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अनेकान्त
[वर्ष ६
अध्यापक-अच्छा, सबसे पहिले जो तुमने इस तीन ग्हते उसी प्रकार छोटापन और बदापन दोनों गुणों (धर्मों) ची लाइनको छोटी कहा था उसका क्या कारण था? के एक साथ रहने में क्या विरोध नहीं पाएगा?
विद्यार्थी-उस समय मैंने देखकर कि बोर्ड बहुत बड़ा यह सब सनकर विद्यार्थी का मो.नी और यह लाइन उसके एक बहुत छोटेसे हिस्सेमें भाई और मन-ही-मन उत्तरकी खोज करने लगा इतनेमें अध्याहै,इसे 'बोटा' कह दिया था।
पकजी उसकी विचार-समाधिको भंग करते हुए बोल उठे'अध्यापक--फिर इसमें तुम्हारी भूल क्या हुई। यह इसमें अधिक सोचने-विचारनेकी बात क्या है? एक तो ठीक ही है-यह लाईन बोर्ड से जोटी है इतना ही क्यों
हीचीजकी छोटी बड़ी दोनों कहने में विशेष तो तब माता यह तो टेविक्षसे भी छोटी है, कुर्सीसे भी छोटी है, इस है जब जिम दृष्टि अथवा अपेक्षासे किसी चीजको छोटा कमरेके किवाइसे भी छोटी ६, दावारस भी छोटा है और कहा जाय उसी दृष्टि अथवा अपेक्षासे उसे बड़ा बतलाया तुम्हारी-मेरी लम्बाईसे भी छोटी है।
जाय। तुमने मध्यकी तीन इंची लाइनको ऊपरकी पाँचहुंची विद्यार्थी-इस तरह तो मेरे कहने में भूल नहीं थी
लाइनसे छोटा बतलाया है, यदि पाँच इंच वाली लाइनकी भूल मान लेना ही भूल थी।
देशा ही उसे बड़ा बतला देते तो विरोध प्राजाता, परन्तु अब अध्यापक महोदयने उस मिटाई हुई
तुमने ऐसा न करके उसे नीचेकी एक इंचवाजी लाइन 3- एक इंची लाइनको भी फिर
हो बड़ा बतलाया है, फिर विरोधका क्या काम ' विरोध से नीचे बना दिया और सवाल किया कि तीनों लाइनों वहीं भाता है जहाँ एक ही दृष्टि (अपेक्षा) को लेकर विमिन कीस स्थितिमें तुम बीचकी उसी नम्बर १ वाली खाइनको प्रकारके कथन किए जायें, जहाँ विभिन्न प्रकारके कथनोंके छोटी कहोगे या बबी?'
लिये विभिन्न दृष्टियों-अपेक्षाओंका धाश्रय लिया जाय वहीं विद्यार्थी-2तो अब ये कहंगा कि यह ऊपर वाली विरोधके लिये कोई अवकाश नहीं रहता। एक ही मनुष्य साइन नं.३से छोटी और नीचे वाली लाइन नं.२ अपने पिताकी हाटसे पुत्र है और अपने पुत्रकी रष्टिसे पिता से बनी।
है--उसमें पुत्रपन और हितापनके दोनों धर्म एक साथ अध्यापक-अर्थात इसमें छोटापन और बदापन दोनों
रहते हुए भी जिस प्रकार दृष्टिभेद होनेसे विरोधको प्राप्त और दोनों गुण एक साथ हैं?
नहीं होते उसी प्रकार एक दृष्टिसे किसी वस्तुका विधान विद्यार्थी-हों, इसमें दोनों गुण एक साथ है।
करने और दूसरी दृष्टिसे निषेध करने अथवा एक अपेक्षासे अध्या०-एक ही चीजको छोटी और बड़ी कहने में।
'हो' और दूसरी अपेक्षासे 'ना' कहने में भी विरोधकी कोई क्या तुम्हें कुछ विरोध मालूम नहीं होता ? जो वस्तु छोटी
बात नहीं है। ऐसे ऊपरी अथवा शब्दोंमें ही दिखाई परने बाबही नहीं कहलाती धीर जो बदी। वह छोटी नहीं वाले विरोधको विरोधाभास कहते हैं-वह वास्तविक कही जाती। एक ही वस्तुको छोटी कहकर फिर यह कहना
अथवा अर्थकी दृष्टिसे विरोध नहीं होता, और इस लिए किचोटी नही-बड़ी है, यह कथन तो लोक-व्यवहारमें पर्वापरविरोध तथा प्रकाश-मन्धकार-जैसे विरोधके साथ विरुद जान पडेगा ! लोकव्यवहारमें जिस प्रकार 'हाँ' कह
उसकी कोई तुलना नहीं की जासकती। और इसी लिये कर 'ना' कहना अथवा विधान करके निषेध करना परस्पर
तुमने जो बात कही वह ठीक है। तुम्हारे कथनमें ढ़ता विरून असंगत और अप्रामाणिक समझा जाता है उसी जानेके लिए ही मुझे यह सब स्पष्टीकरण करना पड़ा है। प्रकार तुम्हारा यह एक चीजको छोटी कहकर बड़ी कहना
माशा है अब तुम इस छोटे-बडेके तत्वको खूब समझ गये अथवा पक ही वस्तुमें बोटेपनका विधान करके फिर उसका होंगे। निषेध कर डालना-उसे बदी बतखाने सगना-पया परस्पर विद्यार्थी -हाँ, खूब समझ गया, अब नहीं भूलंगा। विल्द, असंगत और अप्रामाशिक नहीं समझा जायगा ? अध्यापक--अच्छा, तो इतना और बतखामो-इन और जिस प्रकार अंधकार तथा प्रकाश दोनों एक साथ नहीं उपर नीचेकी दोनों बड़ी-छोटी लाइनोंको यदि मिटा दिया