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अनेकान्त
[वर्ष
बनारनेका दराँत, सब्जी काटनेका चाकू, भाग ठीक फिर सतीत्व तो आत्माकी वस्तु है, उसका कोई भी करनेका चिमटा, पतीली उतारनेकी सिण्डासी, तेज कुछ नहीं बिगाड़ सकता । अपवित्र पुगलको कोई किनारेकी थाली या कटोरी, तेलसे भरी लालटेन दुष्ट बलात् अपवित्र करता है, तो इससे सतीका क्या
और छतपरसे धका देनेको सधी हथेलियाँ उससे बिगड़ता है ? सीताका सहर्ष स्वागत करके यदि राम कौन छीन सकेगा। यदि उसमें भावना हो तो उसके यह परिपाटी डाल जाते कि हरण की हुई स्त्रियाँ हर ये अस्त्र अग्निवाण सिद्ध होगे और देशके इतिहास- दशामें पवित्र हैं और उन्होंने यदि सीताकी आलोचना लेखक आनेवाले दिनोंमें इन अस्त्रोंके प्रयोगकी कला- करने वाले नीच धोबीकी यह कहकर जिह्वा काट ली का ऐसा गुणगान करेगे कि सेनापति-रोमेल और होती कि जो निरपराध नारीको दोष लगाता है, उसको मैकार्थरकी आत्माएँ ईर्ष्यासे उसे सुनेंगी । गाँधीजीने यही दण्ड मिलता है, तो आज स्त्रियोंकी जो यह लिखा था
दुरवस्था है, न हुई होती। "भगाई गई लड़कियाँ बेगुनाह हैं। किसीको उनसे आज तो स्थिति यह है कि हमारी जो बहन-बेटी नफरत न करनी चाहिये । हर सही विचारनेवाले गई. सो गई: क्योंकि यदि उसे लौटनेका अवसर आदमीको उनपर तरस आना चाहिये और उनकी पूरी मिलता भी है और वह आना भी चाहती है, तो वह मदद करनी चाहिये । ऐसी लड़कियोंको अपने घरोंमे सोचतो है कि जहाँ मैं जारही हैं वहाँ मेरे लिये स्थान खुशी-खुशी और प्यारसे लौटा लेना चाहिये और कहाँ है ? जतेमें परसी रोटियाँ मिलेगी और चारो उनके लायक लड़कोंसे उनकी शादी होनेमें कोई ओर घणा भरी आँखोकी छाया। ऐसे अवसरोंपर दिक्कत नहीं होनी चाहिये।"
पुरुष तो हैं ही, पर स्त्रियाँ भी अपनी उस बहनको दिक्कत तो नहीं होनी चाहिये थी, किन्तु ऐसा सम्मान या प्यार नहीं दे पाती। उनके व्यङ्गवाण कठिनाइयाँ हिन्दू नारियोके उद्धारमें बाधक अवश्य तो उस समय इतने पैने होजाते है कि वे कलेजेको रही हैं। हम सनातन पन्थियोको एक सनातन भूल बांधनेमे चुकते ही नहीं। खाये जा रही है। रावणका वध होजानेपर सीता अपहत हाजानेपर भी आज नारीको जहाँ यह रामके शिविरमें आई। सीता सोचती थी-राम मुझे सीखना है कि वह हताश न हो और अपना गुरीला देवकर विह्वल हो उठेगे, वे मुझे हृदयसे लगानेको यद्ध जारी रक्खे, वहाँ हमें भी तो अपनी मनोवृत्तिमे दौड़ेगे और मैं चटसे उनके चरणोंमे गिर जाऊँगी, परिवर्तन करना है। यह परिवर्तन ही ता उस योद्धा उठायेंगे तो भी न उठूगी और रोकर भीख मागूंगा नारीका असली बल है। प्यार और मानकी दुनिया कि नाथ, अब यह चरण-सेवा पलभरको भी न
कराके संसारमे कौन आना चाहेगा? छूटने पावे | किन्तु सीताकी यह आशा हवामें तैर
जो काम रामने नहीं किया, वह आजके समाजको गई। रामने सीताकी ओर देखा भी नहीं। गुप्तरूपसे
करना है, उसे जीना है तो यह करना ही होगा। हनुमानसे सीताके पवित्र बने रहनेकी बात पाकर भी
अपहरणसे लौटी हुई स्त्रियोंको भरपूर सम्मान उनका हृदय अविश्वासी हो उठा।
मिलना चाहिये। उन्हें उनका स्थान मिलना चाहिये। कहा जाता है कि वे सीताके सतीत्वकी ओरसे
उनके लिये सम्मान और स्थानकी गारण्टी करके ही निश्चित थे, किन्तु लोक-लाजके लिए अग्नि-परीक्षा
हम इस युद्धमे विजय पा सकते हैं। गोयलीय आवश्यक थी। हम कहते हैं यही सबसे बड़ी भूल रामने की थी। रावणके यहाँसे असती लौटनेपर भी १ यह लेख मेरी एक लेखमालाका अश है जो सन् ४७के सीताका कोई अपराध नहीं बनता। बलवान आत- 'नया जीवन में प्रकाशित हुअा था तथा 'महारथी' तायियोंके आगे शारीरिक सतीत्व रह ही नहीं सकता 'सरिता' श्रादि कई पत्रोंने जिसे उद्धृत किया था।