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________________ ४३० अनेकान्त [ वर्ष ८ प्रकाशन किया जाय । आगे पुराने और नये मेम्बरों विदेशकी खबरें भी इन अड्डोंमें हैं। पत्रकी भाषा की नामावली है। इसके बाद चार परिशिष्ट हैं। सरल और प्राञ्जल है। सफाई छपाई उत्तम है। सब पहले परिशिष्टमें ग्रन्थमालाका आय-व्यय दिया गया मिलाकर पत्र लोकरुचिके अनुकूल है । हम पत्रहै । दूसरेमें एकसौ रुपयेसे ज्यादा देनेवालोंकी की हृदयसे प्रगतिकामना करते हैं। पाठकोंको ग्राहक नामावली दी गई है। तीसरेमें छपे ग्रन्थोंकी संख्या अवश्य बनना चाहिए। और उनकी लागत मूल्य बतलाई गई है। चामें ५-श्वेताम्बर जैन- (पाक्षिक पत्र)-सम्पादक वर्तमानमें मौजद ग्रन्थोंकी प्रति, संख्या और उनका और प्रकाशक श्रीजवाहरलाल लोडा, मोती कटरा, न्य क्रमशः दिया गया है। ग्रन्थमालाम अबतक आगरा वार्षिक मल्या ४२ ग्रन्थ छपे हैं। कुछ ग्रन्थ कई खण्डोंमें छपे हैं, यह श्वेताम्बर जैन-समाजका मुख पत्र है । जिनकी कुल लागत ३६२६९।।।-)। पड़ी है और हाल में इमका पुनः प्रकाशन प्रारम्भ हुआ है। इसका वर्तमानमें २८००२|||-)।। के ग्रन्थ मौजूद हैं। इससे तीसरा अट्क हमारे सामने है। लेख पढ़ने योग्य हैं। मालूम होता है कि ग्रन्थमालाने बड़ी महूलियतसे। देश-विदेशादि के समाचारोंका मङ्कलन है । 'श्री सन्दर और अधिक प्रकाशन प्रकाशित किय है। केशरियाजी तीर्थ और जैनम जैसे लेग्या द्वारा पत्र इसका श्रेय प्रेमीजीको है जिन्होंने ग्रन्थमालाका न साम्प्रदायिकताको न उकमाकर उसके दूर करने में स्वतन्त्र ऑफिस रखा और न कोई स्थायी कर्मचारी। अ अग्रसर हो, यही शुभ कामना है । ग्रन्थ छपानेकी व्यवस्था और पत्र व्यवहारादि भी अपने हिन्दी ग्रन्थ कार्यालय द्वारा ही ठीक कर लेते ६-आरोग्य (मासिक पत्र)-सम्पादक विट्ठलहै। ग्रन्थमालाकी जो सजन सौ रुपयास एकमुश्त दाम मोदी गारखपुर । मूल्य ४) । प्राप्तिस्थान, सहायता करते हैं उन्हें ग्रन्थमालाकं पहले वतमान 'आराग्य' कायालय, गोरखपुर । और आगेके सब प्रकाशन भेंट दिये जाते हैं। ऐमी प्रस्तुत पत्रका प्रकाशन जुलाईसे शुरू हुआ है। उपयोगी ग्रन्थमालाका प्रत्येक समर्थ सज्जनको सौ इसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य-सम्बन्धी रुपये देकर अवश्य सहायक बनना चाहिए। लेखांका बहुत उत्तम संग्रह है। पत्रका ध्येय प्राकृतिक ४-वीर-वाणी (पाक्षिक पत्र) सम्पादक श्रीचन- चिकित्मा द्वारा जनमाधारणकं स्वास्थ्य को बनाना और उसकी वृद्धि करना है। इसके सभी लेख उत्तम मुखदास न्यायतीर्थ व श्रीभवरलाल न्यायतीर्थ, प्रकाशक पं० भंवरलाल जैन, श्रीवीर-प्रेम मनिहारोंका और प्रत्यकके लिये पठनीय हैं। आशा है ऐसे पत्रोंसे रास्ता जयपुर, वार्षिक मूल्य ३)। भारतीयांको बड़ा लाभ पहुँचेगा । हम पत्रकी __ इस पत्रका गत महावीर-जयन्तीसे ही प्रकाशन सफलताको कामना करते है और पाठकोंस अनुरोध प्रारम्भ हुआ है । इसके ३, ७ और ८-९ अङ्क हमारे करते हैं कि वे उक्त पत्रसे अधिकसे अधिक सामने है। इनमें मख्यत: जयपरकं साहित्यकारों लान २० । और दीवानोंका प्रमाणपुरम्सर विस्तृत परिचय है ७-जैन-जगत (मासिक पत्र)-सम्पादक, जो प्रायः अबतक अप्रकाशित था। पत्रका ध्यय भी प्रकाशक, श्रीहीरामाव चवडे, वर्धा । कार्यवाहयही प्रतीत होता है कि इसमें जयपुरके उन समस्त सम्पादक, श्रीजमनालाल जैन माहित्यरत्न । सम्पादक साहित्यकारों और दीवानोंका क्रमशः प्रामाणिक मण्डल, भानुकुमार जैन, ताराचन्द कोठारी बम्बई, परिचय दिया जाय जिन्होंने साहित्य, जाति और बाबूलाल डेरिया बाबई, सौ. विद्यावती देवडिया, अपने राज्यकी अनुपम एवं आदर्श सेवा की है। नागपुर । वार्षिक मूल्य २) । संस्थाओं, छात्राओं सामाजिक और राष्ट्रीय प्रवृत्तियोंकी चर्चा तथा देश- तथा महिलाओंसे १)।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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