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________________ २७० भनेकान्त [वर्ष ८ . सुलोचना, चन्दना, चेलना आदि अनेक मती साध्वी, उनकी समवसरण सभामें स्त्री पुरषोको साथ साथ बैठकर श्रादर्श गृहस्थ तथा दीक्षा के पश्चात् परम तपस्विनियोकी धर्मोपदेश सुनने और अपना २ प्रात्मकल्याण करनेका यशोगाथासे जैनपराण व चारित्र ग्रन्थ भरे पड़े हैं। इन समान अवसर प्राप्त था। देवियोंने अपना स्वयंका तो कल्याण किया ही, अपने व्यवहारिक दृष्टसे. जैनस्त्रियांने धार्मिक तथा लौकिक सम्पर्कमे अानेवाले अनेक पुरुषोंका भी उद्धार किया है। दोनों ही क्षेत्रोमें, अपनी हीनताका अनुभव कमसेकम जब उन्हें वैराग्य हुश्रा और उन्होंने प्रात्मसाधन करने की जैनधर्मक कारण कभी नहीं किया । मध्यकालीन भारत में, ठानी तबही पति, पत्र, परिजन, घर सम्पत्ति, भोग ऐश्वर्य विशेषकर दक्षिण प्रान्त में जहाँकि उस युगमें जैनधर्मका सब ठुकराकर, तपस्विनी बन वनका माग लिया; पतिका अत्यधिक प्रभाव एवं प्रचार था जैनस्त्रियोने स्वयं राज्य कोई अधिकार या राज्य अथवा समाजका कोई कानून उन्हें किया, राज्यकार्यमें अपने पति पुत्रादिकोको सक्रिय सहयोग ऐमा करनेसे न रोक सका। दिया, सैन्यसन्चालन किया, ग्रन्थ निर्माण किये कराये, एतिहासिक काल में ही, जैसा कि एक विद्वानका कथन साहित्य प्रचार किया, धर्मप्रचार किया, मन्दिर श्रादि * हमारे देशमें जब उन्नति हो रही थी तब स्त्रियोका निर्माण कगये. धर्मोत्सव और प्रतिष्ठ ये कराई, श्राविका खब श्रादर था और वे शिाक्षता थी। भगवान महावीर के और प्रायिका संघोका नेतृत्व किया. अध्या'न किया, पिता अपनी पत्नीका केमा श्रादर करते थे यह निम्न श्लोक- उपदेश दिये, तपस्या की, समाधिमरण किये इत्यादि। सेस्ट है: जैनधर्म के अनुसार, पत्नी अपने पति के धर्मकार्यों और आगच्छन्ती नृपो वीक्ष्य प्रियां संभाष्य स्नेहतः। पण्य प्रवृत्तियोंमें तो सहायक हो सकती हैं किन्तु वह उसके मधुरैवचनेस्तस्यै ददो स्वार्धासनं मुदा ॥ अधर्माचरण और पाय प्रवृत्तियोमें सहयोग देने या उनमें अर्थात्-राजा (सिद्धार्थ) ने अपनी प्रियाको दरिमं उसका अनुगमन करनेके लिये कतई बाध्य नहीं है। श्रात देखकर उनसे मधुर वाक्याम प्रेमपूर्वक भालाय किया बिल्वमंगल जैसे उदाहरण जैन संस्कृति में नहीं मिलेंगे और और प्रसन्न होते हुए उन्हें अपना प्राधा सिंहासन बैठनेको " x (i) Dr. Saletore-Mediaeval Jainism, दिया, जिसपर वे जाकर बैठी। ch. V-'Women as defenders of स्वयं भगवान महावीरने अपने ६ महानेके उपवासके the Faith'. पश्चात् जो पारणा किया (पाहार ग्रहण किया) वह (ii) Dr. B. C. Law-Distinguished बेड़योंमें जकड़ी अति दान हान चन्दनाके अधकचरे साबुत men and women in Jainism'उड़दों जैसे तुच्छ खाद्यका था। अनेक राजा एवं धनिक Indian Culture Vol. II & III. श्रेष्ठी उन्हें उस समय श्रेष्ठ सुस्वादु भोजन कराने के लिये (iii) श्री त्रिवेणी प्रसाद-'जैन महिलायोंकी धर्मसेवा'लालायित थे ! भ. महावीरने स्त्रियोंको जिनदीक्षा देने में जै० सि० भा० ८-२ पृ०६१ म बुद्ध जैसी हिचकिचाहट नहींकी सती चन्दनबालाके पंडित चन्दाबाई जैन-'धर्मसेविका प्राचीन जैननेतृत्वम, मुनिसंघके साथ ही साथ, आर्यिकासंघका भी देवियाँ'-प्रे० अ० ग्रंथ पृ०६८४ निर्माण किया । वास्तवमें जैनायिकासंघका यह निर्माण (v) मथुगके प्राचीन जैनपुगतवमें अनेक जैनमहिलायोबौद्ध भिक्षणी संघसे पहिले हो चुका था। भ. महावीर के की जिनमें गणिकाये तक भी सम्मिलित है, धर्मअनुयायियों में मुनियोकी अपेक्षा प्रायिकाप्रोकी और भावको सेवाके उल्लेख मिलते हैं। की अपेक्षा भाविकायोंकी संख्या कई गुनी अधिक थी+। i) सागर और मलयाचल के बीच, दक्षिणस्थ वेणूर * जैन हितैषी वर्ष ११ अंक ३ पृ० १८६ देशमें अजिलवंशकी जैनरानी पदुमला देवीने सन् + अनेकान्त वर्ष ३कि. १पृ. ४५ सौ. इन्दुकुमारीका १६८३ से १७२१ तक राज्य किया- अनेकान्त लेख 'वीरशासनमें स्त्रियोंका स्थान'। २-७ पृ. ३८४
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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