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________________ किरण ४-५] देहलीके जैन मन्दिर और जैन संस्थाएँ २१६ - फैज़बाज़ार-ऋषिभवन कटडामशरू (दरीबा)(१) अखिल भारतवर्षीय दि. जैन परिषद कार्यालय- (१) धर्मशाला ला. श्रीराम जैन बकीलकी-स्थापित स्थापित सन् १९२३ (२) 'वीर' साप्ताहिकपत्र कार्यालय, सन् १६०६ । (३) परिषद् पब्लिशिंग हाउस (४) परिषद परीक्षावोर्ड (५) कंचासेठ (दरीवा)जैन एज्यूकेशनबोर्ड, ये फैजबाजार में स्थित संस्थाएँ हैं। (१) बड़ा मन्दिर-जो संवत् १८८५ (सन् १८१८)में लालकिलेके पास बनना प्रारंभ हुश्रा और मगसिर वदी १३ संबत् १८६१ (१) लाल मन्दिर या उर्दूका मन्दिर-यह सबसे (सन् १८३४) में जिसकी प्रतिष्ठा हुई। स्फटिककी मूर्तिये प्राचीन मन्दिर है, जो सन् १६५६ में सम्राट शाहजहां के संबत् १२५१ को मूर्ति, लगभग १४०० हस्तलिखित समयमें बना था। यहां संवत् १५४८ की मूर्तियां हैं । स्त्री शास्त्र और छापेके ग्रंथोंका इसमें अच्छा संग्रह है। पुरुषव पुरुष समाजकी शास्त्रसभा हुश्रा करती है । कहा जाता समाजकी शास्त्रसभा होती है। (२) वर्तनफंड (जैन सेवाहै कि यह मन्दिर 'उई मन्दिर' के नामसे इस लिए प्रसिद्ध समिति के तत्वावधानमें)। (३) छोटा मन्दिर-ला० इन्द्रराजहुआ कि उसका निर्माण उन जैनियों के लिए किया गया जीका बनवाया हुआ लगभग १०६ वर्ष पुगना (सन् १८४०) था जो सम्राट शाहजहाँकी सेनामें थे, एकबार सम्राट औरङ्ग- इसमें संबत १५४६ की प्रतिमाएँ हैं । ला० इन्द्रराजजीने जेबने हुक्म निकाला था कि इस मन्दिर में बाजे न बजाये काबुल के एक दुर्रानीसे एक प्रतिमा अपना सब सामान बेच. जायें; परन्तु उनके हुक्मकी पाबन्दी न होसकी-बाजे कर ५००) रुपयेमें खरीदी थी। उसे पहले अपने घरमें बराबर बजते रहे और आश्चर्य यह कि बजानेवाला कोई प्रतिपून किया बादमें पंचोंके सपुर्द कर दिया। दुर्रानीसे जो दिखाई न देता था। सम्राट स्वयं देखने गए और संतषित प्रतिमा खरीदी थी वह संवत १५४६ की थी। (४) जैन होकर उन्होंने अपना हुक्म वापिस ले लिया। कहा जाता है धर्मशाला, (५) मुनि नमिसागर परमार्थ पवित्र औषधालयकि जिस स्थानपर यह मन्दिर है वहांपर शाही छावनी थी स्थापित सन् १९३१ (६) जैनसंस्कृतव्यापारिक विद्यालयऔर एक जैनी सैनिककी छोलदारी लगी हुई थी, जिसने पाठवीं कक्षा तक, (रजिस्टर्ड) स्थापित सन् १६११ में। अपने दर्शन करनेके वास्ते एक जिन प्रतिमा उसमें विंगज- गली अनार--धर्मपरामान कर रक्खी थी, उपरान्त उसी स्थानपर यह विशाल (१) चैत्यालय बीबी तोखन । मन्दिर बनाया गया है। सतघरा--धर्मपुरा(२) जैनस्पोर्टस क्लब (१) चैत्यालय मुशी रिश्कलाल । (२) मन्दिर-ला० कूचाबुलाकीबेगम (परेड ग्राउंडके पास) चन्दामल, स्त्रीसमाज शास्त्रसभा, (३) श्राविकाशाला । (१) जैनधर्मशाला ला० लच्छूमल कागजी-स्थापित सतघरा (बाहर) धर्मपुरा-- सन् १६२६ (१) हिसार-पानीपत अग्रवाल दि. जैन पंचायत चांदनीचौक (दरीबेके पास) कार्यालय-हाउस नम्बर ६४८ । गिरधारीलाल प्यारेलाल जैन एज्यूकेशन फंड (श्राफिम) 1147) छत्ता शाहजी (चावड़ीबाजार)हाउस नम्बर ३३॥ ___ अग्रवाल जैन औषधालय--ला. अमरसिंह धूमीमल गली खजांची (दरीबा) कागनीका, स्थापित सन् १६३६ । (१) चैत्यालय-ला. हजारीलाल का, ला० साहबसिंह नई सड़क-- का बनाया हुआ है, जो लगभग १५५ वर्ष पुगना सन् (१) भारतवर्षीय दि० जैन महासभा कार्यालय (रजिस्टर्ड) १७६१ में बना था। (२) चैत्यालय ला० गुलाबराय स्थापित सन् १८६४ में। (२) जैनगजट ( साप्ताहिक) मेहरचन्द (मुगलोंके समयका)। पत्र-कार्यालय ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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