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________________ ३८२ अनेकान्त [ वर्ष ८ प्रन्थ प्रसिद्ध हो जाये और उसे देखकर कोई 'दन्तकेशनखास्थित्वग्रोम्णां निन्धरसस्य च । धर्म. ग्रन्थकार अपने ग्रन्थमें उसके उद्धरण भी ले ले 'दन्तकेशनखास्थित्वग्रोम्णो ग्रहणमाकरे ।' यो. शा. और उसके उस ग्रन्थकी प्रतियाँ भी हो जायें, ये सब * * * उस समयकी कठिनाइयोंको देखते हुए सम्मव 'अङ्गारशकटारामभाटकस्फोटजीवनम्' । धर्म, प्रतीत नहीं होता। अतः हमें अपने इस विचारमें- 'अङ्गारवनशकटभाटकस्फोटजीविकाः ।' यो. शा. कि धर्मशर्माभ्युदयके रचयिताने सागारधर्मामृतसे उक्त बातें ली है, ब्रेक लगाना पड़ा, और तब हमने 'तिलतोयेचुयंत्राणां रोपण दवदीपनम् ।' धर्म. उन ग्रन्थोंकी ओर दृष्टि डाली जिनके आधारपर 'तिलेक्षुसर्षपैरण्डजलयन्त्रादिपीडनम् ।' यो. शा. सागारधर्मामृतकी रचना हुई है। खोजते खोजते * * हमें श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्रके योगशास्त्रमें उक्त बातें 'ताम्रचूडश्वमार्जारशारिकाशुकपोषणम् ।' धर्म. मिलीं। नीचे हम योगशास्त्र के उन पद्योंको उद्धृत 'सारिकाशुकमार्जारश्वकुर्कुटकलापिनाम् ।' यो. शा. करते हैं ___ इन चीजोंको अनर्थदण्डरूपसे किसी भी अनन्तकायमज्ञातफलं रात्रौ च भोजनम ॥६॥ दिगम्बर श्रावकाचारमें नहीं गिनाया गया है । अत: श्रामगोरसमंपृक्तं द्विदलं पुष्पितौदनम् ।। यह स्पष्ट है कि धर्मशर्माभ्युदयके रचयिताके सामने दध्यहतियानीत कुथितान्न च वर्जयेत् ॥७॥ चन्द्रप्रभकी तरह योगशास्त्र भी अवश्य मौजूद था। इसके साथमें जरा धर्मशर्माभ्युदयके निम्न । किन्तु उसका उपयोग उन्होंने अपने ढंगसे किया श्लोकोंकी तुलना कीजिये अर्थात् योगशास्त्रमें जिन वस्तुओंका त्याग भोगोपदिनद्वयोषितं तक दधि वा पुप्पितौदनम् । भोगपरिमाणव्रतमें क्रूरकर्मके मलरूपसे कराया गया श्रामगोरस सम्पृक्तं द्विदलं चाद्यान्न शुद्धधीः ॥१३६।। था उन चीजोंको धर्मशर्माभ्युदयके रचयिताने अनन्तकायमज्ञातफलं मंधानकायपि । अनर्थदण्डरूपसे वजनीय बतलायाः क्योंकि __ योगशास्त्रका श्लोक न० ७ घरणोंके हेरफेरसे दिगम्बर शास्त्रोंमें वैसा विधान नहीं है। इसी तरह ज्योंका त्यों धर्मशर्माभ्युदयमें वतमान है। नीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतके भेद भी योग इसके सिवा कुछ अन्य भी मादृश्य है । मागार- शास्त्र के अनुसार न गिनाकर तत्त्वार्थसूत्रके अनुमार धर्मामृत अ० ५ में भोगोपभोगपरिमाण व्रतका ही बताये हैं। वर्णन करते हुए पं. आशाधरने लिखा है कि इस विस्तृत विवेचनसे हम इस निष्कपपर भोगोपभोगपरिमाणव्रतमें खरकमका भी व्रत लेना पहुँचते हैं कि धर्मशर्माभ्युदय न केवल चन्द्रप्रभचाहिये और उसके ५५ अतिचार छोड़ने चाहिये काव्यके बादकी, अपितु योगशास्त्रके भी बादकी ऐसा कोई कहते हैं, सो ठीक नहीं है। टीकामें यह कृति है। मत उन्होंने श्वेताम्बराचार्यका बतलाया है । वे योगशास्त्रके रचियता आचार्य हेमचन्द्रका श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र ही हैं। उन्होंने योगशास्त्रमें स्वर्गवास वि० सं० १२२९ में हुआ था। प्रेमीजीने भोगोपभोगपरिमाणवतके कथनमें भी खरकर्मकं लिखा है कि योगशास्त्र महाराजा कुमारपालके १५ अतिचार बतलाये हैं। कहनेमे रचा गया था । और हेमचन्द्राचार्यका ____धर्मशर्माभ्युदयमें भी अनर्थदण्डव्रतका वर्णन कुमारपालसे अधिक निकटका परिचय वि०स० १२८७ करते हुए उन मलोंको अनर्थदण्ड बतलाकर उसके कुमार छोड़नेका विधान किया है। उसके भी कुछ पद्यांश १ जैन साहित्य और इतिहास पृष्ठ ४४८ । योगशास्त्रसे बिल्कुल मिलते हैं । यथा (शेषांष पृष्ठ ३८८ पर)
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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