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अनेकान्त
[ वर्ष ह
पापका बाप लोभ
अतः उसे संसारवर्धक दुष्ट विकल्पोंसे बचाये रहना, लोभके आवेगमें मनुष्य किन-किन नीच कृत्योंको
सम्यग्दर्शनादि दान द्वारा सन्मार्गमें लानेका उद्योग नहीं करते ? और कौन-कौनसे दःखाको भोगकर करते रहना चाहिये। दूसरे दयाका क्षेत्र२ अपना निज दुर्गतिके पात्र नहीं होते यह उन एक दो ऐतिहासिक घर ह फिर ३ जाति ४ देश तथा ५ जगत है अन्तमें व्यक्तियोके जीवनसे स्पष्ट होजाता है। जिनका नाम जाकर यही-'वसुधैव कुटुम्बकम्” होजाता है। इतिहामके काले पृष्ठामे लिखा रह जाता है।
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अनुरोध गजनीके शामक, लालची लुटेरे महमूद गजनवीने १००० और १०२६के बीच २६ वर्षमे भारतवर्षपर
___इस पद्धतिके अनुकूल जो मनुष्य स्वपरहितके १७ वार आक्रमण किया. धन और धर्म लूटा ' मन्दिर ।
निमित्त दान देते है वही मनुष्य साक्षात् या परम्परामें अरि मूर्नियाका ध्वंसकर अगणित रनराशि और अतान्द्रिय अनुपम सुखके भोक्ता होते हैं। अतएव अपरमित स्वर्ण चॉदी लूटी ! परन्त जब इतने- श्रात्म-हितेपी महाशयोंका कर्तव्य है कि समयानुकल पर भी लोभका मंवरण नहीं हुआ तब सोमनाथ
इस दानपद्धतिका प्रसार करें । भारतवर्षमे दानकी मन्दिरके काठके किवाड़ और पत्थरके खम्भे भी न पद्धति बहुत है किन्तु विवेककी विकलताके कारण छोड़े, ऊँटोपर लादकर गजनी ले गया!"
दानके उद्देश्यकी पूर्ति नहीं हो पाती। दूसरा लाभी था (ईशवी सनके ३२७ वर्ष पूर्व) ऊसर जमीनम, पानीसे भरे लबालब तालाबमें, ग्रीसका बादशाह सिकन्दर; जिसने अनेक देशोको सार और सुगन्धि हीन सेमर वृक्षोके जङ्गलमे. दावापरास्तकर उनकी अतुल सम्पत्ति लूटी, फिर भी सार नलमें व्यर्थ ही धधकने वाले बहुमूल्य चन्दनमे यदि संसारको विजित करके संसार भरकी सम्पत्ति हथयान मेघ समानरूपसे वर्षा करता है ता भले ही उसकी की लालसा बनी रही!
उदारता प्रशंसनीय कही जा सकती है परन्तु गुणरत्न लोभके कारण दोनोंका अन्त समय दयनीय दशा- पारखी वह नहीं कहला सकता। इसी तरह पात्र में व्यतीत हुआ। लालच और लोभमे हाय ! हाय !! अपात्री. आवश्यकताकी पहिचान न कर दान देने करत मर, पर इतन समथ शासक हात हुए भा एक वाला उदार कहा जा सकता है परन्तु गुणविज्ञ वह फूटी कौड़ी भी साथ न ले जा सके।
नहीं कहला सकता । आशा है हमारा धनिक वर्ग दयाका क्षेत्र
उक्त बातोपर ध्यान देते हुए पद्धतिके अनुकूल ही १-प्रथम तो दयाका क्षेत्र अपनी आत्मा है, दान देकर सुयशके भागी बनेंगे।