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________________ अनेकान्त विर्ष - जब हम शक्तिशाली हों, हमारे भुजदण्डोंमें बल हो, पुरुप समझ जाए तो फिर अपनी ही बोली बोलनी वीर हों और अतिवार हों या हमारे अन्दर असा- चाहिये। मित्रों ! हमारी बोली अहिंसाकी है, लेकिन धारण तथा अद्वितीय अत्मशक्ति हो। आज अपने कर्मानुसार तथा काल-चक्रकी गतिसे वीर भगवानका आदेश है "तम खद जीओ, हम इतने कायर हो चुके हैं कि हम असिंहक हो ही जीने दो जमानेमें सभी को" (Live and Let नहा सकत। आज हम दग नहीं सकते। आज हमें दंगा करने वालोंको समझामा Live) जब हम संसारमें जीवित हो, शक्तिशाली हो, है। अमर वे हमारी बोलीमें नहीं समझते तो हमें उन्नतिके शिखरपर हों, तब तुम दसरोंको मत उनको उन्हींकी बोलीमें समझाना पड़ेगा। चाहे वह दवाओ और उन्हें भी जीने दो। अच्छा व्यवहार बोली हिसाकी हो या अहिंसा की । फिर जब हम करो और अत्याचार न करो। पर यह बात नहीं है जागृत हो जाएँगे और इस भेदको समझने लगेंगे, आजके लिये। अगर हम शक्तिविहीन हैं तो भी तो कोई भी शक्ति इस प्रकारका अनुचित कार्य करने किसी को न सतावें, परन्तु आज तो हमारा अस्ति- का साहस न करेगी । मेरी लेखनी फिर वही लिखने त्व ही मिटाये जानेकी चनौती दी गई है । तम्हारी को विवश है कि जब तक हम वीर बलवान नहीं, सभ्यता, तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारे धर्म कर्म सब कुछ अहिंसक कैसे ? हमें तो विवश होकर अहिसाकी नष्ठ किये जा सकते हैं अगर तुम इसी प्रकार कायर शरण लेनी पड़ती है। बने रहे। अब जब हम स्वयं ही नष्ट हो जानेवाले हैं, मित्रो ! अाज हमें दंगा करनेवाले दुष्टोंको तब दूसरोंके रहनेका प्रश्न ही नहीं उठता । क्या अहिंसा और क्या अहिंसा ? भगवान कुन्दकुन्दके आदेशानुसार समझाना है। अपनी बोलीमें या उनकी ही बोलीमें । अगर वे __ भगवान कुन्द कुन्दने कहा है कि हमें उसी बोली अहिंसाकी वोली महीं समझते तो अपने प्यारे जैन में ही बोलना चाहिये जिसमें कि दूसरा पुरुष समझ धर्म तथा उसकी अहिंसाकी रक्षाके लिये, प्रचारके सके। उसे समझानेके लिये अगर हमें उसकी ही लिये, उन्नतिके लिये हमें हिंसाकी बोली ही बोलनी बोलीमें बोलना पड़े तो कोई डरकी बात नहीं ; परन्तु पड़ेगी। जब वे समझ जाएँगे तो हम अपनी ही हमें इस बातका ध्यान रखना चाहिये कि कहीं हम बोली बोलेंगे। उस ही बोलीको अपना माध्यम न बनालें । जब वह
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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