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* ॐ अहम् *
ततत्त्व-सद्यातक
विश्वतत्त्व-प्रकाशक
वाषिक मूल्य ४)
इस किरणका मूल्य ।)
नीतिविरोधध्वंसी लोकन्यवहारवर्तकः सम्यक् ।। परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
वर्ष ७ किरण ७,८
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरमावा जिला सहारनपुर फल्गुन-चैत्रशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७१, विक्रम सं० २००१-२
फर्वरी, मार्च
१६४५
श्रीअमृतचन्द्र-स्मरण आगम-हृदयग्राही मर्म-ग्राही च विश्वतत्त्वानाम् । यो मद-मोह-विमुक्तो नय-कुशलो जयति स सुधेन्दुः ॥ १ ॥ यवचनामृतवर्षर्जडताऽऽतपथातनादुपागच्छति । शान्तिः सर्वजनानां सोऽमृतचन्द्रो मुनिर्वन्धः ॥ २ ॥
-युगीरः 'जो आगमके हृदय-ग्राही हैं-श्रागमशास्त्रोके रहस्यको जिन्होने भले प्रकार भा है-, विश्वतत्त्वों के मर्मज्ञ हैं- संपूर्ण चराचर जगत्के अन्तर्गत सभी पदार्थों के मर्मको जिन्होने रचून पहचाना है-, मद-मोहसे विमुक्त हैं-अहङ्कार और मोह जिनके पास नही फटकते-और साथ ही जोनयकुशल हैं-नयों के सम्यक स्वरूप तथा व्यवहार से अवगत हैं-ये श्रीअमृतचन्द्राचार्य जयवन्त हैं अपने प्रवचन-द्वारा सदा ही लोक हृदयों में अपने प्रभावको श्रङ्कित किये हुए हैं।
“जनके वचनरूप अमृतकी वर्षामे--पुरुषार्थसिद्धय गाय, तत्त्वार्थमार और ममयमार-कलशादि जैसे प्रवचनोद्वारा की गई तत्वामृत की वृष्टिंसे-जडतारूपी आताप दूर हो जाता है-अज्ञता मय भारी गर्मीसे उत्पन्न हुई बेचैनी मिट जाती है और उसके दर होने अथवा मिट जाने से शान्ति स्वतःही सब जनों के ममीर पाती है-सभी सन्तप्त-हृदय अनायाम ही शान्ति-सुखका अनुभव करते- मुनि श्रीश्रमृतचन्द्रसूरि वन्दनीय हैं-सभी श्रात्मशान्ति के अभिलाषियों-द्वारा नत-मस्तक होकर श्राराधनीय हैं।)