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________________ * ॐ महम् - विश्वतत्व-प्रकाश वार्षिक मूल्य ४) २० एक किरण का मूल्य ।) PEAKER नीतिविरोधष्वंसीलोकव्यवहारवर्तकसम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ वर्ष ६, किरण वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरमावा जिला सहारनपुर, कार्तिक शुक्ल. वीरनिर्वाण सं० २४७०, विक्रम मं० २०.. अक्तूबर १६४३ समन्तभद्र-भारतोके कुछ नमूने । १६ ] श्रीशान्ति-जिन-सतोत्र विधाय रचा परतः प्रजानां राजाचिरं योऽप्रतिमप्रतापः । व्यधात्पुरस्तात्स्वत एव शान्तिमुनिर्दयामूतिरिवाज्यशान्तिम् ॥१॥ 'जो शान्तिाजन परसे--शत्रुओंसे--प्रजाजनोंकी रक्षा करके चिरकाल तक अप्रतिम-प्रतापकेअनुपम पराक्रमके--धारक राजा हुए और फिर जिन्होंने स्वयं ही-विना किमीक उपदेशक--मुनि होकर दयामूर्तिकी तरह सबसे पहले (हिंसादि) पापोंकी शान्ति की।' चक्रण यः शत्रुभयङ्करण जिस्वा नृपः सर्वनरेन्द्र-चक्रम् । समाधि-चकण पुनर्जिगाय महोदयो दुर्जय-मोह-चक्रम् ॥ २ ॥ 'जो (गृहस्थावस्थामें) शत्रुओंके लिये भय उपजाने वाले चक्रसे सर्व नरेन्द्र चक्रको--मंपूर्ण गजाश्री के ममूहको-जीत कर चक्री नूप-चक्रवर्ती सम्राट्--हुए, और (मुनि अवस्थामे) समाधि-चक्रसे-धर्मध्यानशुक्तध्यान के प्रभावसे--दुर्जेय मोहचकको--मोहनीय कमके मूलोत्तर-प्रकृति-प्रपंचको-जीत कर जो महान् उदयको -अपने पूर्ण विकासको--प्राप्त हुए हैं।'
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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