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अनेकान्त
[वर्ष ६
उन्नति मूलक नहीं मानी जा सकती। कौमिल भी बनाना यह बात कुछ स्वार्थ प्ररित तत्त्वांकी सूचना इतनी लम्बी जैसा कोई लम्बा और मोटा अजगर हो:- देती है। मन्दिर नहीं बनाना तो जैनोंको बार-बार .५ सभापति, ११ उपमभापति, ४ मन्त्री, १ प्रोत्साहित ही क्यों किया जाता है ? मैं तो चाहूंगा कि कोषाध्यक्ष, ४१ सदस्य । इस चुनावकी परिपाटी भी वहाँ मन्दिर जरूर बने पर वह लम्बा चौडा न बनकर बिल्कुल असन्तोपजनक है। अधिकांश व्यक्ति एक एक ऐसा सुन्दर और कलापूर्ण निर्मित हो जिसमें डिवीजनके हैं या प्रान्तके है। इनमेमे बहुत ही कम मागधीय शिल्प स्थापत्य कलाके प्रधान सभी तत्त्वो
से व्यक्ति हैं जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता और का मर्माकरण हा. प्राचीन शिल्पकी ही अनुकृति हो. तन्मूलक गवेषणासे अभिरुचि रखते हो या उनका इस दिगम्बर श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदायोका संयुक्त मन्दिर दिशामे कुछ ठोस कार्य हो। इसके मन्त्रीजीसे मैंने हाना चाहिये । सङ्गठनका यही अादर्श है। अब तो पदस्योकी लम्बी सूचीपर कुछ कहा वे कहने लगे कि समय आगया है दानी मिलकर जन संस्कृतिका अनुक्या करे कुछ लोगोंको प्रथम हभने न रक्या तो उनने पान करें। दोनो समाजाने मॅझटें खड़ीकर संस्कृतिको संघके विरुद्ध प्रचारकर दिया, अतः उनको रख लिया विकृतिके रूपमें परिणितकर दिया है। अच्छा हो
मी प्रणालिका रहेगी तो मै ता कहूँगा कि वहॉपर वैशालीसे ही इस सङ्गठन और असाम्प्रदायिक भावो कुछ भी कार्य हाने की सम्भावना नहीं है, भले ही का विकाम-प्रचार हा । वाचनालय बनाना यह तो वर्तमान पत्राम सुन्दरसे सुन्दर रिपार्ट छप जाय। दर सर्वथा उपयुक्त है ही। अमल होना तो यह चाहिये था कि सदस्यताका एक मरे पास कुछ पत्र श्राय है कि वैशालीमें यदि हिम्सा उन लोगोंक लिय छोड दिया जाता. जो इतिहास मन्दिर निर्मित हा ता पम कहाँ भज जाये । मे म्पष्ट पुरातत्त्व आदि संशाधनक विपयांसे रात दिन सर राय तो यही दूंगा कि. जब तक एक समिति नियुक्त पचात रहते हैं भले ही वे इतर प्रान्तोके ही क्यों न नहीं होजाती-जिसमें विश्वसनीय समाजसेवी कार्यहो। डॉ. निहाररखनराय. डॉ. कालीदास नाग, डा कता हो तब तक रुपये कहींपर भी न भजे । और सुनातिकुमार चटर्जी, डॉ. आर० सी० मजूमदार. सावधानीसे काम ले; एक क्तिके भरोसेपर विश्वास डॉ० भॉडारकर, डॉ. ताराचन्द (पटना) भट्टाचार्य, कर आर्थिक सहायता भजना कभी-कभी बुरा नतीजा डॉ. अल्तकर, पी० के गाड M. A , डॉ. हंसमुख माल ल लना है। खंदकी बात तो यह है कि पटना सांकलिया आदि महानुभावोका रहना अनिवाय है बिहार आदिके जन गृहस्थी की भी इस कामम कार्ड जो ग्खनन और पुरातत्त्व तथा इतिहासकी शाखाओके खाम सामूहिक रुचि नहीं है' । मे पटनासे ही इन विद्वान है। ११ जनोको भी शामिल कर लिया है। पंक्तियोको लिख रहा हूँ। मुझे कहना होगा कि कुछ और जैन श्रीमन्तोंके साथ अन्तम मै यह सूचित कर देना अपना परम विद्वानोका भी रखना चाहिये, यदि मास्कृतिक विकास कसव्य समझता हूँ कि वशाली संघके कार्यकता का प्रश्न है तो।
अपनी कार्य प्रणाली और सदस्योके चुनावमे बुद्धिचतुर्थ अधिवेशनमें प्रस्ताव पास किये गये है उन मानासे काम ले ता भविष्यमे बिहारका सांस्कृतिक में एक जैन मन्दिर बनवानेका भी है. मन्दिर जैनीही महत्त्व बढ़ेगा और वशाली भी विगत गौरवको प्राप्त अपने रुपयोसे बनवाये । परन्तु संघके वर्तमान कर आर्यसस्कृतिको अभूतपूर्व विकास केन्द्रका स्थान कोषाध्यक्ष श्रीमान् कमलसिहजी बदलियाने मुझे ता ग्रहण कर सकेगी। ४-७-४८ को बताया कि हमे वहॉपर जन मन्दिर १ सर्वप्रथम सघवालोका परम कर्तव्य यह होना चाहिये निर्माण नहीं करवाना; परन्तु लायब्ररी बनाना है। जब कि जैनसमाजमे वेसा वायुमण्डल तैयार करें कमसे कम महावीरकी स्मृति कायम रखना है और मन्दिर नहीं वैशालीके नजदीकके जैनोंको तो प्रोत्साहित करे ही।