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अनेकान्त
[ वह
कहलाते थे। पण्डितजी विवाहित थे और उनके दो विशिष्ट श्रोताजन पाते थे। उनमें दीवान रतनचन्दजी२ पुत्र थे। एफका नाम हरिचन्द और दुसरेका नाम अजबरायजी. त्रिलोकचन्दजी पाटनी, महारामजी३ गुमानीराम था। हरिचन्दको अपेक्षा गुमानीरामका त्रिलोकचन्दजी सोगानी, श्रीचन्दजी सोगानी और क्षयोपशम विशेष था, वह प्रायः अपने पिताके समान नेनचन्दजी पाटणीके नाम खासतौरसे उल्लेखनीय ही प्रतिभा सम्पन्न थे और इस लिये पिताके
- - - - - - अध्ययन तत्त्वचर्चादि कार्यो में यथायोग्य सहयोग २ दावान रतनचन्दजी और बालचन्दजी उस समय देते रहते थे। ये स्पष्टवक्ता थे और शात्रसभामें
जयपर के माधर्मियों में प्रमुख थे। बड़े ही धर्मात्मा और श्रोताजन उनसे खूब सन्तुष्ट रहते थे। इन्होंने पिता।
उदार सज्जन थे। रतनचन्द जीके लथुम्राता वधीचन्द जी के स्वर्गगमनके दश बारह वर्षे बाद लगभग सं०१८३७
दीवान थ । दीवान स्तनचन्दजी वि० सं० १८२१ से पहले ही में गुमानपंथकी स्थापना की थी।
गजा माधयमिह जीके ममयमे दीवान पद पर श्रामीन हप
थे और वि० मं. १८२६ म जयपरके गजा पृथ्वीमिह के इस गुमानपंथका क्या स्वरूप था और उसमें
ममयम थ, और उसके बादभी कुछममय रहे है। पंदोलन किन किन बातोंकी विशेषता थी यह अभी ज्ञात नहीं हो सका, जयपुरमें गुमानपंथका एक मन्दिर बना हुआ
रामजीने दीवान रतन चन्द जीकी प्रणाम वि० मं. है जिसमें पं० टोडरमल्ल जीके सभी ग्रंथांकी स्वहस्त
१८२७ में पं टोडरमल्लजीकी परुपामिद्ध्युपायकी लिखित प्रतियां सुरक्षित हैं। यह मंदिर उक्त पथकी
अधूरी टीकाको पूर्ण किया था जैमाकि उमकी प्रशस्तिक स्मृतिको आज भी ताजा बनाये हुये है।
निग्नवाक्योमे प्रकट है :
सामिनम मुख्य है रतनचन्द दीवान । पंडित टोडरमल्ल जीके घर पर विद्याभिलापियां
पृथ्वीमिह नरेशको श्रद्धावान सुजान ॥६॥ का खासा जमघट लगा रहता था, विद्याभ्यासके लिए
तिनके प्रति रुचि धर्ममौ माघमिनमी प्रीत । घर पर जो भी व्यक्ति आता था उसे बड़े प्रेमके
दव-शास्त्र-गुरुकी मदा उम्मे महा प्रतीत ॥७॥ साथ विद्याभ्यास कराते थे। इसके सिवाय तत्वचर्चा
अानन्द सुत तिनको मन्या नाम जु दोलतगम । का तो वह केन्द्र ही बन रहा था। वहां तत्वचर्चाके
भृत्य भूप को कुल वणिक जाके बमये धाम || रसिक मुमुक्ष जन बगबर आते रहते थे और उन्हें आपके साथ विविध विषयोंपर तत्त्वचर्चा करके तथा
कछु इक गुरु प्रतापत कीनो ग्रन्थ अभ्याम । अपनी शंकाओंका समाधान सुनकर बडा ही संतोप
लगन लगी जिन धर्ममी जिन दामनको दाम ||६|| होता था। और इस तरह वे पंडितजीके प्रेममय विनम्र
ताम रतन दीवानने कही प्रीति धर येह । व्यवहारसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। आपके
करिये टीका प्ररणा उर धर धर्म मनेद ॥१०॥ शास्त्र प्रवचनमें जयपुरके सभी प्रतिष्ठित चतुर और
तब टीका पूरी करी भाषा रूप निधान ॥
कुशल होय चह संघको लह जीव निज जान||१|| १ चुनाचे श्वेताम्बरी मनि शानिविजय जी भी अपना
अटारमै ऊपरै संवत मानवधर्मसंहिता (शातसुधानिधि) नामक पुस्तक के पृष्ठ १६७
मनावीस ॥ मे लिग्यते हैं। कि- "धीम पंथमेमे फु(फ.) टकर मंबत १७२६
मगशिर दिन शनिवार है मुदि दोयज रजनीम ||१३|| में ये अलग हप, जयपरके तेरापंथियांम प० टोडरमल्ल ३ महाराम जी अोमवालजानिके उदामीन श्रावक थे । के पुत्र गुमानीराम जीने संवत १८३७ में गुमान पंथ बड़े ही बुद्धिमान थे और यह पं टोडरमल्ल जीके साथ निकाला।"
चर्चा करनेम विशेष रम लेन थे।