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________________ अनेकान्त [वर्ष ८ पूज्य महाराजश्रीके सत्संगसे आपके हृदयमें जैन- जनिक क्षेत्र अभी इतना विशाल नहीं है। भिर भी श्र. साहित्यके मनन एवं पुनरुद्धारकी उत्कट अभिलाषा उत्पन्न भा० मारवादी सम्मेलनकी सिलहटशाखाने श्रापके कार्योसे हुई। और उन्हींकी सत्संगतिसे श्रापका हृदय साहित्य, धर्म प्रभावित होकर आपको अपना मंत्री चुना था। और साथ तथा अध्यात्म जैसे गूढ़ विषयोंकी ओर आकृष्ट हुश्रा। ही सम्मेलनकी कलकत्ता वर्किङ्ग कमेटी तथा नागरी प्रचायहींसे आपकी प्रतिभाके प्रस्फुटन के लिये क्षेत्र मिलता है रिणी सभाकी प्रबन्धकारिणी कमेटी (सं० १९६८-१९६६) और वे अपने उद्देश्यकी प्राप्ति के लिये बद्ध-परिकर हो क लिये श्राप सदस्य निर्वाचित हुए हैं। इसके अतिरिक्त जाते हैं। प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूपसे बार बीकानेरके साहित्यिक और श्रापका धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन भी विशेष जैनसामाजिक कार्योंमें निरन्तर भाग लेते ही रहते हैं। बीकानेर राज्यके सात्यि-सम्मेलनके अन्तर्गत राजस्थानी महत्वपूर्ण है। श्राप वर्षभर में कभी रात्रिमें भोजन करना तो साहित्यपरिषदके श्राप सभापति भी रह चुके हैं। दूर रहा पानी भी नहीं पाते । श्राप प्रातदिन सामायिक एवं साहित्य क्षेत्रमें आपने विशेष रूपसे प्रगति की है। स्वाध्याय करते हैं। जैनग्रन्थोंका अापने गहन अध्ययन एव श्राप हिन्दी एवं राजस्थानी भाषाओंके उत्कृष्ट लेखक अनुशीलन किया है। जिसके परिणाम स्वरूप आपने संकलन कर्ता एवं संपादक है। आपकी भाषा सरल, सार, 'सम्यक्त्व' नामक एक पुस्तक लिखी है जो अभी अप्रकाशित गर्भित व नवीन विचारोंसे अोतप्रोत रहती है। जो कुछ भी है। आध्यात्मिक विचारणा श्रापका अत्यन्तप्रिय विषय रही श्राप लिखते हैं, उसे प्रमाणोंकी तराजूमें तौलकर लिखते अापने भारतके प्राय: सभी जैन-तीयों और ऐतिहासिक है। आप गंभीर विचारक एवं अन्वेषक है। राजस्थानी स्थानोका पर्यटन किया है। साहित्य और जैनसाहित्यके सबन्धमें आपने अनेक बहुत महव्यापारिक क्षेत्र--अापने व्यापारिक क्षेत्रमें भो त्वपूर्ण खोजें की हैं। जैनसाहित्यमें तो श्राप विशेष पारंगत है। आश्चर्य-जनक उन्नति की है । आपका व्यापार कल- आप कई वर्ष पूर्व कविता भी करते थे आपकी कविकत्ता, बोलपुर, चापड़, सिलहट, मलपाडा ओर बाबूरहाट तानोंकी संख्या करीब १०० है, जिनमेंसे बहुत सी अप्रकाश्रादि प्रासाम-बंगाल प्रान्ताम पाट, चावल, गला कपड़ा और शित है। बाद में आपने कविता करना इस विचारसे छोड श्राढतका होता है। सिलहट व बाबूरहाटकी दुकानोंका दिया कि हमारी प्राजकलको कविताएं दुनियाँका इतना काम आप ही देखते हैं। बाबूरदाटमें तो जनता 'अगरचंद या नही कर सकती. जितना कि प्राचीन कवियोंकी नाहटा' फर्मको 'राजा बाबू' का फर्म कह कर पुकारती है। उत्कृष्ट रचनाएँ। वे नष्ट होती रहे और हम नवीन रचनामें आपने अभी सिलहटमें 'नाहटा होजियरी' नामक एक लगे रहें उनकी कदर न करें यह अनुचित है ,इसी हेतु श्राप फैक्टरी स्थापित की थी। प्राचीन कवियोंकी कविताओंका संकलन कर उन्हें प्रकाशित व्यक्तित्व-श्राप सरलता और सादगीकी साक्षात् का पक्षात् कर रहे हैं जिनका एक संग्रह 'ऐ. जैनकाव्य संग्रह' के मति है । आपके जीवनकी यह एक विशेष महत्तकी नामसे प्रकट हो चुका है। बात है कि इतने प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं घनी आप निरन्तर कुछ न कुछ लिखते ही रहते हैं । आप होकर भी श्राप पाश्चात्य फैशनके गुलाम नहीं है, जो कि दिन किसी क्षणको श्रालस्यमें न गंवाकर साहित्यसेवामें आजकलके नवयुवकोंमें अधिकांश रूपमें दृष्टिगोचर होती लगाते हैं। आप कशल व्यापारी हैं फिर भी व्यापार करते है। अभिमान तो आपको छू तक नहीं गया है। जो भी भा हुये जो समय बच रहता है वह साहित्य सेवा ही में व्यतीत हो प्रापसे एक बार मिल पाता है वह आपके व्यक्तित्वसे अव इ अापक व्याक्तत्वसे अव करते हैं। मेंने इन्हें कभी व्यर्थकी गर्षे हाँकते नहीं देखा । प्रय प्रभावित हो जाता है। श्राप होनहार उत्साही एवं नवीन जब देखता है तभी इनकी लेखनी अविभान्त गतिसे चलती विचारोके युवक है। इस समय श्रापके धर्मचंद नामक एक ही रहती है। आप जब बीकानेग्में निवास करते हैं तब श्राप पुत्र व दो पुत्रियां हैं। दिनरातमें १२ घंटे साहित्यके पठन, संग्रह एवं लेखन में साहित्यिक और सार्वजनिक क्षेत्र-आपका सार्व- व्यय करते हैं। सच है परिश्रमका फल मीठा है। आप
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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