SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ६-७] भगवान महावीर और उनका सन्देश २४३ Ends and means "साध्य और साधन" में इन्हीं काले ह्रदयको भी नतमस्तक बना देता है। सारा संसार ऐसे समस्याओं पर प्रकाश डाला है। साध्य और साधनकी व्यः- श्रादर्श व्यक्तिको सर आँखों पर बिठा लेता है। विरोधियोंके ख्या करते हुये आपने शादर्श समाज, नारन मानव, और हृदयको शुद्धब पवित्र कर देता है। वह पश्चाता की अग्निमें अहिंसा श्रादि विषयोंको जोरदार शब्दों में प्रतिपादित किया बुरे भावोंको जला देता है और पवित्र अन्तःकरणसे धीर, वीर है। वे फर्माते हैं कि किसी तरह भी बुरे उपायों या तथा अपने उपकारीका अनुयायी बन जाता है। अब वह साधनोंद्वारा उत्तम साध्य या ध्येयकी प्राप्ति नहीं सकती। अपने आपमें तबदीली महसूस करने लगता है और समझता "यदि हमारा ध्येय तथा प्रादर्श शुद्ध है तो उँचे श्रादर्श तक है किहमारी रसाई (हुंच) सिर्फ पवित्र तथा शुद्धसाधनों द्वारा ही “सरपु मैत्री गुणिपु प्रमोद, क्रिष्टेषु जीविषु कृपापरत्वम् । हो सकती है"। किन्तु खेद तो इस बातका है कि इस समय माध्मस्वभाव विपरीत-वृत्ती, स. ममात्मा वि धातु देव ॥" सारे संसारपर स्वार्थ-साधनका भूत सवार है, वह इसके - (प्रमितगति) परिणाम-स्वरूप वासनाओका गुलाम बन गया है ! ऐसी यही धर्मका व्यावहारिक तथा सार्वभौम रूप है। परिस्थितिमें मानव या राष्ट्र को विश्वकल्याण के पवित्र श्रादर्श कुछ अाधुनिक पाश्चिमात्य विद्वानोंका मत है कि में सहायक खयाल करना गलत है। जैन धर्मकी भी यही भारतवर्ष जैसे सुसम्पन्न कृषि-प्रधान देशमें प्राचीन काल में मान्यता है। वह कहता है कि अहिंसा द्वारा ही जगतमें रोटीका सवाल ऐया उन नहीं था, इसीपे अध्यात्मवाः शान्ति प्रस्थापित की जा सकती है। प्रात्मोद्वारकी कुंजी भी बेकार लोगोंके दिमाग़की पैदावार है । "An idle यही है ।इसी मार्गका अनुसरण करके स्वाभाविक तथा असीम brain is satan's workshop " इसी उक्रिके सुखकी प्राप्ति हो सकती है । अहिंसा, सत्य, ईश्वर, धर्म, अनुसार ही फुरसतके समय में Mysticism या शान्ति, सुख, संतोप आदि एक ही अर्थ के पर्यायवाची शब्द Spirituality का जन्म हिन्द में हुभा। किन्तु एक हैं। इन्हींकी उपासना, इन्हींका सहारा, व इन्हीका सम्पूर्ण दूसरी विचारधारा यह भी बताती है कि यह जरूरी नहीं कि ज्ञान ही हमारा उच्चादर्श है तथा नैतिक, व्यावहारिक, स्वाभा- फुरसतके समयको सबलोग बरबाद ही कर देते हैं, बल्कि विक या धार्मिक कर्तव्य भी यही है । इसके सामने स्वार्थ- ललित कलाओं, ज्ञानकं विविध अंगों तथा संस्कृति व सभ्यता साधु, विषय-लोलुप, वासनाओंका पुजारी घटने टेक देता है। की उन्नतिको चरम सीमापर एक ही समयमें पहुंचाया जाता इसके लिए सच्चे नागरिक, दार्शनिक या धार्मिक पुरुषको है। भारतवर्ष के प्रकाएद-पण्डितोंने जो सेवाएँ साहित्य, मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं, कष्ट सहन करने पड़ते हैं। यी विज्ञान, संस्कृति और कलाके सिलसिलेमें की हैं वे भलाई नहीं, बल्कि श्रात्मोत्सर्ग द्वारा विरोधियोंके हृदय पर विजय नहीं जापकती । विश्वके इतिहास में यह अमर गाथा प्रात करनी होती है। अंकित रहेंगी । प्रो० मैक्समूलर (Prof. Max जैनशास्त्राने परिषह-सहन तथा उपसर्ग जीतनेक बड़ा Muller) जैसे शास्त्रियोंका मत है कि इस भारतवर्ष ने मालिक तथा रोचक वर्णन किया गया है। विराधियोंक, कष्ट सा.यो पहिले, जेत्र यूरोप अज्ञानकी घोर निद्रामें पड़ा न देकर स्वयं कष्ट सहना खेल नहीं है, इस तन्वमें मानस- हुश्रा था, ऐसी सभ्यताको जन्म दिया जो रहती 'शास्त्र (Psychology) के गढ़ तचोंका अंतर्भाव है। दुनिया तक यादगार रहेगी और इस देशको यदि विश्वदूसरों के लिए कष्ट सहन। जीवनका बड़ा ध्येय है । जब बीज गुरुके पदसे विभाषित किया जाय तो योग्य है, श्रादि । स्वयंको नष्ट कर डालता है तब ही तो नयन-मनी र वृक्ष प्रार. सी. दत्त (R. C. Dutt.', अलपेरूनी Albeउसमेंसे जन्म लेता है। हिंसा तथा असत्य या राग भावाद्वारा run5) ब्राउन (Brown), कांउट जरना Count वैर व मत्सर बढ़ता है । अशान्तिकी लहरें जीवन-सागरमें Jerna) श्रादि कतिपय विद्वानोंने अपने लेखों द्वारा उठती हैं, द्वेषके बादल सिरपर मंडराने लगते हैं तथा सर्व उपरोक मतका ही समर्थन किया है। कहा जाता है कि नाशका पहाद सिर पर टूट पढ़ता है, किन्तु परिवह सहन आध्यात्मिक विचारवादका बीज सबसे पहिले भारतवर्ष ही में
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy