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किरण ६)
जैनपुरातन अवशेष
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वर्तमान हैं, जिनपर लाखों पृष्ठोंमें लिखा जाय तो मेरे मित्र 'मोडर्नरिव्यु' के वर्तमान संपादक कम है । मुझे तो प्रकृत निबन्धमें केवल जैनपुरातत्व श्रीमान् केदारनाथ चट्टोपाध्याय, जो पुरातत्त्वके अच्छे के अंगीभूत जो अवशेष उपलब्ध होते हैं नष्ट होने विद्वान है, बता रहे थे कि उनके गाँव-बाँकुडाकी की प्रतीक्षामें हैं-उन्हींपर अपने त्रुटिपूर्ण विचार व्यक्त पहाड़ियोंमे बहुतसी जैन प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं जो कर समाजके विद्वान और धनीमानी व्यक्तियोंका रक पाषाणपर उत्कीर्णित हैं, इनके आगे वहाँकी ध्यान अपनी सांस्कृतिक सम्पत्तिकी ओर आकृष्ट जनता न जाने क्या-क्या करती है। पश्चिम बङ्गालमें करना है और यही इस निबन्धका उद्देश्य है। सराकजातिके भाइयोंके जहाँ-जहाँपर केन्द्र हैं उनमें
आर्यावर्तका सम्भवतः शायद ही कोई कोना प्राचीन बहुतसी सुन्दर कलापूर्ण शिखरयुक्त मन्दिरगेमा हो जहाँपर यत्किञ्चितरूपेण जैन-पुरातत्त्वक प्रतिमाएं सेकड़ोंकी संख्यामे उपलब्ध हैं। इन अवशेषों अवशेष उपलब्ध न होते हों, प्रत्युत कई प्रान्त और को मैने तो देखा नहीं परन्तु मुनि श्रीप्रभाविजयजी जिले तो ऐसे है जो जैनपुरातत्त्वकी सभी शाखाओंके की कृपासे उनकं फोटो अवश्य देखे, तबियत बड़ी पुरातनावशेषोंको सुरक्षित रक्खे हुए है क्योंकि प्रसन्न हुई । श्रीमान् ताजमलजी बोथरा-जो वर्तमान सांस्कृतिक उच्चताके प्रतीक-सम इनके निर्माणमे सराकजातिकी संस्थाके मन्त्री है-से मैं आशा
आर्थिक सहायक जैनोंने अपने द्रव्यका अन्य समा- करता हूँ कि वे सारे प्रान्तमें-जहाँ सराक बसते है जापेक्षया सर्वाधिक व्यय कर जैन संस्कृतिकी बहत -जहाँ कहीं भी जैन अवशेष हों उनके चित्र तो अच्छी सेवा की है। बङ्गाल, मेवाह और मध्यप्रान्त अवश्य ही लेलें । खोजकी दुनियासे यह स्थान कोसों आदि कुछ स्थान ऐसे है जहाँपर कालके महाचक्रके
दर है। कई ऐसे भी है जो प्राचीन स्मारक रक्षा प्रभावसं भाज जैनोंका निवास नहीं है पर जैनकला कानूनमे नहानेसे उनके नाशकी भी शीघ्र संभावना है। के मुखको समुज्ज्वल करने वाले मन्दिर, स्तम्भ, मेदपाट-मेवाड़मे भी कलाके अवतार-स्वरूप जैन प्रतिमा या खडहर विद्यमान है। ये पूर्वकालीन जैनों मन्दिरोंकी संख्या बहुत बड़ी है, ये खासकर १४वीं के निवासके प्रतीक है। एक समय था जब बङ्गाल शताब्दीकी बादकी तक्षणकलासे सम्बन्धित हैं। बड़े जैन संस्कृतिसे श्रासावित था, पूर्वी बङ्गालमे जैन विशाल पहाड़ोंपर या तलहटीमे मन्दिर बने हैं जहाँ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है । कलकत्ता विश्वविद्यालयकं पर कहीं-कहीं तो जैनीकं घरकी तो बात ही क्या प्रो० गोस्वामीने मुझे बताया था कि पहाड़पुर- की जाय मानवमात्र वहाँ है ही नहीं। ऐसे मन्दिरोंमेसे दिनाजपुरमे दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ निकली हैं वे लोग मूति तो अवश्य ही उठा लेगये परन्तु प्रत्येक प्राचीन कला-कौशलकी दृष्टिसं अध्ययनकी वस्तु है। कमरोंमे जो लेख हैं उनकी सुधि आज तक किसीने (इन प्रतिमा-चित्रोंका प्रकाशन प्रा०स० इ० रिव्में नहीं ली। कहनेको ता विजयधर्मसूरिजीन कुछ लेख होचुका है)।
अवश्य ही लिये थे पर उन्होंने लेखांके लेनेमे तथा आज भी उस ओर जब कभी उत्खनन होता है प्रकाशन भी पक्षपातसे काम लिया, साम्प्रदायिक तब जैनधर्मसे सम्बन्ध रखने वाली सामग्री निकलती व्यामोहकं कारण सव लेखोंका संग्रह भी वे न कर सके, ही रहती है; पुगतत्त्व-विभागवाले साधारण नोट पुरातत्त्वक अभ्यामीक लिये यह बड़े कलङ्ककी बात है। कर इन्हे प्रकट कर देते हैं, वे बेचारे इन अवशेषोंकी अत्यन्त खेदकी बात है कि उपर्युक साधनोंपर विविधता और प्रसङ्गानुसार जो भव्यता है, किसके न तो वहाँकी जैन जनताका समुचित ध्यान है और साथ क्या सम्बन्ध है आदि बाते ही आवश्यक न वहाँकी सरकार ही कभी सचेष्ट रही है। अस्तु, साधनोंके अभावसे नहीं जान पाते हैं तो फिर करें अब ता प्रजातन्त्रीय राज्य है, मैं आशा करता है कि भी तो क्या करें ?
वहाँके लोकप्रिय मन्त्री इस ओर अवश्य ध्यान देंगे।