SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण २] हरिषेणकृत अपभ्रंश-धर्मपरीक्षा एकदा परिणी नापि विन्ने दैवयोगतः। यह पद्य मतदरि के नीतिशतकसे लिया गया है। नं ५४) भर्तयक्षतयोनिः स्त्री पुनः संस्कारमईति || १४, ३८ अमितगतिने इन प्रकार के । चार विभिन्न प्रकरणों में (६) हरिप्रेण-०५०, पृ० ४३ व्यक्त किए हैं। ले कन इम प्रसंग में हम कोई तुलनात्मक अष्टी वर्षाण्युदीक्षेत ब्राह्मणी पतितं पतिम् । पद्य इस कोटिका नहीं मिला है। अप्रसूता च चत्वारि परतोऽन्यं समाचरेत् ।। (१४) हरिपेण---ध०प०, १०, ६ पृ० ६४-- अमितगतिका पद्य(१४, ३६) निन्नप्रकार है- (ए) स्वयमेवागतां नरी योन कामयने नमः। प्रतीक्षेताष्टवर्षाणि प्रसूता वनिता सती । ब्रह्म हत्या भवेनस्य पूर्व ब्रह्मान गीदि दम ।। अप्रसूतात्र चत्वारि प्रोषिते सति भर्तरि ॥ (बी) मातरमोद माग्मगद पत्र यीन कामा। (१०) हरिषण-ध०१०,७,८, पृ० ४३ ए अमितगतिका रचनाम उल्लिखित कोटि के कोई उल्लेख पुगणं मानवो धर्मः साङ्गो वेद चिकित्सकम् ।। नहीं है। श्राज्ञामिद्धानि चत्वारि न हन्तव्यानि हेतुभिः॥ (जारिभद्रमूरिका। मन लगभग ७००-७७०का) प्राकृत अमितगतिकी धर्मरक्षा (१४. ४६ ) में यह पद्य का धूख्यिान' पाकत और मंकनक धर्मपरक्षा ग्रन्याम एकसा है। उपस्थित साहित्य के अग्रवती रूका मुन्दर उदाहरगा हे। (११) हरिपंण-~-३०प०, पृ०४३ ए.-- इन रचनाश्रोका लक्ष्य पागणक कथाप्राक, अविश्वमनीय मानवं व्यासवासिष्ठं वचनं वेदसंयुतम् । चरित्र-चित्रणका भण्डाफोड़ करना है। दरभद्र अपने उद्देश्य अप्रमाणं तु यो यात्स भवेद्ब्रह्मधानकः ।। में अत्यन्त बुद्धिपूर्ण ढंग पर मफल हुए हैं। कथानक बिल. अमितगतिका तुलनात्मक पद्य ( १४, ५०) इस कुल मीधा-मादा है। पोच धूत इकट होते हैं और वे प्रकार है निश्चय करते है कि प्रत्येक अपना अपना अनुमा सुनावे। मनुव्यासवशिष्ठाना वचनं वेदमंयुतम् । जो उनका अमाप कहेगा उसे मन को दावत देनी पड़ेगी अप्रमाण यतः पुसो ब्रह्म हत्या दुरुत्तरा ॥ और जो पगरगामे नत्मम घटनाग्राको सुनाता हुअा उमे (१२) पेण-ध० ५०, ८, ६, पृ० ४६-- सोनम मंभव तरीकेपर निदोष प्रमाणित करेगा वह धूनगतानुगतिको लोको न लोक: पारमार्थिकः ।। रान ममझा जायगा । प्रत्येक घृत मनोरंजक और कटपटांग पश्य लोकस्य मूर्खत्वं हारतं ताम्रभा जनम् ।। अनुभव सुनाता है जिनकी पुष्टि उनका कोई माथी परागामि आमतगतिका पद्य प्रथम-पुरुप्पम है नत्मम घटनाग्रांका उल्लेख करता हुअा करता है । दृष्टवानुसारिभिर्लोक: परमार्थविचारिभिः । स्थानपर प्रदेयम, सत्व नुकम्माको नगद भूनानुकम्पा, तथा स्वंदायत कार्य यथा मे ताम्रभाजनम ।। ६५, ६४ मतिः के स्थानपर विधिः पन्थाः के म्यानम मागेः। (१३) हरिपेण-ध० ५०,६,२५, पृ०६१-- दो नामाङ्कित विभिन्न पाटान्तर्गक माय यह पय सुभाषितप्रागाघातानिवृत्तिः परधनदरगणे मंयम: सत्यवाक्यं । रत्नभाण्डागारम (०२८२ पद्य मं० १.५६) में भी काले शक्त्या प्रदानं युवति जनकथामूकभावः परपाम् ॥ है--विनतिः के स्थानपर विनयः और सत्वानुकम्पा ताणासोतीविभङ्गा गुरुपु च विनतिः सर्वसत्वानुकम्ग की जगद भूतानुकम्ग। सामान्यं सर्वशास्त्रवनुपदतमान : श्रेयमामेष पन्या:२ ॥ ३ धर्म परीक्षा अध्ययनकं प्रमंगम मिगेनीन धनाख्यान का १ यह और निम्नलिम्वित पद्य यशस्तिलकचम्पू उत्तराई पहलेम ही निर्देश किया है । मैं प्रो जिन व नया गारनीय पृ० ११६ में है। पद्य नं०१० मनुस्मृतिक १२, ११०-१ विद्याभवन का अनुगृहत हूँ, जिन्होंने कराकर अप्रकाशित की कोटिका है। धूताख्यानके-जिमका कि वे मंदन कर रहे है२ यह पद्य यशस्तिलकचम्पू उत्तगई पृ०६६ में कुछ एडवांसफार्मोको, मुझसे यह ज्ञात कर भेज दिया कि मैं विभिन्न पाठान्नरोंके साथ पाया जाता है-प्रदानम् के ने हाल ही में एक नई अपभ्रंश धर्मपरीक्षा उब्ध की है।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy