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________________ किरण १] ग़दरसे पहलेकी लिखी हुई ५३ वर्षकी 'जंत्रीखास' इस जंत्रीपरमे मालूम होता है कि सहारनपुर जिलेकी देकर भादिमें 'मोट हाशिया' लिख कर व्यक्त किया गया अदायत दीवानी कब मेरठ जिलेसे अलग हुई; का है। और जहां कहीं कुछ स्पष्टीकरण अथवा नोट करनेकी महारनपुर जिले की अकालतसे देहरादूनका इलाका प्रलग जरूरत समझी गई है उस सबो भी कट के भीतर रख हुमा, कब अदालतों और कुछ दफ्तरों में (फ्रारपीकी जगह) दिया है. जिससे तारीख मादिक मनस्तर उम उस दिनको दिन्दी जबान (भाषा) जारी हई। कब रहननामों-बैनामों फारमी भाषामें उल्लिखित घटनाएँ अपने यथार्थ स्वरूपमें वगैरहकी रजिस्टरी लाजिमी की गई। किस तारीखको समझी जा सके । घटना के समयकी तारीबादिको खाक महारनपुर की अदालत दीवानी में वकीनीकी मंचरी अपील टाइपमें दे दिया गया है:-- कोर्ट पहुंची, कब सरसावा तहसीलमें मुन्सफीकी ६ सितम्बर १८००, सोमवार-जनाब बा. बाब. अदाबत जारी हुई तथा कब उठी और कब सरसावासे जीमल कानगो परगना सरमावा इस नश्वर संमारस कूच तहसीब नकुडको चली गई तथा वहां उसकी हमारत करके वैकुण्ठवापी हुए। बननी शुरू हुई और कब सरसावा तहमीनकी इमारत १५ अक्तूवर १८०४, मोमवार-शेरपिंह मकहरने मीबाम तथा उसे किस किमने खरीदा। कस्बे सुलतानपुरको गारत (लून-मार द्वारा बर्वाद) किया । सायही, यह भी मालूम होता है कि उस समय १ अगस्त १८१६, गुरुवार - सन् ११ जलूम धकपकाखात एक परकारी श्रोहदा (पद) था, जिसपर सरकार बरशाह बादशाह शुरू हमा। की तरकसे योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति बजरिये सनदके की २० मई १८१७ मङ्गलवार-नवाब वजीरपलीखों माती थी और उसमें वकालतका स्थान निर्दिष्ट रहता था का कलकत्तेके किले में देहाम्म हुआ। माज की तरह इम्तिहान पास करके हर कोई उसे १ जुलाई १८१८, बुधवार-मदर हुस्ममे निता स्वेरखासे प्रान्त अथवा जिले के चाहे जिस स्थान पर नहीं सहारन सहारनपुरकी अदालत नीवानी मेरठ के जिले में मलग हुई। करने बगता था। इस जंत्रीके लेखक ला दलहरायजी २७ नवम्बर १८१८, शुक्रवार-अदालन दीवानी पहले सरसावाके क ।गो थे--कानगोईका भोहदा भापके जिला महारनपुर के वकीकोंकी मंजूरी पालकोट से पहूँ। वंशमें बादशाही वक्तसे चना भाता था'--बादको मुन्मती (इस तार खस सहारनपुरकी अदावत दीवानीमें वकालत चिलकानाके वकील मुकर्रर हुए थे, भापके छोटे भाई . ११ अप्रैल १८१६, रविवार--मेषकी संक्रान्तपर ला. बस्तावरसिंहबी देहरादून के वकील थे और मापके स्नानके वक हजागे भादमी मर गये । (यह घटना हरद्वार पुत्र बा. फतहचंद जी पहले मुन्सफी चिजक ना तथा की जान पड़ती है) नकुडके (और बादको सहारनपुरके) वकील मियत हुए थे। २५ सितम्बर १८२१, मंगलवार--भदाखत ये मब घटनाएँ भी इस जंत्रीपरस जानी जाती है। दीवानी (महारनपुर) की तातील एक माहके लिये २५ अब मैं इस जंत्रीक खाने कैफियत और हाशिये पर ली । मोट की हई घटनाओं में से कुछ थोडी मी घटनाएँ अनुवादित १अक्तूबर १८२४, शक्रवार-हरमाल ज्वालापुर रूपम, ताराख महाना सन् भार दिनक साथ यहा देदना के जो रुपये सहारनपुर (खजाने में जमा होने की) प्रारहे थे चाहता हूँ, जिपसे पाठकों को इस जंत्रीकी घटना-लेखन. .. -लखन. उन्हें दूसरे कुछ भादमियोंके महित कल्लू डाकूने लूट लिया। पद्धतिका कुछ विशेष परिचय प्राप्त हो सके और वे कितनी ३ अक्तूबर १८२४, रविवार--मौजा कुंजा ताना. ही पुरानी बातोंको जान सकें। हाशिये वाली घटनाको का तागज हुप्रा (फौजी हमलेसे लुट गया)। १ पुरानी दस्तावेजों और कागजातमें श्रापकी सान पीढी तक दिसम्बर १८२५, गुरुवार--इस तारीख में कानून के पूर्वजों के जो नाम मिले हैं उन मबको कानूँगो लिम्बा है। (ऐक्ट) नं. १६ सन् १८२४ बमन्सूनी कानून अम्बनमन् आपका वंशभी 'खान्दान कानूंगोयान'के नामसे प्रसिद्ध रहाई 141 मुताक कागजात स्टाम्प जदीद (नया) जारी हुमा ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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