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________________ २५० अनेकान्त [ वर्ष ६ है-युगपन नहीं, युगपन (एक माथ) एक रूपसे और नहीं होसकती है। प्रत्युत इमके, सर्वथा एकत्वके वचनअनेकरूपसे वस्तु वचनके द्वारा कही ही नहीं जाती, द्वारा अनेकत्वका निराकरण होता है और अनेकत्वका क्योंकि वैसी वाणीका असंभव है-वचनमे वैसी निराकरण होनेपर उसके अविनाभावी एकत्वके भी शक्ति ही नहीं है। और इस तरह क्रमसे प्रवर्तमान निराकरणका प्रसङ्ग उपस्थित होनेसे असत्यत्वकी वचन वस्तुम्प-मत्य-होता है उसके असत्यत्वका परिप्रापि अभीष्ट ठहरती है। क्योंकि वैसी उपलब्धि प्रसङ्ग नहीं आता, कांकि उमकी अपने नानात्व और नहीं है । और मर्वथा अनेकत्वके वचनद्वारा एकत्वका एकत्वविषयमे अङ्ग-श्रीभावसे प्रवृत्ति होनी है। जैसे निराकरण होता है और एकत्वका निराकरण होनेपर 'स्यादेकमेव वस्तु' इम वचनके द्वारा प्रधानभावसे उसके अविनाभावी अनेकत्वके भी निराकरणका एकत्व वाच्य है और गौणरूपसे अनेकत्व, 'म्यादनेक- प्रमङ्ग उपस्थित होनेसे मत्यत्वका विरोध होता है। मेव वस्तु' इस वचनके द्वारा प्रधानभावसे अनेकत्व और इसलिय अनन्त धर्मरूप जो वस्तु है उसे अङ्गऔर गौग्गरूपसे एकत्व वाच्य है, इस तरह एकत्व अङ्गी (अप्रधान-प्रधान) भावके कारण क्रमसे वाग्वाच्य और अनेकत्वके वचनके कैसे असत्यता होसकती है। (वचनगोचर) समझना चाहिये।' स्मरण शक्ति बढ़ानेका एक अचूक उपाय यदि तुम विचारके पक्षीको, वह जब और जहाँ प्रकट हो. पिजड़ेमे बन्द न करोगे तो वह सम्भवतः सदाके लिये तुम्हारे पाससे चला जायगा. कुछ भी हो उसे लिख डालो, उसे फौरन लिखो, बादमे तुम उन दममेसे नीको खारिज कर सकते हो। लेकिन अगर तुम उन दसमेसे एक भी बचाकर रख लोगे तो उससे तुम लाभ उठाओगे। इस लिये जब कभी तुम्हारे सामने नया विचार आये या नई बात दिमागमे पैदा हो, अथवा तुम कोई नई खोज कग तो उसे कागजपर लिख डालो। मस्तिष्कके विषयमे यह न समझना चाहिये कि वह किसी बातको ढूंढने में पुस्तकालयका काम करेगा. अथवा अपने कामके लिये हम जिन तथ्योकी आवश्यकता पड़ता है उनका वह गोदाम है । मस्तिष्कका कार्यक्षेत्र बहुत ऊँचा है-रचना. समन्वय मंघटन, प्रेरणा देना और निर्णय करना ये उसके श्रेष्ठ कार्याममे है। यह काम उमसे लीजिए। कागज और पेमिल खरीद कर तथ्यांके लिख डालनेमे उनका इम्तमाल करना. मनमें बेकार बातोको इकट्ठा करनेकी अपेक्षा बहुत अधिक सस्ता है। यह एक विज्ञान-मम्मत दृष्टिकोण है जिमे गत कुछ वाँसे मनोवैज्ञानिक एकमतसे म्वीकार करने लगे हैं। -वमन्तलाल वर्मा
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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