SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्यपरिचय और समालोचन १-मूलमें भूल-भगवान श्रीकुन्दकुन्द-कहान स्मृतिमें अपने द्रव्यसे जैन ट्रैक्ट सोसायटी हिसार जैन शास्त्रमाला'का १९वाँ पुप्प । प्रवक्ता, पूज्य द्वारा प्रकाशित कराई है। पुस्तक इतनी अशुद्ध, भद्दी श्रीकानजी स्वामी। अनवादक, पं० परमेष्टीदासजी और अव्यवस्थित छपी है कि पाठकका चित्त कर न्यायतीर्थ । प्राप्तिस्थान, श्रात्मधर्म कार्यालय मोटा पढ़नेके बाद उचटे बिना नहीं रह सकता। ऐसा आँकडिया (काठियावाड)। मूल्य ॥)। । साहित्य अजैनोंके हाथमें जानेपर वे जैन-साहित्य स और जैनधर्मके प्रति क्या भाव बनायेंगे । मेरा ___ यह भैया भगवतीदासजी और विद्वद्वर्य पण्डित श्रीबनारसीदासजी द्वारा हिन्दीमें रचे गये उपादान खयाल है कि पुस्तकके प्रकाशनमें ठीक विचारसे काम नहीं लिया गया । यदि प्रकाशित करनेके पहले और निमित्त विपयक दोहोंपर पूज्य कानजी महाराज सोसायटीने किसी योग्य विद्वान् द्वारा उसका के तर्कगर्भ और महत्वपूर्ण गुजराती प्रवचनोंका मम्पादनादि कार्य करा लिया होता और छपाईकी योग्य अनुवादरूपमें संग्रह है। भैया भगवतीदासजीने ४७ व्यवस्था की गई होती तो अच्छा होता । फिर भी दोहामें उपादान और निमित्तका एक सुन्दर और ला० शम्भूदयालजीकी शुभ भावना और उत्माह तत्त्वज्ञानपूर्ण संवाद लिखा है। इसी तरह विद्वद्वर्य प्रशंसनीय है। पं० बनारसीदासजीन भी उपादान और निमित्तको लकर ७ दोहे रचे हैं। इन दोहोंमें उपादान और ३-माणिक्यचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमालाका निमित्नका भेद, उपादानकी मुख्यता दिखलाइ गइ काय-विवरण-प्रकाशक, प० नाथूरामजी प्रेमी, मन्त्री है। पूज्य कानजी महाराजका प्रत्येक दोहेपर मार्मिक ग्रन्थमाला, हीराबाग, बम्बई ४ । मूल्य आदि पवचन है। निमित्ताधीन हो रहे जगतको पराश्रित कुछ नहीं । और भ्रान्त बतलाकर उनकी मूलमें भूल बतलाई गई ह और उपादानपर दृष्टि रखना, अ यह ग्रन्थमालाका सन १९१४से १९४६ तकका संक्षिप्त कार्य-विवरण है । मुख पृष्ठपर दानवीर सेठ निभर होना तत्त्वज्ञान बतलाया है। इस तरह यह ग्रन्थ केवल अध्यात्म-प्रमियों के लिये ही उपयोगी नहीं है माणिकचन्द्र जीका भव्य चित्र है, जिनकी स्मृतिमें उक्त वरन प्रत्यक तत्त्व-जिज्ञासु,मुमुक्षुकलिय भी अत्युपयोगी ग्रन्थमाला कायम की गई थी। प्रारम्भमें बतलाया है । पुस्तकको उक्त स्थानसे मंगाकर प्रत्येक स्वाध्याय गया है कि सन १९१४की १७ जुलाईको उक्त सेठजीप्रमीक लिये पढ़ना ही नहीं चाहिए अपितु उसका का एकाएक स्वर्गवास होगया । उनकं शोकमें एक सभा की गई, जिममें उनकी यादमें जैन-समाजकी खुब मनन और बारबार चिन्तन करना चाहिए। आरस कोई ज्ञान प्रसारक काम किये जानेका निश्चय २-सरल सामायिक पाठ-संग्रह-(विधि सहित) किया गया । तदनुसार उसी समय एक स्मारक-फण्ड जैन ट्रैक्ट सोसायटी हिसारका दूसरा पुष्प, प्रकाशक खोला गया । इस फण्डमें लगभग चार हजार रुपया उक्त सोसायटी, मूल्य ।-) आना । सामायिकका इकट्ठा हुआ और उसे सेठ हीराचन्द गुमानजी जैन प्रतिज्ञापत्र भरकर मंगाने वालोंको बिना मूल्य । बोडिङ्ग हाउस बम्बईके ट्रस्टियोंको उक्त विवरणोक्त प्रस्तुत पुस्तक एक गुटके के आकारमें ला शम्भू- चार शोंपर सौप दिया गया। उनमें एक शर्त यह दयाल जी हिसारने अपनी स्व० माता श्रीगोमतीदेवीकी थी कि इन रुपयांसे 'माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला' का
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy