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________________ विषय-सूची समन्तभद्रभारती कुछ नमूने[सम्पादक पृ०11८ सभी ज्ञान प्रत्यक्ष है-4. इन्द्रचन्द शाखी ... २ नोंका विश्लेषण [पं. वंशीधर व्याकरणाचार्य ८३ जागोर हे युगप्रधान(कविता)-4. पचालान सा... . जैनजागरण वा-सूरजभान [4. कन्हैयालाल'प्रभाकर'८८ १. वर्तमान संकटका कारण-बा० उग्रसेन एम.ए.११. " माधव-मोहन (कहानी)-मा.पं. जगदीशचन्द्र . . विश्वको पहिसाकासंदेश-बा०प्रभुलाशा जैन 'प्रेमी'." ५ कवि-प्रतियोष (कविता)-[श्रीमामराज हर्षित १२ मानवताके पुजारी हिं०-[श्रीकन्हैयालाल 'प्रभाकर' १५ ६ सासादन-संबंधमें शासनभेद-प्रो.हीरालाल ७३ जैनधर्म पर अजैन विद्वान् (संकलित) ११७ . जैनधर्मकी कलक-[4. सुमेरचन्द दिवाकर १४ व्यवस्थापकीय निवेदन वीर-शासनका अर्धद्वय-सहस्राब्दि-महोत्सव वीर-शासनको--भ. महावीरके धर्मतीर्थको--प्रवर्तित हुए ढाई हजार वर्ष समाप्त होरहे हैं, अतः ढाई हजार वर्षकी समाप्ति पर कृतज्ञ जनता और खासकर जैनियों के द्वारा वीर-शासनका 'अर्धद्वयमहस्राब्दि-महोत्मव' मनाया जाना समुचित और न्यायप्राप्त है। इसीसे वीरसेवामन्दिर सरसावाने, श्रीमान बाबू छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ताकी प्रेरणाको पाकर, इस महोत्सवके मनानेका भारी आयोजन किया है। इस महोत्मवर्क लिये जो स्थान चुना गया है वह है 'राजगृह' तीर्थक्षेत्र। इस स्थानका कितना अधिक महत्व है यह तो स्वतंत्र लेखका विषय है, फिर भी यहाँ पर संक्षेप में इतना प्रकट किया जाता है कि . (१) दिगम्बर मम्प्रदायकी दृष्टिसे यह राजगृह वह स्थान है जहाँ सबसे पहले श्रावण-कृष्ण प्रतिपदाको सूर्योदयके समय वीर भगवानकी दिव्यध्वनि वाणी खिरी, उनके सर्वप्राणि-हितरूप 'सर्वोदय' तीर्थ की प्रवृत्ति हुई और उनके प्रधान गणधर गौतमके द्वारा उनकी दिव्य-वाणीकी उस द्वादशांग श्रुतमें रचना की गई जो वर्तमानके मभी जैनागमोंका आधारभूत है। किसी भी दिगम्बर ग्रन्थमें जहां उसके विषयावतारका निर्देश है वहाँ इसी स्थानके विपुलाचलादि पर्वत पर वीर भगवानका समवसरण पाने और उस में वीर-बाणीके अनुसार गौतम गणधरके द्वारा उस विषयके प्रतिपादनका उल्लेख है। . (२) श्वेताम्बर सम्प्रदायकी दृष्टिसे यह राजगृह वह स्थान है जहाँ वैशाख सुदि १० मीको होने वाले केवलज्ञानके अनन्तर ज्येष्ठ मासके शुरूमें ही भ० महावीर देशनाके लिये पहुँच गये थे, जहाँ वे ज्येष्ठ तथा आपाढ मास तक ही नहीं किन्तु वर्षाकाल (चातुर्मास्य) के अन्त तक (कोई छह मास तक) स्थित रहे और इस अर्सेमें जहाँ बराकर उनकी समवसरण सभा लगती रही और उसमें उनका धर्मापदेश होता रहा, जिसके द्वारा हजारों लाखों प्राणियोंका उद्धार तथा कल्याण हुआ है। और जो मुनि कल्याणविजयके शब्दों में "महाबोरके उपदेश और वर्षा-वासकै केन्द्रों में सबसे बड़ा और प्रमुख केन्द्र था ।" 'जहाँ महावीर का समवसरण दोसौसे अधिवार होनेके उल्लेख जैनसूत्रोंमें पाये जाते हैं। और इस लिये जहाँ वीरशासन विशेषरूपसें प्रवर्तित हुआ है। अतः दोनों सम्प्रदायोंकी दृष्टिसे राजगृह (राजगिर) वीरशासन-सम्बन्धी महोत्सबके लिये सबसे अधिक उपयुण स्थान है, जहांकी प्राकृतिक शोभा भी देखते ही बनती है। महोत्सवकी प्रधान तिथि श्रावणकृष्णप्रतिपदा है, जो उत्सर्पिणी आदि युगोंके आरम्भकी तिथि होने के साथ साथ वर्षारम्भकी भी तिथि है-इसी तिथिसे पहले भारतवर्ष में वर्षका आरम्भ हुआ करता था, 'वर्ष' शब्द भी वर्षाकालसे अपने प्रारम्भका सूचक है। अतः यह तिथि अन्य प्रकारसे भी इतिहासमें अपना खास महत्व रखती है। . महोत्सबकी विशेष योजनाएँ आगामी किरणोंमें प्रकाशित होंगी। -अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर'
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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