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Regd. A-731. Mitrdas.3..3.2013
ASMAHA
कीरमधामन्दिरके नये प्रकाशन
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PHPra2427.ma-USERE:
१ अनित्यभावना- मुख्तार श्रीजुगलकिशोरके ६ न्याय-दीपिका (महत्वका नया संस्करण). हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ-सहित । इष्टरियोगादिके न्यायाचार्य पं. दरवारीलालजी कोठियाद्वारा सम्पादित कारण कमा दी शोकमन्तत हृदय क्यों न हो, इसको एक और अनुवादित न्यायदीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण - बार पढ़ लेनेने बड़ी ही शान्तताको प्राप्त हो जाता है। अपनी खाम विशेषता रखता है। अब तक प्रकाशित इसके पाठसे उदामीनता तथा खेद दूर होकर चिचमें संस्करणोंमें जो अशुद्धियर्या चली श्रारही थी उनके प्राचीन प्रसन्नता और सरसना श्राजाती है। सर्वत्र प्रचारके प्रतियोंपरसे संशोधनको लिये हुए यह संस्करण मूलग्रंथ । योग्य है । मू०)
और उनके हिन्दी अनुवाद के साथ प्राक्कथन, सम्पादकीय २ आचार्य प्रभाचन्द्रका तत्त्वार्थमत्र- नया १०१ पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना, विषयसूची और कोई ८: प्राप्त संक्षिप्त सूत्रग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी सानुवाद परिशिष्टोंसे संकलित है, साथमें सम्पादक-द्वारा नवनिर्मित ध्याख्या सहित । मू०)
'प्रकाशाख्य' नामका एक संस्कृत टिप्पण लगा हुअा है, . ३ सत्साधु-स्मरण-मङ्गलपाठ- मुख्तार श्री- जो ग्रन्थगत कठिन शन्दों तथा विषयोंका खुलासा करता जुगलकिशोरको अनेक प्राचीन पद्योको लेकर नई योजना, हुआ विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके कामकी चीज मुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि-मदित । इसमें श्रीवीर है। लगभग ४०० पृष्ठोंके इरा सजिल्द वृहत्संस्करणका : यद्धमान और उनके यादवे, जिनमेनाचार्ग पर्यन्न, २१
लागत मूल्य ५) रु. है। कागजकी कमी के कारण थोडी महान प्राचार्योके अनेकों श्राचायो मथा विद्वानों द्वारा
ही प्रतिया की है। अत: इन्सकोंको शीघ्र ही मंगा: किये गये महत्वके १३६ पुण्य स्मरणोंका संग्रह है और
लेना चाहिये। शुरुमै १ लोकमक्कल-कामना, २ नित्यकी श्रात्म-प्रार्थना,
७ विवाह-समुद्देश्य-लग्यक प० जुगलकिशोर ३ साधुवेशनिदर्शक-जिनस्तुति, ४ परमसाधुमखमदा और मुख्नार, हालमें प्रकाशित चतुर्थ सस्करण। ५ सत्माधुवन्दन नामके पांच प्रकरण है। पुस्तक पढ़ते
यह पुस्तक दिन्दी-साहित्यमे अपने हंगकी एक ही समय पड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते है और
चीज है। इममें विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषयका बड़ाही. साथ ही प्राचार्योका कितना ही इनिहाम सामने श्राजाना
मार्मिक और तालिक विवेचन किया गया है, अनेक । है। नित्य पाठ करने योग्य है। मू०॥)
विरोधी विधि-विधानों एवं विचार-प्रवृनियमि उत्पन्न दुई। ४ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड- यह पञ्चाध्यायी
विवाहकी कठिन और जटिल ममस्यायोंको यट्टी युक्ति तथा लाटी सहिता श्रादि अन्योंके कर्ता कविवर गजमल्लकी साथ हारक स्पष्टीकरण द्वारा मुलझापा
साथ हटके स्पष्टीकरण-द्वारा मुलझाया गया है और इस अपूर्ण रचना है। हममें अध्यात्मसमुद्रको कमें बन्द तरह उनमें दृष्टिविरोधका परिहार किया गया है। विवाह : किया गया है । सायमें पायाचार्य प० दरबारीलाल कोठिया क्यों किया जाता है? धर्मसे, ममाजसे और गृहस्थाश्रममे :
और परिहा परमानन्दजी शास्त्रीका सुन्दर अनुवाद, उसका क्या सम्बन्ध है? यह कब किया जाना चाहिये . विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीकी उसके लिये वर्ण और जानिका क्या नियम हो सकता है ? लगभग ८० पेजमा मदनपूर्ण प्रस्तावना है। बड़ा हो विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि-लाभ होता है? उपयोगी प्रन्न है। मृ.१॥)
इत्यादि बातोंका इस पुसाकका बड़ा ही युक्ति पुरस्सर : ५ उमास्वामि-श्रावकाचार-परीक्षा- मुख्तार एवं हृदयग्राही वर्णन है। पार्ट पेपर पर छगी है । श्रीजुगलकिशोर जीकी प्रथरीक्षायों का प्रथम अंश. विवाहोंके अवसरपर वितरण करने योग्य है। मू०॥) अंग-परीक्षाओं के इतिहास को लिये हुये १४ पेजकी नई
प्रकाशन विभागप्रहावना-महित । मू०)
वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर)
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TRENT माज.rani
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