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________________ अनेकान्त [ वर्ष व्याख्यानकी बात थी सो तो हो चुकी । अब मैं समझता हूँ अच्छा ही होरहा है। पाप करके आपके नगरके एक बड़े आदमीका कुछ अाग्रह है सो लक्ष्मीका संचय जिनके लिये करना चाहते हो वे प्रकट करता हूँ। भैया ! मैं तो ग्रामोफोन हूँ, चाहे जो उसके फल भोगनेमे शामिल न होंगे। बाल्मीकिका बजा लेता है जो मुझे जैसी कहता है वैसी ही कह किस्सा है। बाल्मीकि, जो एक बड़ा ऋषि माना देता हूँ। इन बड़े आदमियोंकी इतनी बात माननी जाता है, चोरी-डकैती करके अपने परिवारका पालन पड़ती है; क्योंकि उनका पुण्य ही ऐसा है । अभी करता था। उसके रास्ते जो कोई निकलता उसे वह यहाँ बैठनेको जगह नहीं है पर सेठ हुकुमचन्द्र लूट लेता था। एकबार एक साधु निकले। उनके आजाय तो सब कहने लगोगे, इधर आओ, इधर हाथमे कमण्डलु था । बाल्मीकिनं कहा-रख दो श्राश्रो। अरे हमारी तुम्हारी बात जाने दो, तीर्थकर यहाँ कमण्डलु । साधुने कहा-बच्चे! यह तो डकैती की दिव्यध्वनि तो समयपर ही खिरती है पर यदि है, इसमें पाप होगा। बाल्मीकिने कहा-मैं पापचक्रवर्ती पहुँच जाय तो असमयमे भी खिरने लगती पुण्य कुछ नही जानता, कमण्डलु रख दो। साधुने है। अपने राग-द्वेष है पर उनके तो नहीं है। चक्र- कहा-अच्छा, मैं यहाँ खड़ा रहूँगा, तुम अपने घरके वर्तीकी पुण्यकी प्रबलतामे भगवानकी दिव्यध्वनि लोगोंसे पूछ आश्रो कि मैं एक डकैती कर रहा हूँ अपने आप विग्ने लगती है। हाँ, तो यह सिंघईजी उसका जो फल होगा, उसमे शामिल हो, कि नहीं ? कह रहे हैं कि महिलाश्रमके लिये अभी कुछ होजाय लोगोंने टकासा जवाब दे दिया-तुम चाहे डकैती तो अच्छा है फिर मुश्किल होगा। भैया ' मैं विद्या- करके लाओ, चाहे साहकारीसे। हम लोग तो खाने लयको तो मांगता नहीं और उस वक्त भी नहीं मांगे भरमे शामिल है। बाल्मीकिको बात जम गई और थे, पर बिना मांगे ही सेठ २५०००) ₹ गया तो मैं वापिस आकर माधुसे बोला-बाबा ! मैने डकैनी क्या करूँ मै तो बाहरकी मस्थाओंको देता था, पर छोड दी। आप मुझे अपना चेला बना लीजिये। मुझे कह पाया कि यदि सागर इतने ही और देवे तो सब वही लेले । आप लोगोंने बहत मिला दिये। बात वास्तविक यही है। आप लोग पाप-पुण्यक कुछ बाकी रह गये मो आप लोग अपना वचन न द्वारा जिनके लिये सम्पत्ति इकट्री कर रहे हा वे निभाओगे तो किमीसे भीख मांग दगा। यह बात कोई साथ देने वाले नहीं हैं। अतः समय रहते महिलाश्रमकी है जैसे बच्चे तेमे बच्चियों। श्रापकी ही सचेत हो जाओ । देखे, आप लोगांमसे कोई हमारा तो है। इनकी रक्षामे यदि आपका द्रव्य लगता है तो साथ देता है या नहीं। समय रहते सावधान ! जौलो देह तरी काह रोगमों न घेरी जौली, जरा नाहि नेरी जासों पराधीन परि है । जौली जमनामा बैरी देय न दमामा जौली, मान कान रामा बुद्धि जाइन विगार है। तौलौ मित्र ' मेरे निज कारज संवार ले रे, पौरुष थकेगे फेर पीछे कहा कौर है । अहो भाग आये जब झोपरी जरन लागे, कुत्राके खुदाये तब कौन काज मरि है। -कवि भूधरदास के
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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