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________________ ११८ अनेकान्त [वर्ष जो रूप, गुण, कला और विद्या तथा यौवन और गृहस्थो- म. वर्धमानका जन्म जनताके लिये बदा ही सुखचित सभी आवश्यक उत्तम गुणोंमे विभूषित थीं। उनसे प्रद दुमा । उनके जन्म समय संसारके सभी जीवोंको प्रथम पुत्री प्रियकारिणी विदेह (वैशाली या वसाह) क्षणिक शान्तिका अनुभव हुमा था। भनवान वर्द्धमानकी देशमें अवस्थित कुंजपुर या क्षत्रिय कुण्डपुरके राजा बाल्यकालीन दो खास घटनाओं के कारण वे बादको महावीर मिदार्थ' को विधाही गई थी, जो उस समयमें वैशालीके और मन्मतिनामसे ख्यापित हुए ।५ भगवान बर्द्धमान मांडलिक राजाक रूपमें प्रसिद्ध थे। क्षत्रिय कुण्डपुरमें उस बाल्यकाकसे ही प्रतिभासम्पन्न पराक्रमी, वीर, निर्भय, ममय ज्ञानृबन्शी क्षत्रियोंके पांचसौ घर थे इस कारण धीर और मति-श्रुत, अवधिरूप तीन ज्ञानरूपी नेत्रोंसे उप श्वेताम्बीय ग्रन्थों में 'वत्तिय कुडपुर' के नामसे संयुक्त थे। उनका शरीर अत्यन्त सुंदर और मनमोहक उल्लेखित किया गया है। यह नगर उस समय खूब था, उनकी मौम्य प्राकृति देखते ही बनती थी और उनका समृर था, भोग और उपभोगकी सभी चीजोंपे परिपूर्ण मधुर संभापण प्रकृतित: भद्र और लोक हितकारी था। था। राजा सिद्धार्थ क्षत्री थे. इनका वंश नात णात या उनके तेज पुंजसे वैशाली और कुण्डपुरकी शोभा दुगुणित ज्ञान वंश कहलाता था। होगई थी और वह इन्द्र पुरीसे किसी बात में कम नहीं थी। भगवान बर्द्धमानका जन्म और वाल्य जीवन भगवान महावीरका जीव अच्युत स्वर्गके पुष्पोत्तर भगवान महावीरका वैराग्य विमानमे चल कर प्राषाढ़ शुक्ला षष्ठीके दिन जबकि हस्त और उत्तरानक्षत्रोंक मध्य में चन्द्रमा अवस्थित था, रानी __ भगवान महावीरका बाल्यजीवन उत्तरोत्तर युवावस्था में प्रिय कारिणीके गर्भ में पाया । नवमास भाठ दिन अधिक परिणत होगया राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणीने व्यतीत होनेपर चैत्र शुक्ला त्रयोदशीको सौम्य ग्रहों और महावीरको वैवाहिक सम्बन्ध करानेके लिये प्रेरित किया, शुभ लग्नमें जबकि चन्द्रमा उत्तराफाल्गुणी नक्षत्रपर क्योंक राजा जितशत्र जिसके माथ कुमार वर्द्धमानके स्थित था, भगवान महावीरका जन्म हुअा।' इन्द्रने श्री पिता सिद्धार्थकी छोटी बहिन विवाही गई थी। अपनी वृद्धि के कारया भगवानका नाम वर्धमान सखा। पुत्री यशोदाके साथ कुमारवर्द्धमानका विवाह-म्बन्ध करना चाहता था । परन्तु कुमारवर्द्धमानने विवाह-संबंध परन्तु श्वेताम्बरीय ग्रंथामें इनके नामोमें कुछ भेदपाया जाता है और वहां त्रिशला प्रियकारिणीको गजा चैमितपक्षफाल्गनि शशांकयोगे दिने त्रयोदश्यां । चटककी बहन बतलाया जाता है। जज्ञे स्वोच्चस्थषु गृहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ।। ५ ॥ सिद्धार्थ नपनि तनयो भारतवास्य विदेह कुंडपुरे । -निर्वाणभक्तौ पूज्यपाद : देव्या प्रियकारिण्या............ निर्वाणभक्तौ पूज्यपादः यहां यह प्रकट करदेना भी अनुचित न होगा कि श्वेताम्बरीय कल्पसूत्र और श्रावश्यक भाष्यमें ८२ दिन २ देग्यो श्रमगा भगवान महावीर पृ०५ बाद देवनन्दा ब्राह्मणीके गर्भका बालक त्रिशलाके गर्भ में ३ श्रापाद सुमित पाठ या हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते शशनि । और त्रिशला (प्रियकारिणी) के गर्भका बालक देवनन्दा अायातः स्वर्गसुग्वं मक्ता पयोत्तराधीशः ।। ब्राह्मणीके गर्भ में इन्द्रकी अाज्ञा से देवों द्वारा परवर्तित --निर्वाणभक्तौ पूज्यपादः कराये जानेका क्या कारण है ? नियुक्तिकार भद्रबाहने ४ नवमामवतीतः स जिनोऽदिनेषु च । इस कल्पनाका आवश्यक नियुक्ति में कोई उल्लेग्व नहीं उत्तरा फाल्गुनीष्विंदी वर्तमानेऽननि प्रभुः ।। किया। अत: बहूत संभव है कि उसके बाद वाहाणोंको --हरिवंशपुगण २, २५ नीचा दिखाने के लिये इस कल्पनाका उद्गम हुअा हो।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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