SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देहलीके जैन मन्दिर और जैन संस्थाएँ (वा० पन्नालाल जैन, अग्रवाल) - -- अरसेसे यह विचार चल रहा था कि देहलीके जैन चैत्यालय--ला. मीरीमलजीका । ये दो जैनमन्दिर मुहल्ला मन्दिर और जैन संस्थानोंका एक संक्षिप्त परिचय सर्वसाधा- गली पहाड़के बाहर में हैं। रणके लिये संकलित किया जाय । श्राज उसे ही यहाँ मस्जिद खजुरस्थान-क्रममे पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है । इनमें (१) पंचायती मन्दिर--यह मन्दिर लगभग २०३ यदि कहीं कुछ कमीवेशी रही हो तो उक्त संस्थानोंसे परिचित _वर्ष पुराना सन् १७४३ का बना हश्रा है जिसका पीछे ना सजन उससे सूचित करनेकी कृपा करें : कुछ वर्ष हुए नूतन संस्कार हश्रा था और उससे इसने धर्मपुरा विशाल रूप धारण किया है। इसे शुरूमें महोम्मदशाह के (१) नया मन्दिर---यह ला० हरसुखरायजीका विशाल कमसरियेट डिपार्टमेन्ट के श्राफीसर प्राज्ञामलने बनवाया था मन्दिर है। वि० सं० १८५७, ई. सन् १८०. में इसका और वाटको उसे पंचायती किया था। इसमें ३ विशाल बनना प्रारम्भ हुआ था और वैसाख सुदी ३ सं० १८६४, प्रतिमाएं हैं जिनमें पार्श्वनाथजीको मूर्ति श्यामवणं ५ फुट ई. सन् १८०७ में प्रतिष्ठा हुई थी। दर्शनीय बेदी, पच्ची ६ इंच ऊँची और ३ फुट ५ इंच चौड़ी है। अन। दो कारीका अद्भुत काम, दीवारोंपर सुनहरी चित्रकारी प्राचीन प्रतिमाएँ श्वेत रंगकी है, जिनमें प्रत्येक ३ फुट ५ इंच हस्तलिखित लगभग १८०० शास्त्र और छपे हुए प्रायः ऊँची और २ फट च चौडी है। इनके अलावा कई सभी शास्त्रोंका संग्रह ये सब इस मन्दिरकी विशेषताएं है। रत्नप्रतिमा, हस्तलिखित लगभग ३००. शास्त्र और स्फटिक, नीलम, मरकत और पाषाणकी सं० १११२ की क्रपे हए कितने ही शास्त्रोंका संग्रह आदि भी इस मन्दिर बनी हुई कितनी ही प्रतिमाएँ यहाँ है। दोनों समय इसम की विशेषताएं हैं। पुरुषोंकी शास्त्रसभा होती है । स्त्रीसमाजको भी एक शास्त्र (२) धर्मशाला--पंचायती मन्दिरकी। सभा सुबहके वक्त हुआ करती है। मस्जिद खजूरके बाहर(२) स्वाध्यायशाला, (३) श्राराईशफण्ड (मिथ्यात्व (१) पद्मावती पुस्खाल दि. जैन मन्दिर--स्थापित . तिमिरनाशिनी दि० जैन समाश्रित), (४) जैन पाठशाला सन् १६३१ । (चौथी कक्षा तक) स्थापित सम्बत् १६४३, सन् १८८६, (५) जैनवर्त्तनफण्ड (दि. जैनप्रेमसमाश्रित), (६) जैन (२) मेहरमन्दिर--ला. मेहरचंदजीका बनाया हुआ, मित्रमण्डल कार्यालय स्थापित सन् १६१५ (७) जिसमें १६७००० रुपये खर्च हुए । प्रतिष्ठा २३ जनवरी श्रीवर्धमान पब्लिक लायब्ररी-स्थापित सन् १६२७, (5) सन् १८७६ को हुई। नन्दीश्वरद्वीपके ५२ चैत्यालयोंक धर्मशाला--बीवी द्रोपदी देवाकी (भूमि नये मन्दिर जीकी) अपूर्व रचना, छपे हुए व हस्तलिखित शास्रोका संग्रह, प्रात: स्थापित संवत् १६६४, सन् १९३७, (E) धर्मशाला-- काल शास्त्रसभा, ये इस मस्जिद खजूर के मेहर मन्दिरकी कमरा, धर्मपत्नी ला० चन्दलाल मुलतानवालोंका, स्थापित खास चीजें हैं। संवत् १६७E, सन् १६२२. (१०) जैनकन्याशिक्षालय-- वैद्यवाड़ास्थापित सन् १६०८ (गचवीं कक्षा तक)। ये दश संस्थाएँ (१) दिगम्बर जैन बाड़ा मन्दिर-मय चैत्य लय मुहल्ला धर्मपुरामें हैं। शान्तिनाथ स्वामी, लगभग २०५ वर्ष पुगना (सन् १७४१में गली पहाड़के बाहर निर्मित, विशाल पनिमा, स्फटिककी प्रतिमायँ, हस्तलिखित (१) चैत्यालय-ला० भींदूमल जी द्वारा निर्मापित, (२) शास्त्रभंडार, स्त्रीसमाजकी शास्त्रसभा ये सब इसकी
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy