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________________ म स्वाधीनताकी दिव्यज्योति Mahichipes P-(लेखक-श्री 'भगवत्' जैन)[इस शिक्षाप्रद पौराणिक ग्वण्ड-काव्यमें भगत-बाहुबलीके युद्ध और उसके परिणामका बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है-पढ़ना प्रारम्भ करके उसे छोड़नेको मन नहीं होता । अपनी इस रुचिकर रचनाके लिये लेखक महोदय धन्यवादके पात्र हैं। -सम्पादक] जिस बीरने हिंसाकी हुकूमत को मिटाया। जिस वीरके अवतारने पाखण्ड नशाया । जिस वीरने सोती हुई दुनियाको जगाया। मानवको मानवीयताका पाठ पढ़ाया । उस वीर, महावीरके कदमोंमें मुका मर । जय बोलिएगा एक बार प्रेमसे प्रियवर! | कहता हूँ कहानी मैं सुनन्दाके नन्दकी। जिसने न कभी दिल में गुलामी पसन्द की ।। नौबत भो आई भाईस भाईके द्वन्दकी। लेकिन न मोड़ा मुँह,न जुबाँबानी बन्द की। आजादी छोड़ जीना जिसे नागवार था। बेशक स्वतंत्रतासे मुहब्बत थी, प्यार था ।। करनेके लिए दिग्विजय भरतेश चल पड़े। कदमों में गिरे शत्र, नहीं रह सके खड़े ।। थी ताब, यह किसकी कि जो चक्रीसे लड़े? यों, आके मिले पाप ही राजा बड़े-बड़े ॥ फिर होगया छह-खएडमें भरतेशका शासन । पुजने लगा अमरोंसे नरोत्तमका सिंहासन ॥ या सबसे बड़ा पद जो हुकूमतका वो पाया। था कौन बचा, जिसने नहीं सिर था झुकाया ? दल देव-व-दानयका जिसे पूजने पाया। फिरती थी छहों खएडमें भरतेशकी बाया ॥ __ यह सत्य हर तरह है कि मानब महान् था। गो, था नहीं परमात्मा; पर, पुण्यवान् था। जब लौटा राजधानीको चक्रीशका दल-बल। जिस देशमें पाया कि वहीं पढ़गई हल-चल॥ ले-लेके श्राप भेंट-जवाहरात, फूल-फल । नरनाथ लगे पूलने-मरतेशकी कुशल ॥ स्वागत किया, सत्कार किया सबने मोदभर। था गंजता भरतेशकी जयघोषसे अम्बर।। - थे 'बाहुबली' छोटे, 'भरतराज' बड़े थे। छह-खण्डके वैभव सभी पैरों में पड़े थे। थे चक्रवर्ति, देवता सेवामें खड़े थे। लेकिन थे वे भाई कि जो भाईसे लड़े थे। भगवान ऋषभदेवके वे नौनिहाल थे। सानी न था दोनों हीअनुज बेमिसाल थे ! भगवान तो, दे राज्य, तपोवनको सिधारे। करने थे उन्हें नष्ट-भ्रष्ट कर्म के बारे ॥ रहने लगे सुख-चन से दोनों ही दुलारे। थे अपने-अपने राज्य में सन्तुष्ट बिचारे॥ इतनेमें छठी क्रान्तिकी एक भाग विर्षली। जो देखते ही देखते प्रहाण्डमें फैली। था कितनाविभव साथमें, कितनाथासैन्य-दल। कैसे करूँ बयान, नहीं लेखनीमें बल ।। हाँ, इतना इशाराही मगर काफी है केवल । सब-कुछ थामुदया,जिसे कर सकता पुण्य-फल ।। सेवक करोड़ों साथ थे, लाखों थे ताजवर। अगणित थे अख,शखा देख थरहरे कायर।।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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