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________________ २६० अनेकान्त [वर्ष ८ लिख देते हैं। कर दिये गये। बिहारके शहीदोंके लिये कहा जा रहा है:क्या खुब? 'जुबेंगे हर बरस मेले शहीदोंके मजारोंपर' जब कोई जुल्म नया करते हैं फर्माते हैं। और पूर्वी बङ्गालके लिए:- . अगले पक्रोंके हमें तर्जे सितम याद नहीं॥ 'जल मरे परवाने शमापर कोई पुसा न था।' -चकबस्त मैं भी इस वक्रज्यका कायल हूँ, जो लबते हुए मरता बंगालकी प्रतिक्रिया स्वरूप जटायुका आदर्श समझने है सचमुच बह शहीद होकर वीर-गतिको प्राप्त होता है। धाले विहारमें उपद्रव हुए तो जिन्दा फौरन पैतरा बदल- एक ऐतिहासिक घटना है :कर बोले, 'नहीं, बाज़ दफा एक हाथ दूसरे हाथपर अपने औरंगजेबके हक्मपर जब उसके भाई दाराको बधिक आप पड़कर ताली बजा देता है।' पूर्वी बङ्गालमें हिन्दुओंका लोग करल करने पहुंचे तो दारा उस समय चाकूसे सेव छील नाश कर दिया गया, तब भी जिन्हाकी नजरोंमें उस तबाहीमें रहा था। बधिकोंको देखकर वह चाकू लेकर खड़ा हो गया स्वयं बङ्गाली हिन्दुओं ही का दोष था। और बिहारमें पटने, और बोला-'श्राश्रो जालिमों ! तैमूरका वंशज कुत्तोंकी बिहार शरीफ वगैरहमें महीनों पहलेसे मुसलमानोंकी तैयारी तरह न मरकर अपने पूर्वजोंकी तरह लबते हुए मरेगा।' हो रही थी, तो भी वहाँ केवल हिन्दुओंका अपराध धा। दारा घायल करता हुआ मर गया। हपारे शास्त्रों और मुसलमान तो चाहे बङ्गालके हों या बिहारके बिचारे सीधे इतिहासमें इस तरह के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। मगर साधे हैं। क्या खूब 'दूसरेके घरमें लगे तो आग, अपने उनको इस तरहसे ढक या विकृत कर दिया गया है कि यहाँ हो तो बैसन्धर' कुछ भी तो स्पष्ट नहीं मालूम होता । और जो हमारे और जबानकी सफाई देखिये मुस्लिमलीगी 'पत्र डान' उपदेशक या दार्शनिक हैं वे न जाने कहाँ से ऐसे कायरताके लिखता है-बिहारमें मुसलमान घायल बहुत कम हुए हैं, उदाहरण निकाल लाते हैं कि मानो इन्होंने अवतारही मरने वालोंकी तादाद कयाससे बाहर है। क्योंकि बिहारके हमारा नाश करनेको लिया है। मुसलमान जालिम हिन्दुओंका मुकाबला करते हुए इस्लामपर महात्मा गाँधीने पूर्वी बङ्गालके अपहरण की घटनाओंशहीद हए हैं। इन मरने वाले मुसलमानोंने हमें बतला पर वक्तव्य दिया कि जबर्दस्ती परिवर्तनसे तो जहर खाकर दिया है कि इस्लामपर इस तरह जान कुर्बान किया करते मर जाना अच्छा है ? क्यों जहर खा लेना अच्छा है ? यही हैं। एक एक मुसलमान हजारों हिन्दुओंका मुकाबला करके तो आतताई चाहते हैं। काफिरोंसे पाक 'पाकिस्तान' और शहीद हुआ है। उनकी धन दौलत । जहर खानेके बजाय उनके घरमें घुसअब देखिये मरनेवालोंका भाग्य । बिहार र जो हिन्दु. कर वह कृत्य क्यों नहीं करना चाहिए, जो रावणके घर मोको मारते-पखारते मरे वह तो सब शहीद हो गये। सीताको करना था। मगर बङ्गालके हिन्दु बगैर किसी मुसलमानको मारे उनके बिल्लीके भयसे कबूतर अांखें बन्द करले या श्रात्महाथसे मर गये वह जिबह हुए । मरे दोनों ही, मगर मृत्यु- हत्या बिल्लीका दोनों तरह लाभ है ! वह बाजकी तरह मृत्युमें अन्तर है। वे युद्धमें मरकर वीर-गतिको प्राप्त हुए, झपट कर उसकी ऑख्ने जबतक नहीं फोड़ देता खतरे में ये कसाइयों के हायसे जिबह होकर कीड़े-मकोड़ोंमें शामिल ही रहेगा।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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