SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपहरणकी आगमें झुलसी नारियाँ रावण और कसकी कथाएँ जब हमने पढ़ी तो कर उसीके पास रहती हैं। पति-वियोग एक पलको हमारा मन सिहर उठा-श्रोह, ऐसे अत्याचारी थे ये वे पाप समझती है। जैसे सीता चुपचाप गर्दन दुष्ट ! पर आज हमारे चारों ओर जो कुछ होरहा है, लटकाये सुबकती हुई रावणके द्वारा हरण कर ली उसे देखकर रावण और कंस दोनो झेप गये हैं। मार- गई, उसी प्रकार आज भी हिन्दु नारियाँ आततायियोंकाट और फूंक- फॉक तो श्राम बातें हैं, पर सबसे मर्म- के साथ मिमयाती हुई चली जाती है और वे उनके बेधी है हमारी बहू-बेटियोका बलपूर्वक अपहरण। अत्याचारोको बिलखती हुई, कराहती हुई सहन करती आज जाने कितनी हजार नारियाँ इन रावणोंके पंजेमें हैं। हॉ, यदि सीताने अहिसात्मक सत्याग्रह (१) का हैं। लज्जाकी बात है कि हम उन्हें बचा न सके और अवलम्बन न लेकर रावणद्वारा हरण किये जानेपर दुःख है कि जो बच रही हम उन्हें सच्चा पथ भी छीना-झपटीमें देर लगाई होती, अंगुलियोसे आँखे न बता सके। अङ्गारोंसे लिखा यह प्रश्न है कि जो कुचा दी होती. दॉतोसे नाक कुतर ली होती या लङ्कास्त्रियाँ बलपूर्वक अपहृत होगईं या होजायें, क्या वे में जाकर उसे धोखेमे फंसाकर सोते हुए बध कर दिया इसे 'कर्मोका फल' मानकर चुपचाप उन्हीं राक्षसोंके होता, या महलोमे आग लगा दी होती. तो बादमे पंजे में फंसी रहें या उनके लिये भो कोई मार्ग है? होने वाली ये नारियाँ भी इसी आदर्शका अनुकरण हमारे नेता नारियोंको सीताका आदर्श उपस्थित करती। कितने खेदकी बात है कि जिन नारियोका करनेको कहते है। हमारी मूढ बुद्धिमें नहीं आया कि बलात् हरण हो. उन्हां नारियांकी सन्तान विधर्मी वह कौनसा आदर्श था, जो सीताने उपस्थित किया होकर अपनी माताओके अपमानका बदला न लेकर और जिसपर आजकी देवियाँ कार्य नहीं कर रही हैं। दुष्टों और आततायियोको अपना पूर्वज समझकर हमारी तुच्छ सम्मतिमे तो हिन्द खियाँ सदैवसे उल्टा हिन्दु जातिके रक्तकी प्यामी बनी रहती है। भगवती सीताके पथपर चल रही है। बनोमें जब हिन्दुओमे यह बड़ी आत्म-घातक प्रथा रही है पति ही नहीं जाते तब पत्नियाँ उनके साथ कैसे जाये कि बलात् हरण करने वाले आदरका दृष्टिसे देखे हॉ जेलों. सभाओं मेलों. सिनेमाश्रो. थियेटरो. नाच- गये है और स्त्रियाने बिना हील-हज्जत किय उन्हे पति घरों और क्लबोंमे वे पतिसे कन्धा भिदाये रहती ही स्वीकार कर लिया है। हम तो कहत है कि यह प्रथा है। पति कितनी ही दूर हो. बूढ़े सास-ससुरको छोड ही हिन्दू जातिक लिय घातक है । हिन्दू जातिका यदि __ यह सिद्धान्त हुआ होता कि हरण करनेवाला या एकबार जो मत दिया उसको बदलना नागवार और बलात्कार करनेवाला महानसे महान व्यक्ति क्यो न हो. अपमानास्पद मालूम होता होगा। पर अपने पहले मतमें अपहता या दृषित की गई नारीद्वारा बध होना ही प्रमादसे हुई कोई गलती या दोष पीछे मालूम होजाय चाहिये और यदि यह मार्ग सीता या अन्य पतिव्रता तो उसको मान्य करना सम्मान्योंका काम है-उसमे नारियोंने बना दिया होता तो आज किसी भी प्रातउनकी प्रतिष्ठा और गौरव है। और अपमान समझना तायीको यह साहस न होता कि वह एक भी नारीका दुराग्रह या दुरभिनिवेशका द्योतक है। अपहरण करे । अस्तु! 'बीती ताहि बिसार दे, आगेयह सिद्ध हो जानेके बाद कि संजद' पद मूलप्रति- की सुधि लेय', अब भी क्या बिगड़ा है ? हमारे नेता, में विद्यमान है और ताम्रपत्रपर भी वह खादा गया है। व्याख्यानदाता, कथावाचक आज भी घर-घरमें संदेश फिर भी ताम्रपत्रसे उसको निकाल देनेका अनुरोध पहुंचा सकते है-आततायी यदि तुम्हे बलात् भ्रष्ट और आग्रह प. पू. आचार्यजीसे हो रहा है. इसीलिये करते हैं या घर लेजाते हैं तो अवसर पाकर बदला यह लेख प्रसिद्ध करनेकी आवश्यकता प्रतीत हुई। लो । खानेमें विष मिलाकर उनके परिवारको नष्ट
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy