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________________ किरण १२ ] पर प्रकाश डालने का अनुरोध किया था। हमारी प्रेरणा से उन्होंने भारतीय विद्याके वर्ष २ अङ्क १ में "वया नगरी और त्रिभुवनगिर" शीर्षक लेख प्रकाशित किया था । उससे यह भलीभाँति निश्चित होजाता है कि त्रिभुवनगिरि वर्तमानमें तहनगढ़ नामसे प्रसिद्ध है जो कि करौली से उत्तर पूर्व २४ माइलपर अवस्थित है । १३वीं शताब्दी में यहाँ यादव वशीय महाराजा कुमारपाल राज्य करते थे जो सं० १२१०, ११के लगभग ही गद्दीपर बैठे थे और तेरह काठिया सम्बन्धी श्रे० साहित्य तेरह काटिया-सम्बन्धी ० साहित्य ( लेखक - अगरचन्द नाहटा ) अनेकान्तकी गत (१०-११वीं) किरण में बाबू ज्योतिप्रसाद जैन N. A. का 'तरह काठिया' शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है। उसमें आपने कविवर बनारसी दामजी रचित तेरह काठिया शीर्षक रचनाका निर्देश करते हुए लिखा है कि 'ज्ञान नहीं इन दोषोंके लिये काठिया शब्दका प्रयोग करनेमें कोई और प्राचीन आधार था या नहीं, और इस प्रकार के त्रयोदश काठिया या तेरह काठिया शीर्षक अन्यप्राचीनतर पाठ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती आदि भाषा में इसी विपयके प्रतिपादक उपलब्ध हैं या नहीं ? यदि ऐसा नहीं है और यह कविवर बनारसीदासजीका ही मौलिक सुभ है तो उनकी प्रतिभाकी बलिहारी है और उनकी कल्पना अद्भुत होनेके साथ ही साथ प्रशंसनीय है ।' आपके उपर्युक्त लेखनसे मालूम होता है कि दिन समाज में १३ काठिये प्रसिद्ध नहीं है। जैसा कि बनारसीदास जीने निर्देश किया है गुजरात में काठिया शब्द प्रसिद्ध था और वहाँ प्रायः श्वे० समाजका ही प्रभाव अधिक है कविवर पहले श्वे० सम्प्रदाय के खरतरगच्छके अनुयायी थे । अतः उन्होंने १३ काठियोंमें वे साहित्यसे लिया ज्ञात होता है । कविवर बनारसीदासजीस प्राचीन श्वे० साहित्य में तेरह काठियोंका ४५७ १२४२ तक राज्य किया था । मुसलमानी तवारीख ता 'जुलमासीर में हसन निजामीन लिखा है कि ५७२ (वि० सं० १२५२) में मुहम्मद गौरीन तहनगर पर आक्रमणकर वहाँके राजा कुमारपालको हराकर अपने आधीन किया। तहनगरका राज्य बहाउद्दीन तुमरीतको दिया गया। इससे स्पष्ट है कि म० १२५२ में मुसलमानी राज्य होजानेपर लक्ष्मण कवि विलरामपुर चले गये व त्रिभुवनगिरि जयपुर राज्यका तहनगढ़ ही है । उल्लेख पाया जाता है । रत्नसमुच्चय नामक एक प्राचीन प्राकृत गाथाओं का सग्रह ग्रन्थ है जिसमें १३ काटियोंके नाम सूचक गाथा इस प्रकार पाई जाती है'आत्म' मोह 'वन्ना 'थंभा काहा माय " किविणत्ता । समय सांगा "अन्नारणा 'वक्स्वेव कुतुहला 'रमणा ।। यह ग्रंथ जैनधर्म प्रसारक सभासे छप भी चुका है। १७वीं शताब्दीकी इसकी प्रतिमें यह लिखित मिलती है । यह गाथा हरिभद्रसूरि आवश्यक वृत्तिकी होने से नवीं शताब्दीकी निश्रित होती । अतः बनारसीदामजीके ८००० वर्ष पूर्व भी वे साहित्य में १३ काठिये प्रसिद्ध थे । १६वीं शताब्दी के तपागच्छीय जैनाचार्य हेमविमलसूरिकी गा० १५की तरह काठिया सज्झाय जैन सत्यप्रकाशके क्रमांक १३६ में प्रकाशित हो चुकी है। नवीन रचनाओं में तिलोक ऋषिकी तेरह काठिया समाय भी प्रकाशित है । ० सम्प्रदाय में आज भी १३ काठिये सर्व विदित हैं और इसलिये बनारसीदास जीकी मौलिक सुभ ज्ञात नहीं होती। अब में मेरी जानकारीको वे समाजकं १३ काठिया सम्बन्धी साहित्यका संक्षेप परिचय दे देता है । मैं मेरी जानकारी में श्वे समाज के तेरह काठिया सम्बन्धी साहित्यकृत मंक्षिप्त परिचय दे देता हूँ:
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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