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________________ किरण ३] अनेकान्त १२३ रही कि चकि महावार अवतारी पुरुष है, इसलिये उनका भक्ति किये जानो या योगसाधन करो, ईश्वर प्रपन होगा उपदेश, चरित्र या कलाम हमारे लिये धर्म है, नहींबल्कि और उसमे तुम्हें मुक्ति प्राप्त होगी। जबकि वीर भगवान ने महावीर इमलिये पूज्य हुए कि उन्होंने उनके पूर्व मुक्ति संसारके इतर धमोसे पृथक यह फरमाया कि अपनी अपनी प्राप्त तीर्थ रों( विश्वहितैषी बल्याण पथ दर्शकों द्वारा मामाको पहिचानो और उसके अन्दर पाई जाने वाली प्रणीत प्रत्येक जी रुहो पाक व पवित्र करनेवाले धर्मको चिन्य और अनन्त ईश्वरीय शक्तिपर विश्वास करो पालकर जिस तरह अपनी प्रास्माको पहचाना, उसको Nan objection hy, is a creature of tate and अमलकर विकास करनेके तरीकको जाना और चरित्रके subjectindly has conscrousness and is free. द्वारा श्रामलकर ईश्ववप्राप्तमें कमाल हामिल किया था गरज श्रा'माको उत्तरोत्तर पवित्र करते रहनेसे जीव अनन्त इपलिये वे कामिल इन्मान होकर जीवन्मुक्त होगये । उस कर्मराशिको नए करमकता है, पतितसे पतित पारमा मनुष्यके अवस्थामें उन्होंन मंमार में भटकते ज.म मरणाके करमें दका पाकर परमारमा अथवा कृतकृत्य हो सकता है। पडे जी को जो अनुभू सरचा धोपदेश अपनी वाणी (२) दुसरा जगह प्रायः सवत्र जहां श्वरमें किया वह हमारे ल्याग का कारण है । अत: उस वाणी पनेक कारण मनुष्यको सदैव उमका सेवक या गुलाम बना का हम जितना मुख्य करें, थोड़ा है। भगवान महावीर रहना और उसकी मर्जीपर अनन्त सुखका पाना बताया है पूर्व और भगवान पार्श्वनाथके पश्चात ..ध्यका काल धर्म वहां वीरने ईश्वरकी गुजामी सदैव करते रहने के खिलाफ और चरित्रहीन होकर जैमा अंधकारमय होगया था उस वगावत करने और पाजाद होकर खुद ईश्वर बनजानेका घनघोर निशामें वीर भगवानकी मवतोप्रथम श्रावण न याष नुसखा पेश कर दिया है। कृष्ण प्रतिपदाको धर्मदेशना होना-हमारे परम सौभाग्य (३) दूसरी जगह जहां संमारके धर्मप्रवर्तक का विषय है और जिस जगह वह हुई वह है हमारे महापुषषोंने अहिंमा धर्मके एक एक अङ्गका पालन व लिये पुण्यभू । अत: हमारे समीप भगवानकी वह वाणी प्रचार करनेमें अपना नाम अमर किया है ज्यादा महत्वकी है और तदुपरान्त भगवान महावीका वहां जैनधर्मने यह बताया कि संसारमें जहां २ जीवव्यक्तित्व। रक्षणका कार्य है वहां २ सब जगह अहिमा तत्व कार्य अब हम संक्षेपमें उन छ बातोंको कहने का यत्न करते हुए पाया जाता है। अहिंमा धर्म सर्वव्यापी सिौत करेंगे जो इस वाणीकी प्रतीकिक और अभूतपूर्व विशेष- है। ईसाइयोंका मेवाधर्म, मुस्लिमोंका विरादराना मलक नाएँ कही जा सकती हैं। (बराबरीका भाईचारापन), बुद्धकी दया, हिन्दुओंकी भक्ति (१) सबसे पहले हम 'विश्वास' की बानको लेते हैं। और कम्य-परायणता, मब महावीरकी 'हिंसा'ने प्रायः हर धर्म कहता है कि हम पर विश्वास जाओ और अन्तभून अंग हो जाते हैं अहिंमाधर्मकी अनपम सा. जन ता भौमिकता एवं अश्रतपूर्व वृहद् रूपका जैमा सांगोपांग कहता है कि तुम विश्वास करो कि ईसा खुदाका बेटा है वर्णन महावीरने किया वैसा अन्यत्र पाना असंमव है। और वह तुम्हारे गुनाहोंको बाशवाने के लिये सूलीपा चढ़ा। (४) सारे संमारने जहां ईश्वरको जगतका कर्ता-हर्ता जो उमपर यकीन लायगा उसे यकीनन मुने, या नज़ात माना और जीवके सुख-दुखका उत्तरदायिम्य अहां परहामिल होगी। दुनियामें इस धर्मके माननेवाले सबसे मामापर नादा गया है वहां महावीर-धर्मने इसे अपने ज्यारा है। दूसरे नम्बरपर है इस्लाम धर्म । उसका कहना शुभ अशुभ कर्माका फल माना और परमात्मा दर्जेको है 'लाइलाहा इल्लिलिल्लाह मुहम्मद रसूल जिल्ला--कुरान शुद्ध, बुद्ध, कनकत्य, पचित श्रानंदमय, रागद्वेष परिणति शरीफ । अर्थात खुदा एक है और मुहम्मद साहब उपके में रहन और निर्विकार, यानी महावीरका धर्म तुलसीदास रसल या पैगम्बर हैं। इसपर विश्वास करो तुम्हें नजात के शब्दों में 'कर्मप्रधान विश्वकरि रास्खा। जो जम करी हासिल होगी। हिन्दु धर्ममें ईश्वर जगतकर्ता है, उसकी मौतम फल चाखा ॥ का शतप्रतिशत हामी है। काँका
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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