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________________ गाँधीजीका पुण्य -स्तम्भ [भीवासुदेवशरण अग्रवाल] [इम लेखके ले० डा. श्रीवामुदेवशरणजी अग्रवाल एक बहुत बड़े पाच्य विद्या विशारद विद्वान् है । मथुरा ओर लखनऊके म्यूजियमोम क्यूरेटर (Cuator) के प्रतिष्ठित पदपर रह चुके हैं और अाजकल न्यू देहलीमे सरकारी पुगतत्त्व-विभागके एक बहुत ऊँचे पदपर श्रामीन है। बडे ही उदार हृदय एव मजन-स्वभावके महानुभाव है । आपने गाँधी जीक पुण्य स्तम्भके मुझावको लेकर यह जी लेग्य लिखा वह बडा ही महत्वपूर्ण है । इममे विजय कीर्तिस्तम्भादि विविध स्तम्भोंक प्राचीन इनिहामपर भारी प्रकाश पड़ता है । महृदय पाठक इमपरमे स्तम्भोंकी दृष्टि पोर उनके महत्वका कितना ही बोध प्राप्त कर मकने है। यह लेग्व प्रथमतः २२ फरवरी मन् १६४८ के दैनिक हिन्दुस्तानमें प्रकट हुश्रा है श्रार वढीम यहांपर उद्धत किया जाता है । लेग्वक महादयने हिन्दुस्तानम मुद्रित लेग्वको पुनः पढकर उसकी अशुद्धियोको मुधार देनकमाय लेख मम्बन्धी स्तम्भ चित्रोंक ब्लॉक भी हिन्दुस्तान ऑफिमम दिला देनकी कृपा की है। हम अनुग्रहक लिये हम अापके बहुत अाभारी है । माथ ही हिन्दुस्तानके सहायक सम्पादकजीका भी आभार मानते है, जिनके माजन्यम चित्रोक ब्लॉक शीघ्र प्राम दो मके हैं। -मम्पादक "जहाँ वे बैट वह मन्दिर होगया और जहाँ प्रति हमारं मम्मानकं प्रतीक बन जाते है। विचार उन्होंने पैर रम्बा वह पवित्र भूमि बन गई।" और कर्म इन्हीं दोनोंका ममुदित नाम जीवन है। नेहरूजीक ये शब्द गाँधीजीके प्रति राष्ट्रक सुन्दर और लोकोपयोगी जीवन-तत्त्वको किमो एक मनमे भरी हुई देश-व्यापी भावनाको प्रकट करते है। व्यक्तिने इतनी अधिक मात्राम इतने थाई ममयमें वह एक ज्योति थे। ज्योतिका मन्दिर उनका शरीर, और इनने बहुसंख्यक व्यक्तियों के लिये मुलभ और प्रकाश-स्तम्भकी नरह जहाँ-जहाँ गया उमने वहां- प्रत्यक्ष मिद्ध बनाया हो, इसका उदाहरण भारतक वहाँ युग-युगमे फैन हुए अन्धकार और मृछांका इनिहामम दृमग नहीं । हमारे इनिहामका लम्बा हटाकर चैतन्यका पालांक फैला दिया । निम्पिल मृन-काल अपने ममम्न नेज और हिनकारी अशका भुवनमे भरी हुई दिव्य ज्यानि उनके द्वारा जिम जिम लेकर गांधीजीपी अान्माम प्रविष्ट होगया और उनके स्थानपर विशेषरूपमं प्रकट हाती रही वह मब शब्दांम ओर कांक द्वारा पृट निकला। वे कम और मचमुच पवित्र है-न केवल वनमान युगके लिये वे शब्द गणक भावा जीवनम मन्चे स्मारककी अपितु आने वाली पाढियाँक लिये भी। काटानकाटि भानि स्थायी रहंगे। भौनिक, म्मारक भी इन्हींको जन इस महापुरुषकी बन्द नाकं लिय आने हुए उन- चिरजीवन प्रदान करन माधनमात्र बन मन है। उन स्थानोंम अपनी श्रद्धाञ्जलि चढायगे और हृदय वदोंक हिग्गयस्तप एव बुद्धि की कृतज्ञतामे पूण प्रणाम-भाव अर्पित करेंगे। महान पुरुष अमर विचागंक प्रतीक हात है। वीक ममयम इम प्रकारकं म्मारकांकी कल्पना उनके लिये जोम्मारक हम रचने व उन विचाग की जामकनी है, जब दिव्य विचार और दिव्य
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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