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अनेकान्त
[वर्ष ९
प्रभु सुकुमाल, वे राजर्षि सुकुमाल श्रीभगवती निश्चल, निजरस्वरूप है, नित्यानन्द हैं, सत्यजिनदीक्षासे विभूषित होकर तुरन्त वनको विहार स्वरूप है , ममयमार है। और यह देह गलनरूप, रोग करते हैं और उनके पीछे-पीछे उनके चरणांस जो रूप, नाना आधि-व्याधियांका घर है । यह मेरी नहीं रुधिर बहता धारहा था उमको चाटते हुए उनके और न मै इमका है। कौन कह सकता है कि ऐसे पूर्वले भवकी लात खाई हुई भावजका जीव शृगाली ध्यानमग्न और उच्चतम आत्मीय भावनामे लीन
और उसके दो बच्च नीना वहाँ पहुँच जाते है जहाँपर महामुनि सुकुमाल शृगालीक द्वारा खाये जाते हुए प्रभु सुकुमाल ध्यान-अवस्थाम-अग्लंड ध्यानमे निश्चल दुखी थे। नहीं, नहीं, शृगालीक द्वारा ग्वाये जाते हुए विराज रहे थे।
व महामुनि दुखी नहीं थे, किन्तु उनका आत्मा प्रभुका शृगाली अपने बच्चों सहित चरणोंकी परम सुखी था । वता आत्माकी चैतन्य परिणतिम्प तरफसे चाटना शुरू कर देती है, चाटते-चाटते वह
अमृतका पान कर रहे थे। आत्माका मुखानुभव भक्षण करना आरम्भ कर देती है, उधर दोनों बच्चे
करनेम वेसं लीन थे कि शरीरपर लक्ष्य ही नहीं भी प्रभुको भक्षण करते है । इस तरह वे तीनों हिंस्र
__ था। व अनन्त सिद्धांकी पक्तिम बैठकर आत्माके जन्तु उन महान मुनि श्रीमकुमाल म्वामीको तीन
आनन्दामनका उपयोग कर रहे थे। दिवस पर्यन्त भक्षण करते रहे । भक्षण करते-करते
इस प्रकार ध्यानमे लीन हो प्रभु इस नश्वरदहसे व प्रभुकी जंघा तक पहुँच गये। उधर प्रभ ध्याना- विदा होकर
विदा होकर माधमिद्धि विमानम विराजमान हा मढ है। ध्यानम विचारते हैं-मैं तो पूर्ण ब्रह्मम्वरूप जात है, जहॉस एक मनुष्य पय्याय प्रापकरके उमी ह, आत्मा हैं , ज्ञानस्वरूप हूँ , ज्ञायक हैं , चिदानन्द
भवसे मोक्षम पधारगे। धन्य इन महात्मा सुकुमाल हैं, नित्य है, निरञ्जन हें, शिव हैं . ज्ञानी है, अखड म्वामीका । मंग इन प्रभुवरको बारम्बार नमोस्तु । हैं, शुद्ध प्रान्मा हूँ, म्वयभू ३, अानन्दमयी है,
ना० २.-४-४८
पं० रामप्रसादजी शास्त्रीका वियोग !
पं० गमप्रमादजी शास्त्री, प्रधान कार्यकर्ता ऐ, पन्नालाल दि जैन सरस्वती भवन, बम्बई' का चैत्र वदी २ रविवार ता० ११ अप्रैलको शाम ५ बजे अचानक म्वगवाम होगया। आप अर्मेस अम्वन्थ चल रहे थे । श्रापकं निधनसे ममाजकी बड़ी क्षति हुई है । आप बड़े ही मिलनमार थे
और वीरसंवामन्दिरको समय-ममयपर भवनके अनेक प्रन्थोंकी प्राप्ती होती रहती थी। आपकी इस अमायिक मृत्युको मुनकर वीरसेवामन्दिर परिवारको बडा दुख तथा अफसोम हुआ। हम दिवगत आत्माके लिये परलोकमे मम्व-शान्तिको कामना करते हुए उनके कुटुम्बीज नोंके प्रति हार्दिक सम्वेदना व्यक्त करते है।
-परमानन्द शास्त्री