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________________ ३०४ अनेकान्त [वर्ष ८ नाम दिया है और न ग्रन्थका रचनाकाल ही, इससे गुणनन्दी' का भी है, जो सम्भवतः वे ही जान उनके विषयमें कुछ नहीं कहा जा सकता। हाँ, ज्वाला- पड़ते हैं जो चन्द्रप्रभचरितके अनुसार अभयनन्दीके मालिनी कल्पके का इन्द्रनन्दिने ग्रन्थका रचनाकाल गुरु थे; और इस तरह इन्द्रनन्दीके दीक्षा-गुरु शक संवत ८६१ (वि० सं० ९९६) दिया है और यह बप्पनन्दी मन्त्रशास्त्र-गुरु गुणनन्दी और सिद्धांतसमय नेमिचन्द्र के गुरु इन्द्रनन्दीके साथ बिल्कुल शास्त्र-गुरु अभयनन्दी हो जाते हैं। यदि यह सब सङ्गत बैठता है, परन्तु इस कल्पके कर्ता इन्द्रनन्दीने कल्पना ठीक है तो इससे नमिचन्द्रके गुरु इन्द्रनन्दीअपनेको उन बप्पनन्दीका शिष्य बतलाया है जो का ठीक पता चल जाता है, जिन्हें गोम्मट सार वामवनन्दीके शिष्य और इन्द्रनन्दी (प्रथम) के (क० ७८५) में श्रुतसागरका पारगामी लिखा है। प्रशिष्य थे। बहुत संभव है ये इन्द्रनन्दी वप्पनन्दीक नेमिचन्द्रने अपने एक गुरु कनकनन्दि भी लिखे दीक्षित हों और अभयनन्दीसे उन्होंने सिद्धांतशास्त्र- हैं और बतलाया है कि उन्होंने इन्द्रनन्दिके पाससे की शिक्षा प्राप्त की हो, जो उस समय सिद्धान्त-विषय- सकल सिद्धान्तको सुनकर 'सत्वस्थान' की रचना की के प्रसिद्ध विद्वान थे; क्योंकि प्रशस्ति' में बप्पनन्दी है । यह सत्वस्थान ग्रन्थ 'विम्तरसत्वत्रिभंगी' के की पुराण-विषयमें अधिक ख्याति लिखी है- नामसे श्राराके जैन-सिद्धान्त-भवनमें मौजूद है, सिद्धांत विषयमें नहीं-और शिष्य इन्द्रनन्दी जिसका मैंने कई वर्ष हुए अपने निरीक्षणकं ममय (द्वितीय) को 'जैने सिद्धांत वाधौं विमलितहृदयः' नोट ले लिया था। ५ः नाथूरामजी प्रमीन इन प्रकट किया है । जिससे सिद्धांत विषयमें उनके कोई कनकनन्दीको भी अभयन्दीका शिष्य बतलाया, खास गुरु होने भी चाहिये । इसके सिवाय, ज्वालिनी- परन्तु यह ठोक मालूम नहीं होता; क्योंकि कनककल्पके कर्ता इन्द्रनन्दीने जिन दो आचार्योंके पाससे नन्दिके उक्त ग्रंथपरसं इसकी कोई उपलब्धि नहीं इस मन्त्रशास्त्रका अध्ययन किया है उनमें एक नाम होती--उसमें साफ़ तौरपर इन्द्रनन्दिको ही गुरुरूप से उल्लेखित किया है । इस सत्वस्थान ग्रन्थको १ आमीदिन्द्रादिदेवस्तुतपदकमलश्रीन्द्रनन्दिमुनीन्दो नमिचन्द्रने अपने गोम्मटमारके तीसरे सत्वस्थान नित्योत्सर्पञ्चरित्रो जिनमत जलधिधतिपापापलेपः । अधिकार में प्रायः ज्यों-का-त्यों अपनाया है--आराकी प्रज्ञानावाम लोद्यत्यगुणगणभृतोत्कीर्णविस्तीर्णमिद्धा-- उक्त प्रतिक अनुमार प्रायः ८ गाथाएँ छोडी गई हैं। न्ताम्भोराशिस्त्रिलोकवाम्बुज वनविच सद्यशोराजहंसः।।१ शेप सब गाथाांका, जिनमें मंगलाचरण और यद्वृत्त दुरितारिसन्यहनने चण्डामिधाराथितम् जैने सिद्धान्तबाधा निमलतहृदयस्तेन सद्धतोऽयम् चित्तं यस्य शरत्सात्मलिलबत्वच्छ सदा शीतलम् । हलाचायोदिता व्यरचि निरूपमो वालिनामंत्रवादः ॥५ कीर्तिः शारदकामुदी शशिनृतो ज्योत्स्नेव यत्याऽमला अशतस्यै से कतिप्रमाणशकवत्मरेवतीतसु । स श्री वामपनन्दिमन्द्रनिपतिः शिप्यस्तदीयो भवेत् ॥२॥ श्रीमायग्वेटकट के पर्वशयनयतृतीयायाम ॥ शिष्यस्तस्य महात्मा चारनुयोगेष चरमनिविभवः । श्रीव पण दिगुरुमित बधानपत्रितपदा जः ॥शा १ क दर्पण ज्ञात तनाऽपि स्वमुतानविशेषाय । लोक यस्य प्रसादादांन मुनिजनम्मत्पुरागार्थवेदी गुणनंदिश्रीमनये व्याख्यात मोपदेश तत ॥२॥ यस्वाशानभमुर्धन्यतिविनयश: श्रीवितानो निबद्धः । पाश्चतयोदयोराप तच्छास्त्र ग्रन्थतोऽयंतचाप । कालास्तायेन पाराणिक विमा घोतितास्तपुराण --- मुनिनेन्द्रनन्दिनाम्ना मावागादतं विशेषगा ||२५|| व्याख्यानाद कागद प्रथिन गुणगान्ताय कि यी २ परइदण दिगुरूगा पाम साऊण सयामद्धत । शिष्यसम्येन्द्रनंदिम नगणगोदामनमानिशमः सिरक गयणदिगमगा भत्ताग समुछिटटक.०३६६॥ प्रज्ञातीक्ष्ण स्त्र धाग-विदलित बहलाऽजानपनीवितानः । ३ देखो, जनसाहित्य र इतिहास पृ० २६६ ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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