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________________ ४५० अनेकान्त [ वर्ष ८ एक गठ्ठा अलग किया गया और उसे फिर किमी समय विशेष जाचके लिये रख छोड़ा, जिमसे अपूर्ण ग्रंथों के पूरा होने आदिमें कछ महायता मिल सके। इन ग्रंथों का परिचय मैं उसी समय अनेकान्तमें निकालना चाहता था परन्तु परिचयको तयारीका किमीको भी अवसर नहीं मिल सका । हाल में पं० दरबारीलालजी कोठियाने कई दिन परिश्रम करके ग्रंथों परसे उनका एक संक्षिप्त परिचय तय्यार किया है, जिसे नीचे प्रकाशित किया जाता है । इस परिचयपरसे प्रकट है कि छोटे बड़े सभी ग्रंथों की प्रायः १०० प्रतियां पूर्ण और १७ ग्रंथतियाँ अपूर्ण हैं | पूर्ण ग्रंथों में संस्कृतक ५४, प्राकृतक ६, हिन्दीके ३५, और गुजगतीके दो ग्रंथ है । संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों मेंस किमी-किमीके साथ हिन्दी अादिक भी लगा हुआ है। हिन्दी ग्रंथामें पञ्जाबी, राजस्थानी जैसी बोलीक ग्रंथ भी शामिल हैं । अपूर्ण ग्रंथों में ५.६ प्राकृतक, ६ संस्कृतके पार ३ हिन्दीके हैं। जैन ग्रंथों में अधिकांश ग्रंथ श्वताम्बर तथा स्थानकवासी मम्प्रदायक है, दिगम्बर ग्रंथ १२-१३ ही जान पड़ते हैं। वैद्यक-ज्योतिष जैसे विषयों के अधिकांश ग्रंथ अजैन मालम होते हैं। जिन ग्रंथा का कता तथा रचना संवत ग्रंथप्रतियों परसे उपलब्ध होसका है उसे ग्रंथपरिचय दे दिया गया है, शेषको ग्रंथ प्रतिपरसे अनुपलब्ध समझना चाहिये । अधिकांश प्रतियों अच्छी मुन्दर-साफ लिखी हुई है और कितनी ही प्रतिया जीर्ण-शीर्ण भी होरही हैं। इन ग्रंथों में जो ग्रंथ अभी तक प्रकाशित न हा हा सूचना मिलनेपर उसके प्रकाशनकी योजना की जा सकती है। प्रार जो पुगनी शुद्ध प्रतिया है व मम्पादनादिक अवमग पर मिलानके काममं ग्रामकती है। -सम्पादका संक्षिप्त ग्रन्थ परिचय पृणं ग्रन्य ९ जम्वचरित्र (प्राकृत)---पत्र २८ । श्वेताम्बराय १ माधुगुगामाला (हिन्दी छन्दोबद्ध) हरजम १. विपाकसूत्र (प्राकृत)---श्वेताम्बरीय, प्रतिगयकृत, रचना सं. १८६५ । विपय, स्थानकवासी लिपि मं० १७५.७, पत्र ६, विपय धामिक। सम्प्रदायानुसार माधुकं, २७ मुलगणोंका वर्णन । ११ भक्तामरम्तात्र-टीका (मुग्बबाधिका) अमर२ कवली-प्रश्न (हिन्दी गदाात्मकः)-प्रतिलिपि प्रभरि कृत, मंस्कृत, पत्र १९।। मं० १८७१ है, विषय, प्रशास्त्र । ५२ प्रश्नोत्तरीपासकाचार-आचार्य मकलकीति जम्बद्वीपप्रज्ञनियाकन)-निलिपिमं०१७५० कृत, संस्कृत (पद्यमय), प्रतिलिपि मं. १७५१. विषय ४ पडावश्यकमूत्र-शलावबांध (प्राकृत-हिन्दी) श्रावकधर्म। वाचकाचाय रत्नमांनांगा शिघ्य श्रामेबसन्दगपाध्याय । १३ दशवैकालिकमत्र ( सहित )- भापा कृत । रचना मं० १५४३, विषय, धार्मिक । प्राकृत, विषय धामिक, प्रतिलिपिकाल म० १८१९, ५ पाश्वनाथचरित (संस्कृत पद्यमय)-भावदव (श्वे.)कृत । मात्र आदिका और अन्तका प्रशम्यान्मक १४ कंवलीगग (सं. पद्यात्मक)--श्रीमद्रकृत, पत्र नहीं है । पत्र मंख्या १५५ । विषय प्रश्न पत्र १०. अजैन । ६ ऋपिमण्डलम्तोत्र (मं. पदामय...विपय, १५ प्रियमलकतीर्थ (सिहलसुतचौपई)-समयमन्त्रशास्त्र । पत्र। सुन्दरकृत हिन्दी, (पञ्जाबी) रचनाकाल मं० १६७२, ७ हरिवंशपुराण (हिन्दी)-- शालवाहनकृत। विपय दानादि, पत्र ९, लिपिकाल संवत १६९०। जिनमनाचा यकृत संस्कृत हरिवंशपुराणाका हिन्दी १६ योगशास्त्र-हेमचन्द्राचार्यकृत, संस्कृत पद्यानुवाद, रचना म. १६९५ । पत्र १८० । (पद्यात्मक) प्रतिलिपि सं १६४३, पत्र । ८ उपामगदशा (श्वेल सप्रमाङ्ग)-प्राकृन, पत्र १७ सामुद्रिक शास्त्र--संस्कृत पद्यमय टिप्पणी ६० । विषय, श्रावक धर्म । प्रतिलिपि सं० १८६४, पत्र १७ । पत्र २८ ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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