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किरण ६]
जैनपुरातन अवशेष
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से सम्बद्ध हैं।
थे । ऐसी स्थितिमे लोग व्याख्यानादि औपदेशिक गुफाओंका निर्माण जिन विशेष परिस्थितियोंमें वाणीका अमृतपान करने के लिये जङ्गलोंमे जाया करते थे किया गया था वे तत्त्व ही आज विलुप्तप्राय हैं। आध्या- जैसाकि पौराणिक जैन पाख्यानोंसे विदित होता है त्मिक साधनाके उन्नत पथपर अग्रसर होने वाली जिनमन्दिरकी आत्मा-प्रतिमाएँ भी नगरके बाहिर भव्यात्माएँ यहाँपर निवास कर, दर्शनार्थ आकर गुफाओंमे अवस्थित रहा करती थीं। ऐसी स्थितिमें अपूर्व शान्तिका अनुभव कर आत्मिकतत्त्वके रहस्य सहजमे कल्पना जागृत हो उठती है कि या तो दोनोंके तक पहुँचनेका शुभ प्रयाम करती थीं, प्राकृतिक वायु- लिये म्वतन्त्र स्थान रहे होंगे या एक हीमें दोनोंके मण्डल भी पूर्णतः उनके अनुकूल था, स्वाभाविक लिये पृथक् पृथक् ग्थान रहे होंगे, मैने कुछ गुफाएँ शान्ति ही चित्तवृत्तियोंको स्थिरकर एक निश्चित मार्ग ऐमी देखी भी है। प्राचीन मन्दिरके नगर बाहर की ओर जानेके लिये इगित करती है। इनमें बनाए जाने का भी यही कारण है । मेवाड़ादि प्रदेशोंमें उत्कीणित विशालकाय ध्यानावस्थित जिन-प्रतिमाएँ जो जैन मन्दिर जङ्गलोंमे बहुत बड़ी संख्यामे उपलब्ध प्रत्येक दर्शनार्थीको एक बहुन बड़ा अनुपम सौंदर्य होते है वे गुफाओंकी पद्धतिके अवशेषमात्र है। वहाँ देती है, राग, द्वेष, मद, प्रमाद तथा आत्मिक प्रवच- ताला वगैरह लगानेकी आवश्यकता ही क्या थी? नाओंसे बचने के लिये, शुन्यध्यानमे विरत होनेमे जो क्योंकि वहाँ न तो श्राभूषण थे और न वैसी संपत्ति साहाय्य देती हैं वह अन्यत्र कहाँ ? कुछ गुफाएँ तो के लूट जानेका ही कोई भय था, यह प्रथा बड़ी अनक जिनमूर्ति एवं तदङ्गीभूत समस्त उपकरणोंसे सुन्दर और सर्व लोगोंके दर्शनके लिये उपयुक्त थी। सुसज्जित दृष्टिगोचर होती है जिनको देखनेसे अव- प्राज दशा भिन्न है। यही कारण है कि आज निवृत्ति भासित होता है कि मानो यहाँ शिल्पकला उन प्रधान जैन मंस्कृतिका प्रवाह रुक-सा गया है। कलाकारोंकी जीवित छैनीका तीव्र परिचय करानी है प्राचीन गुफाओंमें उदयगिरी खण्डगिरी, अइहोल कथनका तात्पर्य यह कि मानवोंके दैनिक जीवन और सित्तनवासल............ चांदवाड़, रामटेक, एलूरा। उनके प्रति औदासीन्यभावोंकी प्रेरणात्मक जागृति इन गुफाओंसे मानना होगा कि दशम शती तक कराने वाले सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्वोंका ममीकरण दृष्टि- सात्विक प्रथाका परिपालन होता था) ढागिरी, गोचर होता है। मानवके उन्नत मस्तिष्कक चरम जोगीमारा, गिरनार आदि विभिन्न प्रान्तोंमे पाई विकासका जीवन प्रतीक हमें वहाँ दीखता है। जाने वाली हाति प्राचीन और भारतीय तक्षणकलाकी
इन गुफाओंके दो प्रकार किसी समय रहे होंगे उत्कृष्ट मौलिक सामग्री है। गुफाओंके सौन्दय अभिया एक ही गुफामें दोनोंका समावेश हुआ होगा, वृद्धि करनेक ध्यानमे जोगीमाग, मिननवास आदि कारण कि जैनोंका सांस्कृतिक इतिहाम हमे बताता है में चित्रांका अङ्कन भी किया गया था, इन भित्तिकि पूर्वकालमे जैनमुनि अरण्यमें ही निवाम करते थे चित्रांकी परम्पराको मध्यकालम बहुत बड़ा बल मिला, कंवल भिक्षार्थ-गोचरीके लिये ही नगरमे पधारते भारतीय चित्रकला विशारदोका नो अनुभव है कि १ राजगृहम शालिभद्रका एक सुन्दर विशाल निर्माल्यकृप' आज तक किमी न किसी रूपमे जैनोन भित्तिचित्र है जिस अाजकल "मगिमारम" कहते हैं। मणिनाग परम्पराके विशुद्ध प्रवाहको आज तक कुछ प्रशतक नामक काई बोद्ध महन्त थे, अत: उनके नामके साथ यह सुरक्षित रखा है। प्राचीन स्मारक जुट गया, सास्कृतिक पतनका इसमे बढ़ ता०८-३-४८को शान्तिनिकेतनमे कलाभवनके कर और क्या उदाहरण मिल सकता है। भारतमें ऐसे प्राचार्य और चित्रकलाके परम मर्मज्ञ श्रीमान् नन्दस्मारक बहुत हैं, विद्वान लोग प्रकाश डालें । मुगलकाल लालजी बोमको मैंने अपने पासकी हस्तलिखित जैन की मस्जिदे पूर्वमे जैन मन्दिर थे ।
सचित्र कृतियाँ एवं बड़ौदा निवासी श्रीमान् डॉ०