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________________ अनेकान्तकी नई व्यवस्था और नया प्रायोजन श्राज पाठकोंको यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होगी, का प्रधान श्रेय गोयलीयजीको ही प्राप्त है। गोयलीकि अब उन्हें अनेकान्तके समय पर प्रकाशित न होने- यजीने मंत्रीकी हैसियतसे ज्ञानपीठकी सारी जिम्मेदाजैसी किसी शिकायतका अवसर नहीं मिलेगा। साथ रियों और पत्रसम्बन्धी व्यवस्थाओंको अपने ऊपर ही पत्र भी अधिक उन्नत अवस्थाको प्राप्त होगा क्योंकि ले लिया है। वे एक उत्साही नवयुवक हैं, अपनी धुन दानवीर साह शान्तिप्रसादजीने अब उसे अपनी सर- के पक्के हैं, अच्छे लेखक हैं और समाजके शुर्भाचपरस्ती में लेलिया है और अपनी संस्था भारतीयज्ञान- न्तक ही नहीं किन्तु उसके ददको भी अपने हृदय में पीठ काशीके साथ उसका सम्बन्ध जोड़ दिया है। इस लिये हए हैं। उनके इस सक्रिय सहयोग और साहू वर्षके शुरूसे ही पत्रके सम्पादन-विभागकी जिम्मेदारी शान्तिप्रसाद जीकी सार्थक सरपरस्तीसे मुझे अनेकान्तवीर-सेवा-मन्दिर के ऊपर रहेगी, जिसके लिये एक का भविष्य अब उज्जवल ही मालूम होता है, वह सम्पादक-मण्डलकी भी योजना हो गई है. और जरूर समय पर निकला करेगा और शीघ्र हीर शेष पत्रके प्रकाशन, संचालन एवं आर्थिक आयोजन उच्चकोटि के आदशेपत्रका रूप धारण करके लोक आदिकीसारी जिम्मेदारी ज्ञानपीठके ऊपर होगी। साहू गौरवान्वित होगा ऐसी मेरी दृढ़ प्राशा है और उसके जी अनेकान्तको जीवनमें स्फूर्तिदायक महत्त्वके लेखोस साथ भावना भी है। इस आयोजनसे पत्र के प्रकाशन परिपूर्ण ही नहीं, किन्तु सुरुचिपूर्ण छपाई श्रादिसे भी और आर्थिक प्रायोजनादि सम्बन्धी कितनी ही चिश्राकक बने हुए एक ऐसे श्रादर्श पत्रके रूपमें देखना न्ताओंसे मै मुक्त हो जाऊँगा और उसके द्वारा मेरी चाहते हैं जो नियमित रूपसे समय पर प्रकाशित होता जिस शक्तिका संरक्षण होगा वह दूसरे संकल्पित रहे। इसके लिये विशेष प्रायोजन हो रहा है। सत्कार्यो में लगसकेगी इसके लिये मै गोयलीय जी और भाई अयोध्याप्रसादजी गोयलीय, जो अनेकान्तके साह साहब दोनोंका ही हृदयसे आभारी। जन्मकालसे ही उसके (तीन वपतक) प्रकाशक तथा ऐसी स्थिति में अब पत्र बराबर समयपर (हर व्यवस्थापक रहे हैं और जिनके समय में अनेकान्तने महीने के अन्त में) प्रकाशित हुआ करेगा यह प्राय: काफी उन्नप्ति की है और यह समय पर बराबर निक- सुनिश्चित है। और अब उसमे अधिकांश लेख विद्वानों लता रहा है, आजकल ज्ञानपीठ के मंत्री हैं, अनेकान्त के उपयोगके ही नहीं रहेगें बल्कि सर्वसाधारणोपयोगी से हार्दिक प्रेम रखते हुए भी कुछ परिस्थितियोंके वश लेखोंकी ओर भी यथेष्ट ध्यान दिया जायेगा, जिससे पिछले कई वर्षसे वे उसमें कोई सक्रिय सहयोग नहीं यह पत्र सभीके लिये उपयोगी-सिद्ध हो मके। दे रहे थे; परन्तु उसी प्रेमके कारण उन्हें अनेकान्तका अत: विद्वानोंसे सानुरोध निवेदन है कि वे अब अपने समय पर न निकलना और विशेष प्रगति न करना लेखोंको शीघ्र ही भेजनेकी कृपा किया करें जिससे बराबर अखर रहा था। और इस लिये उस सम्बन्ध समय पर उनका प्रकाशन हो सके। में मुझसे मिलकर बातें करने के लिये वे जनवरीके नये वर्षकी यह प्रथम किरण पाठकोंके पास वी० शुरूमेंही (ता०५ को) वीरसेवामन्दिर में पधारे थे, उन पी० से नहीं भेजी जा रही है जिसके भेजे जाने की से अनेकान्तके सम्बन्धमें काफी चर्चा हुई और उसे अ- पिछली किरणमें सूचना की गई थीअाशा है इस किरण धिक लोकप्रिय एवं व्यापक बनानेकी योजनापर विचार को पानेके बाद ग्राहकजन शीघ्र ही अपने अपने किया गया। अन्तको मेरी स्वीकृति लेने के बाद वे चन्देके )रु० मनीआर्डरसे भेजनेकी कृपा करेंगे और बनारसमें साहशान्तिप्रसाद जीसे भी साक्षात मिले हैं। इस तरह वीरसेवामन्दिरको अगली किरण वी० पी० और उनकी पूर्ण स्वीकृति लेकर अनेकान्तकी उस नई से भेजने की मंझटसे बचाकर आभारके पात्र बनेगें व्यवस्था एवं योजनाके करने में सफल हुए हैं जिसका और समयपर किरणको प्राप्त कर सकेंगे। उपर उल्लेख किया गया है। अत: इस सारे आयोजन -जुगलकिशोर मुख्तार
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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