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________________ २६६ भनेकान्त [वर्ष उसके प्रति अपना विष और उसपर परुषजातिका सर्वा- बौद्ध भिक्ष सुमन वात्स्यायनके अनुमार बुद्धकालीन धिकार चरितार्थ किया है। उदाहरणार्थ: समाज स्त्रियों को इतनी हेय और नीच दृष्टसे देखता था कि ईसाइयोंकी बाइबिल में नारीको सारी बुराइयोंकी जड़ सर्व प्रथम जब बुद्ध की मौसी और मातृवत् पालन पोषण (root of all evil) कहा है, ईसाई धर्मयाजकोंने उसे करने वाली प्रजापति गौतमीके नेतृत्व में स्त्रियोंने संघमें शेतानका दरवाजा (Thou art the devii's शामिल होनेकी बुद्धमे प्रार्थना की तो उन्हें हिचकिचाहट gate!) कहकर पुकारा। छठी शताब्दी ईश्वी में ईसाई हुई। इसे स्त्रियोंके प्रति वुद्धकी दुर्भावना ही समझा जाना धर्मसंघने यह निश्चित किया था कि स्त्रियों में प्रात्मा नहीं होती। है। बुद्धने उन्हें पहले गृहस्थ ही में रहकर ब्रह्मचर्य और इस्लाम धर्मकी कुरानमें स्त्रियोका ठीक ठीक क्या निर्मल-जीवन द्वारा अन्तिम फल पाने के लिये उत्साहित स्थान है, यह बात समझाकर बनलाना कठिन है।हानवेक किया। बादको जब परिस्थिीियोसे विवश होकर भिक्षुणी और रिकाट (Hornbeck. Ricaut) आदि ग्रंथ- संघ बनानेका आदेश भी दि।। तो उसके नियमोंमें भिक्ष कारोंका तो यह कहना है कि मुसल्मानोंके मतसे भी नारीके संघरे मेद भी किये, जिन्हें देशकाल और परिस्थितियोंके अात्मा नहीं होती और नारियों को वे लोग पशुत्रोंकी तरह कारण आवश्यक बताया जाता है । बुद्ध ने भी स्त्रियोंकी समझते हैं। उत्तर कालीन वैदिक धर्ममें स्त्रियों को शास्त्र निन्दा की ही है और पुरुषोंको उनसे सचेत रहनेका श्रादेश सुनने तकका अधिकार नहीं है (यी न श्र तिमोचरा), दिया है । वस्तुतः, श्रीमती सत्यवती मल्लिकके शब्दोंमेंx मनु श्रादि स्मृतिकाराने स्पष्ट कथन किया है कि स्त्रियाँ "जातक ग्रन्थों एवं अन्य बौद्ध साहित्यमें अनेक स्थलोर, जनने और मानव-सन्तान उत्पन्न करनेके लिये ही बनाई नारीके प्रति सर्वथा अवांछनीय मनोवृत्तिका उल्देख है।" गई हैं। अन्य हिन्दु पौराणिक ग्रन्थों में भी नारीको पतिकी बौद्धप्रधान चीनदेशकी स्त्रियोंकी दुर्दशाकी कोई सीमा नहीं है दासी, अनुगामिनी, पूर्णत: प्राज्ञाकारिणी रहने और और उन्हीं जैसी अवस्था नापानकी स्त्री जातिकी थी, किन्तु मन-वचन-कायसे उसकी भक्ति करने तथा उसकी भृ युपर जापान अपनी स्त्रियोंका स्थान उसी दिनसे उन्नत कर मका जीवित ही चितापर जलकर सहमरण करनेका विधान किया जिस दिनसे अपनी सामाजिक रीति-नीतिके अच्छे बुरेका गया है। मध्यकालीन प्रसिद्ध हिन्दु धर्माध्यक्ष शंकराचार्यने विचार वह धर्म और धर्म-व्यवसाइयोंके चंगुल से बाहिर नरकका द्वार (द्वारं किमेकं नरकस्य नारी) घोषित किया निकाल सका।। है। और नीतिकागेने तो स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं जैन धार्मिक साहित्यकी भी. चाहे वह श्वेताम्बर हो देवा न जानन्ति कुतो मनुष्याः कह कर उसके चारित्र- अथका दिगम्बर, प्राय: ऐसी ही दशा है । श्वेताम्बर आगमको यहाँ तक संदिग्ध, रहस्मय अथवा अगम्य बतलाया साहित्य के प्राचीन प्रतिष्ठित 'उत्तराध्ययन' सूत्र में एक कि उसे मनुप्योंकी तो बात ही क्या, देवता भी जान स्थानपर लिखा है कि स्त्रियाँ राक्षसनियाँ हैं, जिनकी छातीपर नहीं पाते! दो मामपिण्ड उगे रहते है, जो हमेशा अपने विचारोंको * प्रजानर्थ स्त्रियः सष्टा: सम्तानार्थ च मानवां: (मनु ह.६६) बदलती र ती है, और जो मनुष्यको ललचाकर उसे गुलाम उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम् । बनाती है। इस सम्प्रदाय के अन्य ग्रन्यों में भी एसे अनेक प्रत्यहं लोकयात्रायाः प्रत्यक्षं स्त्रिनिवन्धनम् ॥ (मनु०६.२७) उल्लेख मिलते हैं। पांचवें अङ्गसूत्र भगवतीके (शतक ३-७) + वृद्ध रोगबस जड़ धनहीना, अंध बधिर क्रोधी अति दीना। देवानन्द-संगमें चीनांशुक, चिंलात और पारसीक देशकी ऐसे हु पतिकर किये अरमाना, नारि पाव जमपुर दुख नाना। दासियों का, ज्ञाताधर्मकथानके .. मेघकुमार-प्रसंगमें १७ एक धर्म एक व्रत नेमा, काय बचन मन पति-पद प्रेमा । विभिन्न देशोंकी दासियोंका तथा उहवाइ सूत्रमें भी अनेक . (रामचरितमानस) देशोंकी दासियोंका उल्लेख है। इसी भाँति दिगम्बर २ विशीन: कामवृत्तो वा गुणैर्वा परिवर्जितः। साहित्य मी स्त्री निन्दा-परक कथनोंसे अछूत नहीं रहा है। उपचर्यः स्त्रिया साध्व्या सततं देववत्पतिः ॥(मनु०५-१५४) x प्रेमाअभिनन्दनग्रंथ पृ० ६७२-(भारतीय नारीकी बौद्धिकदेन
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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