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किरण ३-४]
मानव-संस्कृतिके इनिहापमें भगवान् वीरकी देन
दार्शनिक जगन के मरजेश नष्ट हो जायगे। विवार-प्रस्न चहा, अनधिकार हस्तक्षेप, और पर-अधिका-हरण भादि विषयोंका विषम-विवाद खत्म हो जायगा। इससे मानध- बातें पाप है, जिनका फल प्राधेक प्राणीको अवश्य भोगना जातिमें सौहार्द उत्पन होगा। विश्व-बधुस्व एवं प्रेमका ही होगा। तदनुसार पाप-पुरुषको मान । म संबंधी विकाम होगा। जिसके बल पर मानव जात सतुष्ट, संपुध, फल-प्राप्ति प्रकृतिकी स्वाभाविक बात है-यही कममिद्धान्त सुखी और ज्ञानशील बनेगी। यह वीरकी वह अमृतमय है-जो कि ईश्वर-कर्तृत्व और वरीय प्रेरणा जैस बंधदेन है, जो कि मानव-जातिके सुख-खोतको मदेव मिर्मरमय विश्वासमे जनताको विमुक्त करता है। बनाती रहेगी।
रघर-कर्तृत्व जैसी कुछ एक बातोंका निषेध करणा वीरको धौथी और उसनदेन कर्म निन्द्रान्त है । वीर ईश्वरीय पत्ताचा निषेध करना नहीं है। ईश्वरीय सत्ता प्राध्यापक महापुरुषनाथे । किन्तु माय मानव-जीवनके पत्ता है, और प्रत्येक प्रात्माका अंतिम ध्येय और अंतिम लिये वे व्यावहारिकताको भा प्रावश्यक समझते थे। उन नम विकाय ईश्वर ग्व-प्राप्ति ही है। का विचार-धारामे यह प्रवाह स्पष्ट रूपेण प्रवाहित हो रहा इस प्रकार हम देखते है कि सामय-संस्कृतिक इतिहास था कि स्वस्त पाप-पुण्यका फन प्रत्येक प्रामाको अघश्य । मामव-जासिक मुखलिये वीरकीबसी देन है-- २ मिन्नता ही है और उसका मानना स्वाभाविक ही है, उपकार हैं। गंभीरता-पूर्ववक मांधा जाय तो पता चलेगा अन्यथा--"कृतका नाश, और अकृतका भोग प्रादि कई कि भगवान वारने मानव-समाजके वियामके इतिहममें एक' महावृषण उत्पन्न हो जायेंगें जो कि मौलिक क्राति की है। इसहायकी धारा हा मोद दो है। मानवता हायके साथ २ व्यवहा मार्ग एवं राजनीति इस प्रकार वीर केवल जैनियोंकी ही विभूति नहीं है बक्षिक मार्गको भी विपरीत-मार्गपर संचालित कर दंगे. निर्बल त्रिकालवी संपूर्ण मानव जाति और जीव-जगतकी त्रिकालमालका मदेव भषय बनता चला जायगा। अध्यवस्था एवं वदनीय विभूति हैं। अनवस्था उत्पन्न हो जायगी। हमी लिये पास-पुण्यकी युति यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि ज्यो समय गगन व्यवम्गका प्रामाणिक एवं वास्तविक सिद्धान्त कायम बीतता चला जायगा यो ३ पोरके त्याग और तपके फर पुनर्जन्म, मृ' मुम्ब दुग्य-प्राप्ति एवं मुनि श्रानि स्वा- मूल्यको अधिकाधिक रूपमे आंका जायगा। तथा विश्व. भाविक घटनापोका मगति कम-पिवान्तकी अनुरू। व्याख्या समस्याओं का हन और निश्व शौतिका माधार धारक कथित के रूपमे प्रतिपादन की।
पिवानकि पावरमा में ही सखिहित है. यह भी भली भांति तापर्यय यह है कि प्रत्येक प्राणीको अपने अधिकार ज्ञात होता चला जायगा। प्राप्त करने और भोगनेका ममान अधिकार है। अनधिकार
कलकत्तामें वीरशासनका सफल महोत्सव
वीरशासन जिम सार्धयमहस्राब्द महोत्सवकी भौ तथा भावासस्थानको कमी तथा कंट्रोल भागे भादिम होने मे मावाजे सुनाई पड़ रही थी, योजनाएं हो रही थी और वाली परेशानीके कारण स्वागतममिनिकी ऐमी भावन प्रतीक्षा की जा रही थी वह आखिर कलकत्तामै गन ३, कि बाहरके भाई पहलेसे सूचना लिये बिना उपस्थित न अक्तूबरमे ४ नवम्बर तक हो गया और बड़ी सफलता हो, कम संख्या ही उपस्थित हो और को उपस्थित साथ हो गया। कलकत्ता जैसा दरवर्ती नगर, रेल्वे सफर हो वे सब कामके ही मामी होय--वीरशासन प्रमा की भारी कठिनाइयों और इधर कलकसा साच पदार्थों कार्यों में सक्रिय भाग बोने वाले ही होवे, इन सब बातोंको