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१८. जय -प:य
वीरसेवामन्दिरके नये प्रकाशन
१- श्राचार्य प्रभाचन्द्रका तत्त्वार्थसूत्र - नया प्राप्त संक्षिप्त सूत्रप्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोर की सानुवाद व्याख्या सहित । मूल्य ।)
Regd. No. A-736. जय
२- सत्साधु- स्मरण - मङ्गलपाठ-मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी अनेक प्राचीन पद्योंको लेकर नई योजना सुन्दर हृदयमाही अनुवादादि सहित । इसमें श्री बीर वर्द्धमान और उसके बादके जिनसेनाचार्य पर्यन्त, २१ महान आचार्योंके, अनेकों आचार्यों तथा विद्वानों द्वारा किये गये महत्वक १३६ पुण्यस्मरणों का संग्रह है और शुरूमें १ लोकमङ्गल कामना, २ नित्यकी आत्मप्रार्थना, ३ साधुवेपनिदर्शक जिनस्तुति ४ परमसाधुमुखमुद्रा और ५ सत्साधुवन्दन नामके पांच प्रकरण हैं । पुस्तक पढ़ते समय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं और साथ ही आचार्योंका कितना ही इतिहास सामने आ जाता है, नित्य पाठ करने योग्य है । मू० ||)
३- श्रध्यात्म-कमल, मार्त्तण्ड - यह पंचाध्यायी तथा लाटीसंहिता आदि ग्रंथोंके कर्ता कविवर - राजमल्लकी पूर्व रचना है। इसमें अध्यात्मसमुद्रको कूजे में बंद किया गया है। साथ में न्यायाचायें पं० दरबारीलाल कोठिया और पं० परमानन्द शास्त्रीका सुंदर अनुवाद, विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्री जुगलकिशोर की लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। बड़ा ही उपयोगी ग्रंथ है । मृ० १ | | )
४- उमास्वामिश्रात्रकाचार-परीक्षा- मुख्तार श्री जुगल किशोरजी की प्रथपरीक्षाओंका प्रथम अंश, ग्रन्थपरीक्षाओं के इतिहासको लिए हुए १४ पेजकी नई प्रस्तावना सहित । मू० ।)
५- न्याय - दीपिका - (महत्वका नया संस्करण ) - न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल जी कोठिया द्वारा सम्पादित और अनुवादित न्यायदीपिकाकाव्यह विशिष्टसंस्करण अपनी खास विशेषता रखता है। अब तक प्रकाशित संस्करणों में जो अशुद्धियां चली आरही थीं उनके प्राचीन प्रतियों पर से संशोधनको लिए हुए यह संस्करण मूलग्रंथ और उसके हिंदी अनुवाद के साथ प्राक्कथन,
सम्पादकीय, १०१ पृ० की विस्तृत प्रस्तावना, विषयसूची और कोई ८ परिशिष्टों से सकलित हैं, साथमें सम्पादक द्वारा नवनिर्मित 'प्रकाशाख्य' नामका एक संस्कृतटिप्पण लगा हुआ है, जो ग्रंथगत कठिन शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता हुआ विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके काम की चीज है । लगभग ४०० पृष्ठों के इस बृहत्संस्करणका लागत मू० ५) रु० है । कागजकी कमीके कारण थोड़ी ही प्रतियाँ छपी है। अतः इच्छुकोंको शीघ्र ही मंगा लेना चाहिये ।
६ - विवाह - समुद्देश्य - लेखक पं० जुगलकिशोर मुख्तार, हाल में प्रकाशित चतुर्थ संस्करण ।
यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में अपने ढंगकी एक ही चीज है । इसमें विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषयका बड़ा ही मार्मिक और तात्विक विवेचन किया गया है अनेक विरोधी विधि-विद्वानों एवं विचार-प्रवृत्तियों से उत्पन्न हुई विवाहकी कठिन और जटिल समस्याको बड़ी युक्ति के साथ दृष्टिके स्पष्टीकरण द्वारा सुलझाया गया है और इस तरह उनके दृष्टविरोधका परिहार किया गया है। विवाह क्यों किया जाता है ? उसकी असली गरज (मौलिकष्ट) और सैद्धान्तिक स्थिति क्या है ? धर्मसे, समाजसे और गृहस्थाश्रम से उसका क्या सम्बन्ध है ? वह कब किया जाना चाहिये ? उसके लिये वर्ण और जातिका क्या नियम हो सकता है ? विवाह न करने से क्या कुछ हानि-लाभ होता है ? विवाहकं चात् किन नियमों अथवा कर्त्तव्यों का पालन कसे स्त्री-पुरुष दोनों अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं ? और किस प्रकार अपनी लौकिक तथा धार्मिक उन्नति करते हुए वे समाज और देशके लिये उपयोगी बनकर उनका हित साधन करने में समर्थ हो सकते हैं ? इन सब बात का इस पुस्तक में बड़ा युक्तिपुरस्सर एवं हृदयग्राही वर्णन है । मू० ।।) प्रकाशनविभाग, वीर सेवामन्दिर, सरसावा सहारनपुर 25
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G मुद्रक, प्रवाशक पं० परमानन्द शास्त्री वीर सेवामन्दिर सरसावाके लिये श्यामसुन्दरलाल द्वारा श्रीवास्तव प्रेस सहारनपुर में मुद्रित