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किरण १०-११ ]
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जोगिचर्या
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खप्पर दुइ-कर मुझ बुहु भावहि, भोयगु लेडं उडंडी । तीन पंच- दुय घर फिर आवहु, हउ न होउ पाखंडी ॥ ८ ॥ मूलु उत्तरगुण मुझ महि चेतन, सुमरइ देवलिवासू । रयरिण ण सोवहु विसय न जोवउ, सुमरि न हाव-विलासु ॥ ९ ॥ कंच समभावें परखड, सत्तु- मित्तु न वि कोई । घट घट वस लक्ख चउरामी, अलख निरंजगु सोई ॥ १० ॥ गंधु न इच्छउ मोहु न वंछउ, हूवर सुद्ध दिगंबरु । तिहु-ग्यरिणहि नित वंटा खेलउ, हउं नित देखउ अंदरु || ११ || परमतत्त्व आधारी चेतन, शिवनगरी घर मेरा । जम कहु दंड मीचु विहडउ, वाहुडि करउ न फेरा || १२ || परमाराहरण कंथा पहरउ, मुकति त उ मनु वीधा । इव हउं शिवनयरी पयसेवउं, जोगु झाणु महु सीधा ॥ १३ ॥ जहि जहिं जोवउ तहिं तर्हि अप्पा, किस रूम किस भावउँ । महज सुद्ध हमु लीग अत्थर, पुग्गु संसार न आवउँ ॥ १४ ॥ दहहु न गुग्गल हुतहु न तिल घिउ, फिरहु न पाव- संसारू । देह मज्झिमुगुहु परमप्पा. जो कम्मह कम्मेधरणई करहि झारणानलु, देहमूमि मणु सहज सुद्ध मन निम्मलु किज्जइ, होइ न बाहिर माहें जगगुरु देखउ, सो रहियउ छह दंसण धंधइ पडि भूले, पुरिसु छाँह पिंडि न जोवउ रूव न पेखउ, पांथा ले ग वग्वाणउ । सुद्ध भाव मरइ वरु जीतउ ( ? ), इम जोवउ अप्पाराउ || १८ | पाती तोडि म पूजि रे मूढा देवलि देउ 'न' होई । देहा देवल वसइ सिउं विरला बूझइ कोइ ।। १९ ।। बहु न संकरु कन्हु न सोई तिसु न सकइ लखि कोई | गुरु पयासि मइ मग्गु पयासिउ सहजि सुपरगटु होई || २० || काया सोस अप्पा पोसउ पुव्वंगई वक्खाणउ । इन्द्रिय दण्डर रु तर मंडउ जिग-सासरण सबु जाउ || २१ || तित्थ य धावड पूज करावउ जिण तिन सीस चढावर | ary सरी कर वरण निवस अरु भावरण नित भावउ ।। २२ ।। जाम न परम बंभु परमप्पा सम भावरण अवलोयइ | " बोधसोमु " मुणिवरु इम जंपइ ताम न सिवपुरि पावइ || २३ || किसकर रावलु किसकउ देवल किसकउ इहु जगु धंधा । किसकी संपइ किसकी वाड़ी मूढ न जाइ अंधा ॥ २४ ॥ आदिनाथसुत गोरष (ख) मुझ गुरु तिन यहु कहिउ विचारू || चरचा गाव मो सिउ पावइ लहू पावइ भव पारू || २५ ||
खयकारू ।। १५ ।। पवणें । वागवणें ।। १६ । भरि पूरी ।
तहि दूरी || १७ ||
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