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________________ अनेकान्त [ वर्ष ८ दिया है। इससे स्पष्टतया सिद्ध हो जाता है कि गोविन्द अमल नहीं वरन बीमयों वर्ष पीछे असल परसे द्वितीयकी एक उपाधि जगतुंग भी थी और इस प्रकार की गई नकलमात्र मानते है । और जैसा भी है राष्ट्रकूट वंशका जगतुग उपाधिधारी सर्व प्रथम राजा वही धूलियाका यह ताम्रपत्र ही गोविन्द द्वि. के समयका था न कि गोविन्द तृतीय। अन्तिम उपलब्ध उल्लेख है। इस साहिबवाले जो साथ ही, गोविन्द दिल के राज्यकाल के संबंध में प्रायः सब स्तम्भ लेख हैं उनमें कोई तिथि नी दी हुई है। उपर्युक्त ही विद्वान अनिश्चित है। उसके पिता क्रष्णाराज समयके के अतिरिक्त इस गना के संबंध में अन्य कोई समकालीन मन् ७७० ई. के अभिलेखमें उसका उल्लेख गोविंदराजके उल्लख न ना साहित्यमे मिलता है और न पुरातत्वम् । नामसे मात्र एक राजकुमारके रूप में २ । मन ७७२ ई०के सेकड़ों वर्ष पीछे के अन्य राष्टकूट नरेशोंके अभिलेखोंमें अभिलेखमें वह 'युवराज' के रूपमें मिलता है। उसका प्रसंगवश इसके जो उल्लेख मिलते हैं उनपरसे इना अपना कोई समकालीन अभिलेख है नहीं। सन् ७७५१. के. ही जाना जाता है कि यह व्यक्ति यद्यपि अच्छा योद्धा और पिंपरीके ताम्रपत्र में उसका कोई उल्लेख नहीं, उसके स्थानमें वीर था किन्तु बड़ा दुश्चरित्र था, अत: माग राज्यकार्य उसके भाई ध्रुवराजका 'परमभट्टारक महाराजा घराज परमे उसके भाई ध्र के ही हार्थो में था। ध्र वकी श्राधीनतापे श्वर पृथ्वीवल्लभ पारावर्ष श्रीध्र वराजदेव' के रूप में उल्लेख छुटकारा पाने के लिये उसने कुछ सामन्तोंकी सहायतास मिलता है। इस ताम्रपत्रकी सत्यतामें किसीको कोई संदेह ध्रुवको पदच्युत करना भी चाहा, किन्तु उसकी यह चेष्टा नहीं और हमसे उस समय राष्टकूट माम्राज्यका एकाधिपति सफल नहीं हुई, ध्र वने उसे तथा उपके सहायकोंको ध्र वराज ही सूचित होता है। अलबत्ता सन् ७७६ ई. के पराजित करके सम्पूर्ण राज्यसत्ता अपने प्राधीन करनी।। धूलियाके ताम्रपत्र में, जो ध्र वराजकोटे पुत्र कर्कराज यह राज्य क्रान्ति कब हुई और परिणामस्वरूप गोविन्द द्वि. द्वारा लिखाया गया कहा जाता है उसके राज्यका उल्लेख का ज्या अन्न हुआ इसे कोई नहीं जानता। ऐयो स्थिति 'श्रीप्रभूतवर्षस्य "प्रवर्धमानराज्ये' शब्दों में मिलता है, में इन प्रमाणोंपर भिन्न २ विद्वानोंने अपने २ अनुमानों साप ही उसमें ध्र वराजका उल्लेख 'श्रीध्रवराजनाम्ना द्वारा उपके गज्यका वर्णन किया है। उपर्युक्त वर्णनप यह (मा) महानुभावो विहितप्रतापः प्रमाधिताशेषनरेन्द्र भी स्पष्ट है कि राज्य क्रान्ति सन् ७७५ ई. बगभग, चक्रचूडामणिः' इत्यादिरूप में किया गया है, और कहा पिम्परी ताम्रपत्रके पूर्व भी हो सकती है और धूलिया ताम्रगया है कि उनके (ध्रुवके) पुत्र कर्कराजने उनकी (६ वकी) पत्रके पश्चात् (७१६ ई०के पश्चात् भी। डा० अल्ते करने भाज्ञास समस्त प्राधान राजामों-सामन्तोंको श्राज्ञा दी.... गोविन्द दि०की राज्यसमाप्ति और ध्र वकी राज्याप्ति ई.सन् इत्यादि"। प्रथम तो प्राय: सब ही विद्वानोंको धूलियाके ७८० के लगभग अनुमान की है। सो भी केवल धूलिया इस ताम्रपत्रकी सत्यतामें ही सन्देह, अनेक कारणोंसे के (प्रायः सन्दिग्ध समझे जाने वाले) ताम्रपत्रको निभानेक कई विद्वान इसे जाली ही समझते हैं । डा. प्रतेकर । लिये। इत्यादि इसे बिल्कुल जाली नहीं तो कमसे कम ७ Altekar: R. T. p. 51, & n. 2. १E.C.XI challakereno.34. ८ Karhad plate of Krishna III of 959 २ Talegaon plate of 770-Altekar: R. T A. D.-E. I. IV. p. 278, Kharda plate ___p.49 & n. 2 of karka Il of 972 A. D.-E. I. XII Ibid p. 263.; Doultabad plates-E. I. p. 193 ४ E. I. X. 1909-10 p. 81-9. H., and Altekar : R. T. p. 51. ५ Ibid p. 81. E Altekar : R. T. p. 51. & Ibid p. 81, 82 also foot note. १. Ibid f. n. 12.
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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