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________________ ४६२ अनेकान्त [ वर्ष ८ १ षटखण्डागम-(धवलाटीका और उसके हिंदी विशेप जिज्ञासा नहीं रहती । ग्रन्थका हिन्दी अनुवाद अनुवाद सहित) मूल कर्ता,-आचार्य भूतबलि तथा पूर्ववत है । साथमें कुछ तुलनात्मक टिप्पण भी व्याख्याकार वीरसंनस्वामी। संपादक प्रो.हीरालाल जैन किया हुआ है। एम. ए., पी. एच. डी. मारिस कालेज, नागपुर और सह ग्रन्थके अन्त में ५ परिशिष्ट भी दिये हुए हैं जिनमंपादक पं. बालचंद्रजी सिद्धान्तशास्त्री अमरावती। से प्रस्तुत संस्करणकी विशेषता और भी बढ़ गई है। प्रकाशक श्रीमंत सेठ सिताबराय लक्ष्मीचन्द जैन साहि- उनमें 'अवतरण-गाथा-सूची' नामके परिशिष्टके 'चदुत्योद्धारक फंड, अमरावती । पृष्ठ संख्या मब मिलाकर पञ्चइगो बंधा' उवरिल्लपंचए पुण, पणवण्ण्णा इर४४६ । मृल्य सजिल्द प्रनिका १०) शास्त्राकारका १२)। वण्णा, और 'दस अट्टारमदसयं' नामकी चारों प्रस्तुत ग्रन्थ पटवण्डागमका तृतीय खण्ड 'बंध- गाथाएं प्राकृत पचमग्रह भाप्यकं चतुर्थ अधिकारमें सामिविचय' नामका है. जिसमें कर्मबंधके स्वामित्व- क्रमशः ७६, ७७, ७८ और ७९ नम्बर पर उपलब्ध का विचार किया गया है और यह बतलाया है कि होता है। कौन कौन कर्मप्रकृतियाँ किन किन गुणस्थानोंमें इस खण्डकं साथ पटवण्डागमके तीन खण्ड बंधको प्राप्त होती हैं । इस खण्डमें कुल ३२४ सूत्र हैं मुद्रित होचुके हैं, जो बहुत ही प्रमेय बहुल हैं । यद्यपि जिनम ४२ सूत्रां में गुग्णस्थानों के अनुमार कथन किया प्रस्तुत ग्रन्थका ३ पेजका शुद्धिपत्र खटकने वाली हे और अवांश २८२ सूत्रांमें मार्गणाओंके अनुसार वस्तु है, परंतु विश्वास है कि आगे इमकी और और भी गुणस्थानोंका विवेचन किया गया है । टीकाकार विशेष ध्यान रक्खा जावेगा। ऐसे सिद्धान्त ग्रन्थोंक सूक्ष्मप्रज्ञ आचार्य वीरसनने सूत्रोंको दशामर्पक प्रकाशनमें प्रेस सम्बन्धी इतनी अशुद्धियाँ नहीं रहनी बतलाते हुए, बन्धव्युच्छेद आदिक मम्बन्धमें तेईस चाहिये । इस तरह यह ग्बण्ड भी अपने पूर्व प्रकाशित प्रश्न उठाकर स्वयं ही उनका ममाधान करते हुए, खण्डोंके समान ही पठनीय तथा संग्रहणीय है। मादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, सांतर, निरंतर, स्वोदय, मूल्यमें भी इस मॅहगाईको देखते हुए कोई वृद्धि परोदय आदि बन्धाका व्यवस्थाका कथन किया है। नहीं हुई है। और उससे बन्धस्वामित्वकं मम्बन्धमे फिर कोई -परमानन्द जैन श्रीधर या विबुध श्रीधर नामके विद्वान (लेखक--पं० परमानन्द जैन, शास्त्री) भारतीय जैन वाङमयका आलोडन करनेमे जिम किमीका भी कुछ विशेष परिचय मालूम पड मालूम होता है कि एक नामकं अनेक विद्वान, ग्रन्थ- सं प्रकट कर दिया जाय । इसी दास श्राज में का श्राचार्य नथा भट्टारक होगा हैं: इममेरोनिहा- अपने पाठकोंको श्रीधर या विबुध श्रीधर नामकं कुछ सिक विद्वानीको एक नामकं विभिन्न व्यक्तियों के विद्वानोंका परिचय दे रहा हूँ। ममय, निर्णय करने में माधन-सामग्री के अभाव में बड़ी (१) श्रीधर या विबुध श्रीधर नामकं कई विद्वान दिक्कतें पेश आती है। उन दिनांको कम करनके हागए है। उनमें एक श्रीधर तो वे है जिन्ह विबुध लिये यह आवश्यक और उचित जान पड़ता है कि श्रीधर भी कहते थे और जो अग्रवाल कुलम समुत्पन्न
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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