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________________ किरण १०-११] सम्पादकीय वक्तव्य ३८७ भारतवासियोंको स्वराज्यके अयोग्य करार देकर मारनेसे नहीं होगा बल्कि उनकी शत्रुताको मारनेसे फिरसे इनकी गर्दनपर सवारी की जाय-अपने होगा, जिसके लिये देशमें परस्पर प्रेम, सद्भाव और निरङ्कुश शासनका जूआ उसपर रक्खा जाय । विश्वासकी भावनाओंके प्रचारकी और उसके द्वारा ऐसी हालतमें नेताओंका कार्य बड़ा ही कठिन विद्वेषके उस विषको निकाल देनेकी अत्यन्त आवऔर जटिल होरहा है। उन्हें सुख की नींद सोना तो श्यकता है जो अधिकांश व्यक्तियोंकी रगोंमें समाया दूर रहा, सुखपूर्वक सांस लेनेका भी अवसर नहीं हुआ है। इसीके लिये नेताओंको जनताका सहयोग मिल रहा है। उनकी जो शक्ति रचनात्मक, व्यवस्था- वाञ्छनीय है। वे चाहते है कि जनता प्रतिहिमा त्मक और देशको ऊपर उठानेके कार्यों में लगती और अथवा बदलेकी भावनासे प्रेरित होकर कोई काम न जिनसे उनकी असाधारण काबलियत (योग्यता) करे और दण्डादिके कानूनको अपने हाथमें न लेवे। जानी जाती वह आज इम व्यर्थकी गह-कलहके पीछे उसे आतताइयोसे अपनी जान और माताकी रक्षाका उलझी हुई है । इसमें सन्देह नहीं कि पाकिस्तानने खुला अधिकार प्राप्त है और उस अधिकारको अमल हिन्दुस्तान (भारत) के साथ विश्वासघात किया है में लाते हुए, जरूरत पड़नेपर, वह आतताहयोंकी और नेताओंको सख्त धोखा हा है परन्त इसमें जान भी ले सकती हैं, परन्तु किसी आततायीके भी सन्देह नहीं है कि भारतके पं० जवाहरलाल नेहरू अन्याय-अत्याचारका बदला उसकी जातिके निरपऔर सरदार पटेल जैसे नेता बडी तत्परताके साथ राध व्यक्तियों-बालबच्चों तथा स्त्रियों आदिको मारकर काम कर रहे हैं और उन्होंने दिन रात एक करके चुकाना उन्हें किसी तरह भी सहन नहीं होसकता । थोडे ही समयमें वह काम करके दिखलाया है जो बदलेका एसी कारवाइयास शत्रुताको आग उत्तरात्तर अच्छे-अच्छे राजनीतिज्ञ और कार्य-कुशल व्यक्तियों के बढ़ती है, नेताओंका कार्य कठिनसे कठिनतम लिये इषांकी वस्तु हो सकती है। इस समय उनकी होजाता है और कभी शान्ति तथा सुव्यवस्था नहीं मारी शक्ति हिन्दू, सिख आदि शरणार्थियोंको हो पाती । बदलेकी ऐसी कारवाई करनेवाले एक पाकिस्तानसे निकालने और पर्वी पञ्जाबसे मसलमान प्रकारसे अपने ही दूसर भाइयाको हत्या आर शरणार्थियोंको सुरक्षितरूपमें पाकिस्तान भिजवाने में मुसीबतके कारण बनते हैं। लगी हुई है । वे हिन्दुस्तानमें पाकिस्तानकी पक्षपात- अतः भारतकी स्वतन्त्रताको स्थिर सुरक्षित रखने पूर्ण और धर्मान्ध साम्प्रदायिक विद्वेषकी नीतिको और उसके भविष्यको समुज्वल बनाने के लिये इस किसी तरह भी अपनाना नहीं चाहते। उनकी दृष्टि में समय जनता तथा भारतहितैपियोंका यह मुख्य सारी प्रजा-चाहे वह हिन्दू, मुसलमान, सिख, जैन कर्तव्य है कि वे अपने नेताओंको उनके कार्यो में पृण ईसाई, पारसी आदि कोई भी क्यों न हो-समान है सहयोग प्रदान करें और ऐसा कोई भी कार्य न करें और वह सभीके हितके लिये काम करके दुनिया में एक जिससे नेताओंका कार्य कठिन तथा जटिल बने । आदर्श उपस्थित करना चाहते हैं। परन्तु इस गृह-कलह- इसके लिये सबसे बड़ा प्रयत्न देशमं धर्मान्धता कं, जिसके विष-बीज विदेशियोंन चिरकालसे बो अथवा मजहबी पागलपनको दूर करके पारम्परिक रक्खे हैं, दूर हुए बिना कुछ भी नहीं हो सकता। इसके प्रेम, सद्भाव, विश्वास और महयोगकी भावनाओंको लिये अब अन्तरङ्ग शत्रुओंसे युद्ध करके उनका नाश उत्पन्न करनेका है। इसीसे अन्नरङ्ग शत्रुओंका नाश करना होगा । जबतक अन्तरङ्गशत्रओंका नाश नहीं होकर देशमें शान्ति एवं मुव्यवस्थाकी प्रतिष्टा हो होगा तबतक भारतको सच्ची स्वाधीनताकी प्राप्ति नहीं सकेगी और मिली हुई स्वतन्त्रता स्थिर रह सकेगो ? कही जा सकती और न उसे सुख-शान्तिकी प्राप्ति ही देशमें ऐसी सद्भावनाांको उत्पन्न करने और फैलाने हो सकती है। परन्तु इन शत्रुओंका नाश उनके का काम, मेरी रायमें, उन सच्चे साधुओंको अपने
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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