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(कैराना जिला मुजफ्फरनगरके बड़े मन्दिरके शास्त्रभण्डारका निरीक्षण करते हुये, अाजसे कोई १५ वर्ष पहले जो षटपत्रात्मक ग्रन्थसंग्रह प्राप्त हुआ था और जिसके षटदर्शनसूत्रादि अाठ ग्रन्थोमेसे 'रावण-पाश्वनाथ-स्तोत्र' नामका एक ग्रन्थ गत वर्षकी १२वीं किरण में प्रकाशित किया जाचुका है उसीपरसे यह 'स्वरूप-भावना' नामका ग्रन्थ भी नोट किया गया था, जो आज प्रकाशित किया जाता है। यह अध्यात्म-विषयका एक बड़ा ही सुन्दर एव चित्ताकर्षक लघु ग्रन्थ अथवा प्रकरण है। इसमे सदंपतः अात्माके शुद्ध स्वरूपका दिग्दर्शन कराते हुए 'उसी पावन स्वरूपकी मै सदा भावना करता हूँ' ऐसा बार-बार कहा गया है । इसके कर्ताका नाम मालूम नहीं होमका । कुछ दिन हुए देहली पंचायतीमन्दिरके शास्त्रभण्डारमे भी इसकी एक प्रतिका पता चला है, जो प्राचीन गुटकेमे है परन्तु उसमे भी कर्ताका नाम नहीं दिया । किसी अन्य विद्वानको यदि कर्ताके नामका पता चले तो वे सूचित करनेकी कृपा करें।
-सम्पादक
(भुजगप्रयात)
मुनि-स्तुत्य-चित्तत्व-नीरज-भृङ्ग, परित्यक्त-रागादि-दोषाऽनुसङ्गम । जगद्वस्तु-विद्योतक ज्ञानरूपं, सदा पावन भावयामि स्वरूपम् ॥५॥ स्वशुद्धात्म-पीयूष-वा शिपूरं, जिनेन्द्रोक्त-जीवादि-तत्त्वार्थ -सारम् । सुवर्णत्ववन्नित्य-चैतन्य-रूप, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम ।।२।। गलत्कर्म-बन्ध त्रुटन्मोह-पाशं, स्वदेह-त्रिलोक-प्रमाण-प्रदेशम् । तरुस्थाऽग्नियद्देहतो भिन्नरूपं, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम ॥३॥ शरीरादि-नोकर्म-कर्म-अमुक्तं, निरुद्धासवं सप्तङ्गि-प्रयुक्तम् । स्वशक्ति-स्थिताऽनन्त-बोध-स्वरूप, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम ।।४।। म्वरुच्यग्नि-निर्दग्ध-दुःकर्म-कक्ष, स्वसंवेदन-ज्ञान-गम्य निरक्षम् । लसदशन-ज्ञान-चारित्र-रूप, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम् ॥५॥ परिप्राप्त-संसार-वार्राशि-पार, निजानन्द-सत्पान-भृञ्चित्करीरम । चिदानन्द-बीजं परंब्रह्मरूप, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम् ॥६॥ विनष्ठाऽन्यभाव-प्रभून-प्रमाद, निरस्ताङ्ग-सज्ञान-लिङ्गादिभेदम् । निरातङ्क-सानन्द-चैतन्य-रूपं, सदा पावनं भावयामि स्वरूपम् ॥७॥ स्वचिद्भाव-वाक-सम्भवाऽनन्त-शक्ति, निराशं निरीश परिप्राप्त-मुक्तिम । त्रिलोकेश्वरं निश्चलं नित्यरूपं, सदा पावन भावयामि स्वरूपम ।।८।।
स्वरूपभावना समाप्ता