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________________ किरण ६-७] विविध-विषय २११ पिका-सभाकी दर्शक गैलरीमें बैठा हुश्रा मूक प्रशंसाके साथ यह सब उस समय हुआ जब कि लगभग श्राधी शताब्दीके पं. मालवीयकी प्रभावशाली वरता सुन रहा था। वह निरन्तर त्याग तपस्या कष्टमहन तथा विविध प्रा.लनोंके अपने अंगके राजनैतिक महापुरुष थे।' फलस्वरूप देश स्वतन्त्रताके द्वारपर श्रा खड़ा हुश्रा था, और रा. राजेन्द्रप्रसाद-'उनका नाम भावी सन्ततिको दूसरी ओर सप्तवय महाभयकर विश्वयुद्ध समाप्त हो यह याद लिाने रहने के लिये सदैव अमर रहेगा कि एक चुका था। व्यक्ति अपनी दृढ़ एवं सतत् लगन द्वारा कितना कुछ इन दंगोंके शिकार. पीड़ित त्रस्त, धन जन गृहीन कर सकता है।' मानवोंकी सहायतार्थ अनेक संस्थाएँ एवं सेवाभावी सजन ____डा. भगवानदास - 'भारतका एक सूर्य अस्त होगया। प्रयत्नशील हुए। पूर्वी बंगालमें जहाँ यह विनाशकारी व युवावस्थाने ही हिन्दी और अंगरेजी में समानरूपसे दक्ष विभीषिका खूब खुलकर खेली थी महात्मा गांधी स्वयं पहुंचे लेखक एवं वक्ता थे और अपने इन्हीं गुणों के कारण अपये और गांव गांवका पैदल दौरा करके शान्ति और सद्भावन का ६० वर्ष पूर्व कांग्रेसके पिता द्वारा प्रशंसित किये गये थे।' संचार कर रहे हैं। कितने ही जैनी महानुभावाने भी इस श्री कृष्ण सिंह-वे एक ऋषि थे और अपने अत्यन्त कार्यमें सक्रिय सहयोग दिया: विशेषकर कलकत्ते के बा. धार्मिक, निर्धन एवं त्यागपूर्ण जीवनके कारण वे अपने छोटेलालजी, जो वीरसेवामरिकी प्रबन्धममिति के सभापति करोड़ों देशवासियों के स्ने भाजम बन गये।' भी हैं, स्वयं उन स्थानों में गये, महात्माजीसे भी मिले, श्रीयुत श्रीप्रकाश-पं० म.नमोहन मालवीयकी मृयुके और प्रशंसनीय सेवाकार्य किया। श्रापकी अोरमे, विभिन्न पत्रों में जैनसमाजसे सहायतार्थ अपीलें भी निकली हैं, उनके साथ साथ हमारे राष्ट्रीय रङ्गमञ्चसे १६ वीं शताब का अन्तिम उत्तरमें समाजने अभीतक जी सहायता की है यद्यपि वह राष्ट्रनिर्माता अदृश्य होगया। वह एक अपूर्व व्यक्ति थे और पर्याप्त नहीं है, तथापि उसमें दा० वी० साहू शान्तिप्रसादउनके जीवनसे हमें, छ.टे बड़े मभीको, अनेक शिक्षा मिलती हैं। उनकी जिह्मासे कभी कोई कटुशब्द नहीं निकला जीका नाम खासतौरसे उल्लेखनीय है जिन्होंने इस हेतु और उहोंने कभी किसीकी निन्दा नहीं की। एकरसता एवं पचास हजार रुपये प्रदान किये हैं। स्वयं बा. छोटेलालजीने भी इस कार्य में हजारों रुपये व्यय किये हैं। 'वीर' श्रादि सतत् लगन उनके महान गुण थे। अपने दीर्व एवं घटनापूर्ण जीवनमें उन्होंने न अपना परिधान ही कभी ब.ला पत्रोंने भी कुछ द्रव्य एकत्रित करके उनके पास भेजा है। और न अपने विचार ही।' हम आशा करते हैं कि दानी और उदार जैनसमाज लोकहितके इस कार्य में अपना समुचित योग देने से मुंह विधानपरिषदका उद्देश्य-भारतीय विधान न मोड़ेगी। सहायता भेजनेका पता-या. छ.टेलाल न, परिपके प्रारंभिक अधिवेशनमें जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण १७४-चितरंजन एवेन्यू, कलकत्ता है। प्रस्ताव स्वीकृत हुआ वह पं. नेहरूजी द्वारा उपस्थित किया अणुबम-अगस्त सन ४५ में जापानके. हिरोशामा गया था और उसमें उक्त परिषदका उद्देश्य भारतवर्ष के लिये तथा नागासाकी स्थानों र १.गु बमके स्फोटसे जो विनाशकारी एक सर्वतन्त्र स्वतंत्र प्रजातन्त्रात्मक विधान निर्माण करना दुष्परिणाम हुए वह सर्वविदित है, तथापि अाजके अन्तर्रानिश्चित हुधा है। ष्ट्रीय जगतके प्रमुख राहीनं इस बम सम्बन्धी मोह एवं उसके साम्प्रदायिक दंगे-राजनैतिक अधिकारोंकी प्राप्तिके बनाने और संग्रह करने का प्रयत्न कम हुअा नहीं दीख "दता । मिस कतिपय स्वार्थी एवं अविवेकी दलों के इशारेपर देशके परिणामस्वरूप उसका मुकाबला करनेकी समस्या मानवविभिन्न भागोंमें अन्तःसाम्प्रदायिक विद्वेष तथा तज्जन्य दंगे हितैषी विचारकोंके लिये चिन्ताका विषय बनी हुई है। फसाद, रक्तपात व रोमाञ्चकारी अमानुषी अपराधोंकी एक प्रख्यात दया प्रचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ती अंग्रेज़ महिला बाइपी श्राई. फलस्वरूप शान्तिप्रिय जनमाधारणकी इज्जत मिस मरयल लिस्टरने अक्तुबरमें ईसाइयों के एक अन्तराष्ट्रीय श्राबरू, जन धन सा अरक्षित और आक्रान्त हुए । और सम्मेलनमें भाषण देते हुए कहा था कि-'अणुशत्रिका
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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