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________________ ऐतिहासिक सामग्री पर विशेषप्रकाश (ले०-श्री अगरचन्द नाहटा जैन) भारतीय इतिहाम-लेखनमें जैन ऐतिहासिक सामग्री (१) प्राचीन ऐतिहासिक काव्य-उक्त लेखमें बहुत ही उपयोगी होने पर भी खेद है उसका उपयोग उल्लिखित (१) ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह (२) ऐति. अभी तक बहुत ही कम किया गया है। इसके मुख्य दो गुर्जरकाव्य मंचय (३-४) ऐतिहासिक रास संग्रह भा... कारण हैं-(१) जैनेतर विद्वानोंकी सांप्रदायिकता (२) २. के अतिरिक्त जो संग्रह और प्रकाशित हुए हैं उनका और जैन ऐतिहासिक सामग्रीकी जानकारीका अभाव। परिचय इस प्रकार है:-- दूसरे कारणके लिये कुछ ज़िम्मेदारी जैन विद्वानोंकी भी १-२ ऐतिहासिक राम संग्रह भा० ३-४. प्र. यशोविजयस्वतः हो जाती है, क्योंकि उन्होंने जैनेतर विद्वानोंको ग्रन्थमाला भावनगर । परिचय करानेका कर्तव्य पालन नहीं किया। गुजरात प्रान्त ३ ऐतिहासिक समाय संग्रह, प्र. यशोविजयग्रन्थमाला, में मुनि जिनविजयजी प्रादिके भाषणों एवं लेखों द्वारा भावनगर । उप प्रान्तके जैनेतर विद्वानोंका ध्यान इस महत्वपूर्ण सामग्री ४ जैन ऐ० राममाला भा० (सं-देशाई), प्र.माध्यात्मकी ओर आकृष्ट हुआ है। अन्यथा गुजरातका इतिहास ज्ञान प्रसारकमंडल, पादग। प्रबन्धचिंतामणि श्रादि जैन ऐतिहामिक ग्रन्थोंके उपयोग ५ आनन्दकाव्यमहोदधि भा०५ों, प्र. देवचन्दलाल किये बिना बहुत कुछ अपूर्ण ही रहता। अब भी अपूर्ण भाइ पु०फंड-सूरत (हरिविजय मूरिरास ऋषभदासकृत) है। हमने अद्यावधि हमारी इस सामग्रीके प्रकाशन एवं ६ कुमारपालराम (जिनहर्पकृत). प्र. मोहनलाल दक्षखोजका भी प्रयत्न बहुत ही कम किया है। सुखराम, अहमदाबाद । इसका एक कारण ऐतिहासिक अभिरुचि रखने वाले पानंदकाव्य महोदधि भा. ८ (ऋषभदायकृत) व्यक्तियोंकी कमीके कारण प्रकाशित ऐति० ग्रन्थोंका प्रनार म. देवचंद लालभाई पु० फंड-मूरत । न होना है। फलत: प्रकाशक घाटेमें ही रहता है और भविष्य ____E सुजमति (यशोविजय जीवनी) प्र. ज्योति-कार्यालय के लिये प्रकाशन कार्य रुक सा जाता है। जैन समाजमें तो अहमदाबाद। एक इसी विषयके नहीं तत्वज्ञान प्रादि सभी प्रकारके उरच १ पुंजा ऋषिरासहय, माणकवेवी राप, प्र.शा. गोकुल वाम मंगलवाय,महमदाबाद।(पु.जैनरामसंग्रह भा०) कोटिके माहित्यका प्रेम नगण्य होनेके कारया ग्रन्थोंका १. विमल-प्रबन्ध," प्रतापसिंह राम। प्रचार नहीं हो पाता। अत: जिस किसी प्रकारसे प्रचार बड़े इनके अतिरिक जैन साहित्यसंशोधकर्म वस्तुपालवैसा प्रयत्न करना आवश्यक है। तेजपानरास, जनयुगकी फाइनामें कई राम बर्गत छपे अनेकान्तके गत अंकमें श्री वासुदेवशरणजी अग्रवाल हैं । भारमानंदप्रकाशमें धर्मसागररासका सार है। का जैनसाहित्य में प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री' शीर्षक लेख जैनसत्यप्रकाशकी फाइलों में हमारे लिखितो. काम्याँके खपा है। प्रस्तुत लेख में श्री वासुदेवशरणजीके लेखके अति सार धादि प्रकाशित हैं। इस प्रकारकी अप्रकाशित सामग्री रिक्त हात ऐ० सामग्रीका परिचय प्रकाशित किया जा रहा . है। माशा है इतिहास-क्षेत्र में काम करने वालोंको यह की तो इतनी प्रचुरता है कि केवन हमारे संग्रहसे ही १००० पृष्टका संग्रह प्रकाशित हो सके इतनी ऐकृतिय उपयोगी होगा। पड़ी है जिनमें कई बडे महबकी हैं। *गुजरात साहित्य सभा में । (२) प्रबन्धमंग्रह- उपदेश-तरंगिणी उपदेश
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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