पूर्णरूपेण था। सुग्व आत्माकी वस्तु है जिसे आत्मध्यानद्वारा ...
इसके पश्चात् ४५० वर्षके इतिहासका कुछ पता
नहीं चल रहा है। एक शिलालेख संवत् १५०१का एक ही पाया जा सकता है। यदि सच्चा सुख चाहता है.
मठमे मिलता है तथा उसके बाद सं० १५३२का प्रतिमातो आजा मेरे पास और हांजा मेरे समान ।”
लेख । इसी सदीकी अनेक प्रतिमा अभी तक स्थित है। कुण्डलाकार पवतमालाआक मध्य वद्धमानसागर बड़े बाबाकी पीछेकी दहलान बन्द है, जिसमें नामक सुन्दर सगेवर है, जिसमे किनार तथा पर्वतो- शायद कल इतिहास
शायद कुछ इतिहास मिलता। बड़े बाबाके नीचे
- पर विद्यमान ५८ जिन-मन्दिर प्रतिविम्बित होते है।
तहखाना भी धन्द है। बड़े बाबाकी बायीं जॉपके ऊपर मौन्दर्यकी श्रेणीमें अद्वितीय तथा विशालकाय पद्मा- एक छेद भी था जिसमे रुपया-पैसा डालनेपर वह सनप्रतिमाके रूपमें यह स्थान भारतवर्षम प्रायः
आवाज करता हुआ अन्दर चला जाता था। इसे प्रथम श्रेणीका है।
अपव्यय समझकर प्रबन्धकोने बन्द तो कर दिया, दमाहसे श्रीकुण्डलपुरजी तक रास्ता कच्चा होनेके परन्तु यह पता लगानेकी आजतक कोशिश नहीं की कारण फिलहाल यात्रा बैलगादी. तॉगा और निजी कि आखिर वह सिक्का जाता कहाँ था ? मेरा अनमाटरद्वारा की जाती है, परन्तु शीघ्र ही जनपदमभा मान है कि उस छेदका सम्बन्ध तहखानेसे है, तथा तथा राष्ट्रीय सरकारद्वारा पक्का रास्ता बनानेकी
१ अच्छा होता यदि छठवी शताब्दीका माधक कोई आधार योजना कार्यरूपमे परिणत होनेवाली है। तब ता यह यहाँ प्रदर्शित किया जाता; क्योंकि जब 'मठ और मन्दिर अछूता स्थान प्रकाशमें आकर इतिहासकारो तथा मिट्टीके ढेर होगये और उनके निर्माणकाल आदिका पता प्राकृतिक सौन्दर्य प्रमियोके लिये एक आश्चर्यजनक
लगाना बिल्कुल ही असम्भव-सा होगया है' तो यह पहेली बन जावेगा।
निर्धारित कैसे किया गया कि वे छठवी शताब्दीके हैं ? यहॉपर कई ऐसे स्थान अभी भी विद्यमान हैं यदि ऐसा कोई शिलालेखादि प्रमाण उपलब्ध है तो जहॉपर खुदाई तथा प्राचीनताकी खोज करनेको लेखक महाशयको उसे प्रकाशमे लाना चाहिये। -कोठिया